गजब, उत्तराखंड की बसों में डीजल पूरा, फिर भी सफर है अधूरा
रोडवेज की वातानुकूलित अनुबंधित बसें खटारा हालात में यात्रियों को पहले ही दर्द दे रही हैं, ऊपर से अब सफर भी पूरा नहीं करा रहीं।
देहरादून, [अंकुर अग्रवाल]: रोडवेज की वातानुकूलित अनुबंधित बसें खटारा हालात में यात्रियों को पहले ही दर्द दे रही हैं, ऊपर से अब सफर भी पूरा नहीं करा रहीं। बसों का रास्ते में डीजल खत्म हो जा रहा है। दिल्ली से लौटते हुए ये कभी छुटमलपुर और बिहारीगढ़ में खड़ी हो जा रहीं तो कभी मोहंड में। गुजरे तीन दिन में ऐसे तीन मामले सामने आए, जब यात्रियों को जैसे-तैसे दूसरी बसों से देहरादून भेजा गया। सूत्रों की मानें तो बसों में डीजल ही पूरा नहीं भराया जा रहा, जबकि रोडवेज के रेकार्ड में बसों में पूरा डीजल देने की बात का जिक्र है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब डीजल पूरा भरा जा रहा है तो फिर कैसे बसें अधूरे सफर में खड़ी हो जा रही हैं।
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रोडवेज में अधिकतर वातानुकूलित बसों को अनुबंध पर लगाया गया है। इनमें चालक संबंधित ट्रांसपोर्ट कंपनी का रहता है और परिचालक रोडवेज का। डीजल भी रोडवेज ही देता है। वातानुकूलित बसों में देहरादून से दिल्ली आने-जाने के लिए 142 लीटर डीजल देना रेकार्ड में दर्ज किया जाता है। बावजूद इसके बसें डीजल खत्म होने की वजह से रास्ते में फंस जा रही हैं। गुजरे तीन दिन के रेकार्ड पर नजर डालें तो बी डिपो की बस संख्या (2035) का 12 जून की तीन बजे मोहंड में डीजल खत्म हो गया। यात्रियों को पीछे से आ रही साधारण बस में एडजस्ट कर दून पहुंचाया गया।
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डीजल खत्म होने की वजह से बस के इंजन व एसी का एयर-पंप हवा ले गया और क्रेन से खींचकर बस को दून लाना पड़ा। इसी बस को उसी दिन दोपहर ढाई बजे दिल्ली के लिए रवाना होना था, मगर आइएसबीटी पर बस पहुंची ही नहीं। बस में 14 ऑनलाइन टिकट बुक थे और 20 टिकट परिचालक काट चुका था। यात्रियों ने हंगामा किया तो तीन बजे दूसरी बस (2399) मंगाई गई और यात्री उसमें भेजे गए। इसी तरह 10 जून और 11 जून की रात को लगातार दो दिन वातानुकूलित बस संख्या (2357) डीजल खत्म होने पर बिहारीगढ़ में खड़ी रही। चंद रोज पहले बस संख्या (2098) छुटमलपुर में खड़ी हो गई थी। डीजल कम होने के कारण बसों के बीच रास्ते में फंसने का सिलसिला जारी है पर निगम प्रबंधन इससे बेपरवाह बना हुआ है।
प्रति बस 30 लीटर का खेल
रोडवेज के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक वातानुकूलित बस में दिल्ली रूट पर प्रति चक्कर 30 लीटर डीजल का खेल चलता है। बसों में 142 लीटर डीजल भरना दर्ज तो किया जाता है, लेकिन हकीकत में भरा जाता है 112 लीटर। चालक को हिदायत दी जाती है कि बस 40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से अधिक पर न चलाएं ताकि डीजल की खपत कम हो। इसके अलावा रास्ते में एसी भी थोड़ी-थोड़ी देर बंद करके चलाया जाता है। रफ्तार पर लगाम होने के कारण बसें सात से आठ घंटे में दिल्ली पहुंचती हैं।
परिचालक नहीं जाते डीजल लेने
निगम में व्यवस्था है कि बस में डीजल भराते समय परिचालक का साथ होना जरूरी है। बिल पर उसके हस्ताक्षर होते हैं, मगर 'चोरी' के इस खेल में जानबूझकर परिचालक को नहीं भेजा जाता। केवल चालक पेट्रोल पंप पर जाता है।
मैं बी डिपो के एजीएम से रिपोर्ट लूंगा कि ऐसा क्यों हो रहा। जांच कराई जाएगी कि बसों में डीजल अधूरे सफर में समाप्त कैसे हो रहा।
-दीपक जैन, महाप्रबंधक (संचालन), उत्तराखंड परिवहन निगम
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