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    उत्‍तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास सुविधा समाप्त

    By gaurav kalaEdited By:
    Updated: Wed, 19 Oct 2016 02:00 AM (IST)

    उत्‍तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को जल्द ही अपना आवास खाली करना पड़ेगा। इसके लिए शासन स्तर पर शासनादेश जारी करने की तैयारी हो चुकी है।

    देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को जल्द ही अपना आवास खाली करना पड़ेगा। इसके लिए शासन स्तर पर शासनादेश जारी करने की तैयारी हो चुकी है। हाई कोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने भी इस पर सहमति दे दी है। सूत्रों की मानें तो इसका शासनादेश जारी तक कर दिया गया था, लेकिन तकनीकी कारणों के चलते इसे ऐन वक्त पर रोक लिया गया।
    प्रदेश में एक पूर्व मुख्यमंत्री को छोड़कर सभी पूर्व मुख्यमंत्री राजधानी देहरादून के सरकारी बंगलों पर काबिज हैं। दरअसल, उत्तराखंड में ये सिलसिला संयुक्त उत्तर प्रदेश की नियमावली को आधार बनाकर शुरू किया गया। पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को छोड़ दिया जाए तो इस मामले में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस और विपक्ष भाजपा का रुख एक जैसा ही है।

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    इन सरकारी आवासों के रखरखाव पर हर वर्ष भारी-भरकम खर्च किया जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास समेत अन्य सुविधाएं दिए जाने के खिलाफ हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका की सुनवाई चल रही है। जब इस संबंध में हाई कोर्ट ने जवाब मांगा तो सरकार ने उत्तरप्रदेश की नियमावली का हवाला दिया।
    सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री को सरकारी आवास दिए जाने को वाजिब नहीं माना है। लिहाजा माना या गया कि अब पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए अब सरकारी आवासों पर बने रहना मुमकिन नहीं होगा।

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    वहीं, कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी हाई कोर्ट के सख्त रुख के बाद सरकारी बंगले खाली करने के संबंध में शपथ पत्र दिया। इस कड़ी में शासन ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास सुविधा समाप्त करने के संबंध में मुख्यमंत्री कार्यालय से सहमति प्राप्त कर ली है। सूत्रों की मानें तो पहले इसका आदेश जारी किया जा रहा था लेकिन तकनीकी कारणों के चलते इसे संशोधन के लिए रोक लिया गया। अब संशोधन के बाद इसे एक दो दिनों के भीतर जारी कर दिया जाएगा।

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    दैनिक जागरण ने छेड़ी थी मुहिम

    दैनिक जागरण ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास समेत तमाम मुफ्त सुविधाओं के खिलाफ जन जागरण करते हुए आठ अक्टूबर, 2014 से 13 नवंबर, 2014 तक व्यापक मुहिम चलाई थी। इस मुहिम को समाज के विभिन्न तबकों का भरपूर समर्थन मिला।

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