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पाकिस्‍तानी रेंजर्स से मुठभेड़ में शहीद हुआ देहरादून का लाल

जम्‍मू एंड कश्‍मीर के तंगधार में पाकिस्‍तानी रेंजर्स से मुठभेड़ के दौरान देहरादून का 23 वर्षीय जवान शहीद हो गया। वह दो साल पहले ही खेल कोटे से फौज में भर्ती हुए थे।

By gaurav kalaEdited By: Published: Fri, 28 Oct 2016 12:21 PM (IST)Updated: Sat, 29 Oct 2016 06:55 AM (IST)
पाकिस्‍तानी रेंजर्स से मुठभेड़ में शहीद हुआ देहरादून का लाल

देहरादून, [जेएनएन]: उत्तराखंड का एक और जांबाज देश रक्षा में शहीद हो गया। जम्मू-कश्मीर के तंगधार सेक्टर में पाक रेंजर्स की गोलीबारी में देहरादून के नवादा निवासी 6 गढ़वाल राइफल्स के राइफलमैन संदीप सिंह रावत शहीद हो गए। वह मूलरूप से पौड़ी जिले के धूमाकोट क्षेत्र के घोडपाला गांव के रहने वाले थे। वर्ष 2004 में उनका परिवार दून आकर बस गया। संदीप तकरीबन दो साल पहले ही फौज में भर्ती हुए थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय से हुई थी। इंटरमीडिएट उन्होंने ओपन बोर्ड से उत्तीर्ण किया।
दीपावली की तैयारी में जुटे शहीद के परिवार को जब यह खबर मिली तो घर में कोहराम मच गया। शहीद की मां आशा रावत का रो-रोकर बुरा हाल है। नाते-रिश्तेदार शहीद के परिजनों को सांत्वना देने पहुंचे। शहीद का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए शनिवार सुबह नवादा स्थित उनके पैतृक आवास पहुंचेगा। शहीद की अंत्येष्टि सैन्य सम्मान के साथ हरिद्वार में की जाएगी।

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बेहतरीन बॉक्सर थे संदीप
संदीप जनवरी 2015 में स्पोटर्स कोटे से सेना में भर्ती हुए थे। वह एक बेहतरीन बॉक्सर थे। रिश्तेदार बताते हैं कि संदीप पुलिस की कांस्टेबल भर्ती में भी सफल रहे थे। लेकिन, मन में सैन्य वर्दी की ललक थी। महज 23 साल की उम्र में देवभूमि के इस वीर ने देश रक्षा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

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पिता के नक्शे कदम पर चला बेटा
शहीद संदीप के पिता हवलदार हरेंद्र सिंह रावत भी 10वीं गढ़वाल राइफल्स के सेवानिवृत्त हवलदार हैं। वर्तमान में वह दून मेडिकल कॉलेज के टीचिंग अस्पताल में सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर रहे हैं। शहीद का बड़ा भाई दीपक दुबई स्थित एक होटल में नौकरी करता है।

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कुछ ही दिन में आना था छुट्टी पर
संदीप मई में छुट्टी पर आए थे और 13 जून को वापस लौट गए। तीन रोज पहले ही संदीप ने अपनी मां से फोन पर बात की। वह नवंबर प्रथम सप्ताह में छुट्टी लेकर घर आ रहे थे।

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तिरंगे में लिपटा आया
शहीद संदीप की अभी शादी नहीं हुई थी। रिश्तेदार बताते हैं कि उनकी शादी के लिए परिवार लड़की ढूंढ रहा था। लेकिन, किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। क्या पता था कि जिसे सेहरा पहने देखने की तमन्ना थी वह तिरंगे में लिपटा आएगा। वह भी दिवाली के दिन।

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