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    शंकराचार्य मठ के कोठे में विराजमान हुई आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी

    By Gaurav KalaEdited By:
    Updated: Sat, 19 Nov 2016 03:00 AM (IST)

    आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी छह माह के लिए जोशीमठ स्थित शंकराचार्य मठ के कोठे में विराजित की गई है। इसकी पहली पूजा आईपीएल पुणे के मालिक संजीव गोयनका ने की।

    बदरीनाथ, [जेएनएन]: चमोली जनपद में स्थित श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी जोशीमठ स्थित शंकराचार्य मठ के कोठे में विराजित की गई है। पांडुकेश्वर व जोशीमठ में भक्तों द्वारा आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी की पूजा अर्चना भी की गई। अब छह माह तक शीतकाल में आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी की पूजा श्रद्धालु जोशीमठ में कर सकेंगे।
    सुबह बदरीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी एवं योगध्यान बदरी मंदिर के पुजारी राजेंद्र डिमरी द्वारा पौराणिक धार्मिक रीति रिवाजों के अनुसार वेद मंत्रोच्चारण के बीच योगध्यान बदरी मंदिर में योगध्यान बदरी, उद्व जी, कुबेर जी की पूजा अर्चना की गई।

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    योगध्यान बदरी मंदिर में कुबेर जी की इस वर्ष की पहली महाभिषेक पूजा आइपीएल पूना के मालिक तथा कलकत्ता के उद्योगपति संजीव गोयंका की ओर से उनके प्रतिनिधि आदित्य पटवाल ने की। इसी के साथ बदरीनाथ धाम की शीतकालीन पूजा स्थली में मनुष्यों द्वारा पूजा का प्रारंभ हो गया है। प्रात: नौ बजे भगवान का राजभोग लगा। श्रद्धालुओं द्वारा भोग प्रसाद मुख्य पुजारी के साथ ग्रहण करने के बाद आदि जगत गुरु शंकराचार्य की गद्दी गाजे बाजे व गढ़वाल स्काउट के बैंडों की धार्मिक धुनों के बीच योगध्यान बदरी मंदिर से जोशीमठ के लिए रवाना हुई।

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    स्थानीय हक हकूकधारियों व गोविंदघाट के लोगों ने गोविंदघाट में मुख्य पुजारी ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी व शंकराचार्य की गद्दी का फूल मालाओं से स्वागत किया गया। इस मौके पर साथ में चल रहे श्रद्धालुओं को जलपान भी कराया गया।
    विष्णुप्रयाग में पूजा करने के बाद गद्दी जोशीमठ के मारवाड़ी स्थित सीमा सड़क संगठन के स्वागत कक्ष में पहुंची। यहां पर बीआरओ के अधिकारियों व जवानों द्वारा गद्दी का स्वागत कर पूजा अर्चना की गई। जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में गद्दी के पहुंचने पर स्थानीय ग्रामीणों व हक हकूकधारियों, समाज के विभिन्न समुदायों द्वारा पूजा अर्चना की गई। उसके बाद गद्दी को रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी के सानिध्य में नृसिंह मंदिर में पूजा अर्चना का कार्यक्रम हुआ। तदोपरांत भगवान का दोपहर का राजभोग लगाया गया। जिसे सभी श्रद्धालुओं ने प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। उसके बाद शंकराचार्य की गद्दी को शंकराचार्य मठ के कोठे में रखा गया।

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