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    आसमानी आतिशबाजी का नजारा पहुंचा चरम पर, खगोल प्रेमी ले रहे रोमांचक का आनंद

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Sat, 13 Aug 2016 08:19 PM (IST)

    गुरुवार की रात से उल्कावृष्टि चमचमाता शुरू हो चुकी है। यह रोमांचक खगोलीय घटना 13 अगस्त तक जारी रहेगी।

    नैनीताल, [रमेश चंद्रा]: आसमान में उल्कावृष्टि का आतिशी नजारा चरम पर जा पहुंचा है। दुनियाभर के खगोल प्रेमी इस रोमांचक घटना का लुत्फ उठा रहे हैं, साथ ही कैमरे में भी कैद कर रहे हैं। इस उल्कावृष्टि को नासा के विशेषज्ञ सर्वश्रेष्ठ मान रहे हैं। उल्कावृष्टि आज भी जारी रहेगी।
    बता दें यह सामान्य खगोलीय घटना है, लेकिन देखने में बेहद रोमांचक होने के कारण एमेच्योर वैज्ञानिकों व खगोल प्रेमियों के लिए बेहद खास होती है। इन दिनों पर्शीड्स मेटियोर शॉवर के चलते आसमान में जबर्दस्त उल्कावृष्टि हो रही है। नासा समेत कई अंतरिक्ष एजेंसियां इस घटना को ब्रांड लाइव टेलीकास्ट कर रहे हैं।
    गुरुवार की रात से उल्कावृष्टि चमचमाता शुरू हो चुकी है। इस घटना के दीदार के लिए लोग पहले से ही तैयार थे। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे के अनुसार बीती रात दुनिया के कई हिस्सों में इस घटना के दौरान उल्कापातों का आतिशी नजारा देखने को मिला।

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    आसमान से भस्म होकर जमीन की ओर आती चमकदार उल्काओं को लोगों ने कैमरे में कैद किया। इन दिनों पर्शीड्स उल्कावृष्टि का पीक चल रहा है। इस नजारे को आधी रात बाद अंधेरे में बेहतर ढंग से देखा जा सकता है। शहरों में विद्युत प्रकाश इस नजारे में व्यवधान पैदा करता है। इस उल्कावृष्टि में प्रतिघंटा 200 तक उल्कापात होने का अनुमान है। इधर देश के कई भागों में मौसम खराब होने के कारण उल्कावृष्टि देखने में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।

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    एस्टीरॉइड का पृथ्वी के नजदीक आना होता है खतरनाक

    भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बंगलुरु के खगोल वैज्ञानिक प्रो. आरसी कपूर के अनुसार उल्कावृष्टि सामान्य खगोलीय घटना है, लेकिन कभी कभी किसी एस्टीरॉइड के धरती के नजदीक आ जाने पर खतरनाक साबित हो जाती है। वर्ष 2013 में करीब 19 मीटर का एस्टीरॉइड धरती की ओर आ गया और करीब 20 मीटर की ऊंचाई पर जल उठा।
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    यह इतना नजदीकी मामला था कि रसिया के कई घरों के शीशे टूट गए। आमतौर पर मटर के दाने के बराबर उल्काएं आसमान में करीब 100 मीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के वातावरण में रगड़ खाते ही जल उठती हैं। तब वह चमकते हुए आतिशबाजी के समान नजर आते हैं। यह घटना पूर्व में धूमकेतुओं द्वारा छोड़े गए मलबे के धूल कंकणों द्वारा होती है।

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