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    उत्तराखंडः चमोली गढ़वाल के इस गांव में मनती है अनूठी दीपावली

    By gaurav kalaEdited By:
    Updated: Sat, 29 Oct 2016 07:00 AM (IST)

    चमोली जनपद के जाखणी गांव में दीपावली पर ग्रामीणों की दो टोलियां बनाई जाती हैं। एक टोली खेतों में हल चलाने वालों की होती है तो दूसरी जंगल में मवेशी चराने वालों की।

    गोपेश्वर, चमोली, [देवेन्द्र रावत]: देवभूमि उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल में ज्योति पर्व दीपावली को मनाने का अलग ही अंदाज है। सीमांत चमोली जिले के दूरस्थ घाट ब्लॉक के जाखणी गांव में तो इस दौरान सामूहिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसके तहत गांव के किसान जहां चीड़ के हरे वृक्ष पर लगाई गई सूखी घास को जलाते हैं, वहीं युवा इस आग को बुझाते हैं। जबकि, महिलाएं व बच्चे इस आयोजन में दर्शक होते हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ीचली आ रही इस परंपरा के माध्यम से ग्रामीण देश-दुनिया को पर्यावरण बचाने का संदेश देते हैं।
    दो सौ परिवारों की सात सौ से अधिक आबादी वाले गांव में दीपावली की रौनक देखते ही बनती है। इस दिन ग्रामीणों के दो टोलियां बनाई जाती हैं। एक टोली खेतों में हल चलाने वाले यानी बड़े-बुजुर्गों की होती है तो दूसरी जंगल में मवेशी चराने वाले युवाओं की। दीपावली वाले दिन खेत के किनारे खड़े चीड के हरे पेड़ पर सूखी घास लगाई जाती है और अंधेरा घिरते ही शुरू होती है दोनों टोलियों में इसे जलाने व बुझाने की प्रतिस्पर्धा। हाथों में पेड़ की टहनियां लिए युवा जहां नाचते हुए घास पर लगी आग को बुझा देते हैं, वहीं बुजुर्ग लगातार आग लगाने के प्रयास में जुटे रहते हैं।

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    इसमें ध्यान रखा जाता है कि पेड़ को नुकसान न पहुंचे। प्रतिस्पर्धा रातभर चलती है। ग्रामीणों की मानें तो यह परंपरा उन्हें विरासत में मिली है, जिसके पीछे पर्यावरण संरक्षण का संदेश छिपा हुआ है।

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    आग से जंगलों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए युवाओं को प्रेरित करना ही इस आयोजन का मकसद है। गांव के बुजुर्ग खुशाल सिंह कठैत का कहना है कि इस परंपरा के निर्वहन से युवाओं में जागृति आई है। जब कभी जंगलों के आसपास आग लगती है, वे उसे बुझाने दौड़ पड़ते हैं। बताते हैं कि इस आयोजन में शामिल होने के लिए शहरों में रहे लोग भी दीपावली के मौके पर गांव लौट आते हैं।

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