देश भक्ति के जज्बे ने बनाया सिपाही, हौसलों ने अफसर
आर्मी कैडेट कॉलेज से पास आउट होने वाले कैडेट्स ने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष किया। देश भक्ति के जज्बे से ही उन्होंने सेना की राह चुनी और कड़ी मेहनत से मुकाम हांसिल किया।
देहरादून, [जेएनएन]: आर्मी कैडेट कॉलेज से पास आउट होने वाले कैडेट्स विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष कर इस मुकाम तक पहुंचे। देश भक्ति के जज्बे से ही उन्होंने सेना की राह चुनी और कड़ी मेहनत से अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़े।
जब कदम बढ़ाओ, तभी मंजिल हासिल। आर्मी कैडेट कॉलेज (एसीसी) से पास आउट कैडेट्स भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। मंजिल तक पहुंचने में कुछ वक्त जरूर लगा, मगर लक्ष्य से कभी डिगे नहीं।
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तब समय अनुकूल नहीं था और घर का भार एकाएक कंधों पर आ पड़ा। मगर, न उम्मीद छोड़ी और न सपना ही टूटने दिया। मन में रह-रहकर उठती उम्मीद की हिलोरों की बदौलत सफलता की दहलीज तक पहुंच गए।
उत्तराखंड के सपूत ने बढ़ाया मान
स्वर्ण पदक हासिल करने वाले हल्द्वानी निवासी नीरज नेगी एक बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पिता बलवंत नेगी एचएमटी में आपरेटर हैं।
सीमित शिक्षा संसाधनों में भी बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। नीरज की प्रारंभिक शिक्षा सेंट थरेसा स्कूल से हुई। वर्ष 2011 में उन्होंने एयरफोर्स ज्वाइन की। मन में अफसर बनने की चाह थी, जिसे अपनी लगन के बूते पूरा कर लिया है।
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कैटरिंग नहीं, सेना में जाना था
रजत पदक प्राप्त पश्चिम बंगाल के सौरभ के पिता समीर दास कैटरिंग का काम करते हैं। उनके लिए आसान था कि इसी काम में रम जाते। लेकिन, मन कहीं और ही रमा था। कई दफा एनडीए की परीक्षा दी पर सफल नहीं हुए। ऐसे में एएमसी में मेडिकल असिस्टेंट बने और अब अफसर बनने से चंद कदम दूर हैं।
चुनौतियों के बीच चुनी अलग राह
मानविकी में प्रथम शहीद भगत सिंह नगर निवासी इंद्रजीत के पिता निरवेर सिंह एक व्यवसायी थे। पिता के पेशे से इतर उन्होंने कामयाबी की राह तलाशी। वर्ष 2005 में वह एएमसी का हिस्सा बने। अगले ही साल पिता का साया सिर से उठ गया। लेकिन, जीवन के इस उतार-चढ़ाव के बीच वह अपना सपना साकार कर चुके हैं।
पिता से विरासत में मिला वर्दी से लगाव
खजुरा (नेपाल) निवासी और सर्विस सिल्वर मेडल प्राप्त चेतन थापा को सैन्य वर्दी से लगाव विरासत में मिला। पिता शेर बहादुर थापा भी भारतीय सेना से हवलदार रिटायर हैं। उनका सपना था कि बेटा अफसर बने। चेतन वर्ष 2011 में फौज में भर्ती हुए और एक जवान का बेटा अब अफसर बनने वाला है।
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न हार मानी न टूटा हौसला
कांस्य पदक प्राप्त व विज्ञान वर्ग में प्रथम दिल्ली निवासी जय कुमार दीक्षित ने अपने सपनों को उड़ान देने के लिए जिंदगी की तमाम चुनौतियों को मात दी। वर्ष 2005 में नौसेना में भर्ती जरूर हुए, लेकिन ख्वाहिश अफसर बनने की थी।
मन में संकल्प लिया और कदम मंजिल की ओर बढ़ा दिए। इस बीच वर्ष 2010 में हरियाणा के सांख्यिकी विभाग में कार्यरत पिता रामकिशन का देहांत हो गया। वह कहते हैं कि उनकी यह उपलब्धि पिता को श्रद्धांजलि है।
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