उजाले के पर्व पर उत्तराखंड के 71 गांवों में पसरा है अंधेरा
सूबे के 71 गांव और चार हजार से ज्यादा तोक अंधेरे में डूबे हैं और यहां के लोगों की दीपावली इस बार भी ऐसे ही बीतेगी। आजादी के 69 साल बीतने के बाद भी यहां बिजली नहीं पहुंची है।
देहरादून, [अंकुर त्यागी]: दीपोत्सव को लेकर चारों ओर उल्लास है। शहर से लेकर गांव तक जगमगा रहे हैं। लेकिन, सूबे के 71 गांव और चार हजार से ज्यादा तोक अंधेरे में डूबे हैं और यहां के लोगों की दीपावली इस बार भी ऐसे ही बीतेगी। क्योंकि, आजादी के 69 साल बीतने के बाद भी यहां बिजली नहीं पहुंची है। दीपावली पर यहां दीये और लालटेन हीं टिमटिमाते हैं।
उत्तराखंड का उदय हुआ तो इसे ऊर्जा प्रदेश का तमगा मिला। लेकिन, ये विड़ंबना ही है कि आज तक सूबे की काफी आबादी बिजली से वंचित है। दरअसल, इन गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए ऊर्जा निगम पूरी तरह केंद्र सरकार पर निर्भर है।
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2005 में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना शुरू हुई थी, लेकिन कई गांव तब भी वंचित रह गए। दो साल पहले दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना प्रारंभ हुई तो लोगों को कुछ उम्मीद जगी। अब इंतजार है तो उस पल का, जब ये गांव भी असल में दीपावली मना सकेंगे।
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ऊर्जा निगम के निदेशक मानव संसाधन पीसी ध्यानी ने बताया कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में कुछ गांव इसलिए बिजली से वंचित रह गए थे कि वन विभाग से जरूरी मंजूरी नहीं मिली।
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नई व्यवस्था में जल्द मंजूरी मिलने की उम्मीद है। जहां वन विभाग से मंजूरी की जरूरत नहीं है, वहां कार्य प्रगति पर है। अगली दीपावली पर संभवत: हर गांव बिजली से रोशन होगा।
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तोकों में रोशनी पर संशय
दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत 3400 करोड़ रुपये की कार्ययोजना भेजी थी। केंद्र ने 842 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। 618 करोड़ एग्रीकल्चर फीडर अलग करने और शेष गांव-तोक के विद्युतीकरण के लिए हैं। ऐसी स्थिति में ऊर्जा निगम ने केंद्र के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि फीडर अलग करने की धनराशि विद्युतीकरण में समायोजित कर दी जाए। इस पर केंद्र ने सैद्धांतिक सहमति दी है।
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