हिमालयी क्षेत्र में 50 फीसद बढ़ा बारिश का ग्राफ
हिमालयी क्षेत्र में पिछले 20 साल में मौसम के मिजाज ने गंभीर रुख अख्तियार कर लिया है। बादल फटने की घटनाओं में साल-दर-साल इजाफा हो रहा है।
देहरादून, [सुमन सेमवाल]: पिछले 20 साल में मौसम के मिजाज ने गंभीर रुख अख्तियार कर लिया है। बादल फटने की घटनाओं में साल-दर-साल इजाफा हो रहा है। यह खतरा उत्तराखंड समेत समूचे हिमालयी क्षेत्र में मंडरा रहा है। विशेषकर खास तरह की घाटियों में बादल फटने की घटनाएं अधिक हो रही हैं। बीते एक दशक में मानसून सीजन में बारिश का ग्राफ 50 से 60 फीसद बढ़ गया है।
इस बात का जिक्र पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) को भेजी गई वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट में हुआ है। दरअसल, 'दैनिक जागरण' ने बीती पांच जुलाई के अंक में वाडिया संस्थान के अध्ययन पर आधारित 'मानसून की दस्तक और विदाई खतरनाक' शीर्षक से प्रमुखता से खबर प्रकाशित की थी। इसके बाद पीएमओ ने संस्थान से बादल फटने की घटनाओं की स्थिति पर रिपोर्ट तलब की थी।
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वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. विक्रम गुप्ता ने बताया कि पीएमओ को भेजी रिपोर्ट में बादल फटने की घटनाओं पर संस्थान की पूर्व की अध्ययन रिपोर्ट का भी जिक्र है। इसमें निष्कर्ष निकाला गया है कि मानसून सीजन के आरंभ और समाप्ति के समय सबसे अधिक बादल फटे हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 20 साल में जलवायु परिवर्तन के चलते एक्स्ट्रीम क्लाइमेट इवेंट (गंभीर जलवायुवीय घटनाएं) अधिक हो रही है।
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पीएमओ को भेजी रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि 'क्लोज्ड वैली' वाले इलाकों में ही बादल अधिक फट रहे हैं। क्लोज्ड वैली से आशय उन क्षेत्रों से है, जहां एक बरसाती नाला दूसरे बरसाती नाले से मिलता है। इन इलाकों में संगम वाला निचला हिस्सा बेहद संकरा और ऊंचाई पर उसका भाग चौड़ा होता है।
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ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों में पानी से भरे बादल एक-दूसरे से अधिक टकराते हैं। नतीजतन इन क्षेत्रों में एक घंटे में 10 सेंटीमीटर (100 एमएम) तक बारिश हो जाती है। इतना पानी किसी भी भूभाग को तबाह करने के लिए काफी होता है।
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क्लोज्ड वैली में न बसने की सलाह
डॉ. विक्रम गुप्ता ने बताया कि बादल फटने की परिस्थितियां बनाने वाली क्लोज्ड वैली में बसने से परहेज किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में भी इस तरह के सुझाव शामिल किए गए हैं। मामला पीएमओ के संज्ञान में आने के बाद उम्मीद है कि राज्य सरकारें हिमालयी क्षेत्रों में आबादी की बसावट, आपदा प्रबंधन और पुनर्वास को लेकर अधिक सक्रिय हो पाएंगी।
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