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गंगोत्री स्थित सूर्यकुंड में दिया था भगीरथ ने सूर्य को अर्घ्‍य

विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम में सूर्यकुंड व गौरीकुंड का विशेष महात्म्य है। आज भी गंगा की जल धारा इन कुंडों से होकर आगे बढ़ती है।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 01 Jun 2016 01:05 PM (IST)Updated: Thu, 02 Jun 2016 07:00 AM (IST)
गंगोत्री स्थित सूर्यकुंड में दिया था भगीरथ ने सूर्य को अर्घ्‍य

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम में सूर्यकुंड व गौरीकुंड का विशेष महात्म्य है। आज भी गंगा की जल धारा इन कुंडों से होकर आगे बढ़ती है। पुराणों में इन कुंडों की विशिष्टता का बखान किया गया है। इनकी खूबसूरती निहारने के लिए तीर्थयात्रियों के साथ ही पर्यटक भी बड़ी संख्या में गंगोत्री धाम पहुंचते हैं।

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समुद्रतल से 3140 मीटर की ऊंचाई एवं उत्तरकाशी से सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गंगोत्री धाम। मान्यता है कि गंगोत्री में एक शिला पर बैठकर राजा भगीरथ ने 5500 वर्षों तक घोर तप किया था। जो आज भी विद्यमान है और भगीरथ शिला के नाम से जानी जाती है।


कहते हैं जब गंगा स्वर्ग से धरा पर उतरी तो गंगोत्री मंदिर से सौ मीटर की दूरी पर राजा भगीरथ ने सूर्यदेव को अर्घ्य दिया था। इस स्थान पर आज भी गंगा एक धारा के रूप में कुंड में गिरती है। इस कुंड में एक पत्थर का शिवलिंग भी है।

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गंगोत्री के तीर्थ पुरोहित राजेश सेमवाल बताते हैं कि गंगोत्री धाम में सूर्यकुंड विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस स्थान पर राजा भगीरथ ने भगवान सूर्य को गंगा जल का अघ्र्य दिया था। आज भी सूर्यकुंड के पास गंगा की धारा पूरब दिशा की ओर गिरती है।
यह है मान्यता
गंगोत्री मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर गंगा के बीच में गौरीकुंड स्थित है। मान्यता है कि इस कुंड में भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था। आज भी वहां पर एक पत्थर का शिवलिंग है, जिसकी गंगा परिक्रमा करती है। इस शिवलिंग के दर्शन शीतकाल में होते हैं, जब गंगा का जल स्तर कम रहता है।

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तीर्थ पुरोहित सुधांशु सेमवाल बताते हैं कि रामेश्वरम में गौरीकुंड के बाद का गंगा जल नहीं चढ़ाया जाता। जो लोग रामेश्वरम में गंगा जल लेकर जाते हैं, वह गौरीकुंड से पहले ही भरा जाता है।
यहां पांडवों ने किया था यज्ञ
गंगोत्री से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर पटागणियां नामक स्थान है। यहां पांडवों ने स्वर्गारोहण के समय यज्ञ किया था और एक गुफा में रात्रि विश्राम भी किया। आज भी पटागणियां के पास एक गुफा है, जिसे पांडव गुफा कहते हैं।
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