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    घाटा झेल रहे उत्‍तराखंड परिवहन निगम को अपने ही लगा रहे पलीता

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Sun, 12 Jun 2016 01:06 PM (IST)

    करोड़ों का घाटा झेल रहे परिवहन निगम को पलीता लगाने में 'अपने' अब भी कोई कसर बाकी नहीं रख रहे।

    देहरादून, [अंकुर अग्रवाल]: करोड़ों का घाटा झेल रहे परिवहन निगम को पलीता लगाने में 'अपने' अब भी कोई कसर बाकी नहीं रख रहे। पिछले वर्ष मार्च में निगम के काठगोदाम डिपो में लाखों के ई-टिकट घोटाले का खुलासा हुआ था, तो अब बसों के बेटिकट दौड़ने के मामलों में कोई कमी नहीं आ रही। बीते एक साल में 113 बसों में 289 सवारियां बेटिकट मिलीं और 23 बसों में लाखों रुपये का माल बिना लॉगबुक के पकड़ा गया। ऐसा नहीं है कि इन मामलों में कार्रवाई न हुई हो। निलंबन हुआ, बर्खास्तगी हुई, मुकदमे हुए, तबादले हुए, लेकिन चालक-परिचालक सुधरे हों, ऐसा कतई नहीं हुआ।

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    अप्रैल 2015 में उत्तराखंड रोडवेज इंप्लाइज यूनियन के अधिवेशन में रोडवेज की दुर्गति पर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खुद कहा था कि 'रोडवेज डायबिटीज का शिकार हो चुका है।' अधिकारियों और कर्मचारियों को आगाह करते हुए मुख्यमंत्री ने सुधार के लिए छह माह का अल्टीमेटम भी दिया था, लेकिन 14 माह बीतने के बाद भी इसका कुछ असर नहीं दिख रहा। जब काठगोदाम डिपो में लाखों का टिकट घपला पकड़ा गया तो रोडवेज अधिकारियों ने रूटों पर चेकिंग का स्तर सुधारने के दावे किए।

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    बावजूद इसके निगम कर्मी सुधरने को राजी नहीं। परिचालकों ने सभी सीमाएं तोड़ दी हैं। ऐसा कोई महीना नहीं, जिसमें रोडवेज बसें बेटिकट न मिल रही हों। इसी साल जनवरी में पर्वतीय डिपो की दो बसें यात्रा मार्ग पर बेटिकट मिली थीं। इनमें से एक बस के चालक-परिचालक तो प्रवर्तन टीम के हाथ से टिकट मशीन छीनकर भाग गए थे, मगर निगम प्रबंधन ने उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे में निगम की लुटिया डूबेगी नहीं तो क्या होगा।

    रूट पर नहीं जाते पांच अधीक्षक
    बसें तो बेटिकट दौड़ेंगी ही, जब उनकी चेकिंग करने वाले रूट पर जाएंगे ही नहीं। निगम में पांच यातायात अधीक्षक रूटों पर जाने के बजाए दफ्तरों में मौज काट रहे हैं। इनमें तीन तो दून आइएसबीटी पर बैठे हुए हैं, जबकि एक हरिद्वार बस अड्डे पर बैठे रहते हैं। पांचवें अधीक्षक महोदय कार्यालय ड्यूटी का हवाला देकर रूट पर नहीं जाते।

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    नौ निरीक्षक के पद खाली
    कुमाऊं परिक्षेत्र में पिछले छह माह से नौ यातायात निरीक्षक के पद खाली चल रहे हैं, मगर मंडलीय प्रबंधक इन पदों पर नियुक्ति को तैयार नहीं। निगम सूत्रों कि मानें तो ये सब पुराने यातायात निरीक्षकों के दबाव में किया जा रहा है। वे नहीं चाहते कि यातायात निरीक्षक के खाली पद भरे जाए। सूत्रों की मानें तो ज्यादातर पुराने निरीक्षकों की पहले ही परिचालकों के साथ साठगांठ रहती है।

    बस नहीं रोकी तो चालक निलंबित
    भ्रष्ट चालक-परिचालकों पर लगाम लगाने को परिवहन निगम ने कसरत शुरू कर दी है। बेटिकट मामला पकड़ में आने पर परिचालकों पर निलंबन व मुकदमे की कड़ी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है। चालकों के विरुद्ध भी शिकंजा कसा गया है। यदि चेकिंग टीम के हाथ देने पर बस नहीं रोकी गई तो चालक तत्काल निलंबित कर दिया जाएगा। वहीं, लॉगबुक से ज्यादा सामान होने पर भी चालक-परिचालक को निलंबित करने की तैयारी चल रही। असल में कई मर्तबा देखने को मिला कि चालक चेकिंग टीम के हाथ देने पर वाहन रोकते नहीं। रोडवेज में इसे नॉन-स्टाप का जुर्म माना जाता है।

    काशीपुर में 60 बेटिकट मामला अब तक का सबसे बड़ा मामला है। चालक व परिचालक को निलंबित कर मुकदमा किया जा रहा है। जांच के बाद दोनों को बर्खास्त भी किया जा सकता है। रूटों पर चेकिंग बढ़ाई गई है, इसलिए बेटिकट के मामले पकड़े जा रहे है। हमारी कोशिश है कि टिकट सेवा को ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन किया जाए। इसके बाद परिचालक कोई हेराफेरी नहीं कर सकेंगे।
    -बृजेश कुमार संत, प्रबंध निदेशक, उत्तराखंड परिवहन निगम

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