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    उद्धार को तरसे ऐतिहासिक बालेश्वर मंदिर

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Thu, 08 Dec 2016 07:00 AM (IST)

    चंद शासकों की ओर से 13वीं सदी में बनाया गया बालेश्वर मंदिर समूह संरक्षण के अभाव में अपना मूल स्वरूप खो चूका है। भगवान शिव के अलावा यहां पर कई अन्य देवी-देवताओं के मंदिर हैं।

    चंपावत, [जेएनएन]: बेजोड़ स्थापत्य कला और खजुराहो शैली में बना बालेश्वर मंदिर समूह संरक्षण के अभाव में अपना मूल स्वरूप खो चुका है। अगर समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए तो एतिहासिक महत्व का यह धरोहर और चंपावत की पहचान अतीत में खो जाएगा।

    चंद शासकों ने 13वीं सदी में बालेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। यहां पर मौजूद शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 1272 में बना है, जो चंपावत नगर के मध्य मोटर स्टेशन से लगा है। स्थापत्य कला के बेजोड़ इस मंदिर समूह की दीवारों पर अलग-अलग मानवों की मुद्राएं और देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां उकेरी गई हैं।

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    मंदिर समूह को एक के ऊपर एक इस तरह रखकर बेहतरीन इंजीनियरिंग की गई है। इसमें पत्थरों को इंटरलॉक कर इस तरह किया गया है कि आज भी स्थिर खड़े हैं। यहां पर्यटकों के साथ शोधार्थियों का आना-जाना लगा रहता है। इसके बावजूद पुरातत्व विभाग की अनदेखी का शिकार यह मंदिर बना हुआ है।

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    शिल्प कला का अद्भूत नमूना

    यह मंदिर शिल्प कला की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहां बनी हर मूर्ति भव्य एवं कलात्मक है। भगवान शिव के अलावा यहां पर कई अन्य देवी-देवताओं के मंदिर हैं। मां भगवती, चंपादेवी, भैरव, गणेश व मां काली की श्रृंगारिक मूर्तियां हैं। मंदिर से एक किमी दूर पूर्व नगर पंचायत कार्यालय परिसर में रानी का चबूतरा कलात्मक दृष्टि से एक अद्भूत नमूना है।

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    एतिहासिकता खोते जा रहा है बालेश्वर मंदिर अपनी
    इतिहासकार डॉ. हेम पांडेय ने बताया कि बालेश्वर मंदिर अपनी एतिहासिकता खोते जा रहा है। पुरातत्व विभाग ने संरक्षण के दौरान इतिहास के तथ्यों को ध्यान नहीं दिया। मंदिर परिसर के 100 मीटर के दायरे में निर्माण होने तथा सीमेंट का प्रयोग होने से मंदिर की भव्यता प्रभावित हो रही है। 1980 में पुरातत्व विभाग ने इसे अपने संरक्षण में लिया। उसके बाद तय हुआ था कि पुरातत्व विभाग मंदिर की देखरेख तथा मरम्मत करेगा।

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    रुहेलों ने किया था आक्रमण
    1742 में रुहेलों के आक्रमण को भी मंदिर ने झेला था। रुहेलों ने मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियों पर भी सितम ढाया था। खंडित की गई मूर्तियों को आज भी मंदिर परिसर के चारों तरफ देखा जा सकता।

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    पुरातत्व विभाग के साथ मिलकर किया जा रहा है काम
    अपर जिलाधिकारी हेमंत वर्मा ने बताया कि पुरातात्विक महत्व के स्मारकों के संरक्षण के लिए विशेष कार्य किये जा रहे है। यह हमारी पहचान से जुड़ा है। पुरातत्व विभाग के साथ मिलकर काम किया जा रहा है।

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