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    तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हननः हाईकोर्ट

    By Nawal MishraEdited By:
    Updated: Wed, 10 May 2017 06:04 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। वैधानिक अधिकारों के विपरीत फतवा जारी नहीं हो सकता।

    तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हननः हाईकोर्ट

    इलाहाबाद (जेएनएन)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन तलाक व फतवे पर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 व 21 के तहत मुस्लिम महिलाओं सहित सभी नागरिकों के मूल अधिकारों का पर्सनल लॉ की आड़ में उल्लंघन नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि पर्सनल लॉ संवैधानिक दायरे के भीतर ही लागू होगा। धर्म के तहत नहीं। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की इज्जत न करने वाला समाज सिविलाइज्ड समाज नहीं हो सकता है।  

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    कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पति अपनी पत्नी का इस तरीके से तलाक नहीं दे सकता जिससे उसके बराबरी व जीवन के अधिकारों का हनन होता हो। कानून के माध्यम से पर्सनल लॉ हमेशा बदला जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि संवैधानिक अधिकारों के विपरीत फतवा जारी नहीं हो सकता। यह धार्मिक मुद्दे पर ही जारी हो सकता है। कानूनी अधिकार के विपरीत जारी फतवा मानने के लिए किसी को बाध्य भी नहीं किया जा सकता। यहां तक कि फतवा जारी कराने वाला भी मानने के लिए बाध्य नहीं है।

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    कोर्ट ने कहा कि लिंग के आधार पर मानवाधिकार व मूल अधिकारों के विपरीत भेदभाव नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यदि अपराध कारित होता है तो कोर्ट को अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट धारा 482 की शर्तों के अधीन आपराधिक मामले में हस्तक्षेप कर सकती है। 

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    पति के खिलाफ कायम इस्तगासे पर हस्तक्षेप से इन्कार

    कोर्ट ने श्रीमती सुमेला द्वारा पति अकील जमील के खिलाफ एसीजेएम की अदालत में कायम कराए गए इस्तगासे पर जारी सम्मन पर हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है और याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी ने आगरा के अकील जमील व दो अन्य की याचिका पर दिया है। याची ने पत्नी को आठ नवंबर 2015 को तीन तलाक दे दिया तथा दारूल इफ्ता जामा मस्जिद आगरा से फतवा भी ले लिया। शहर मुफ्ती आगरा ने तलाक मंजूर कर हराम घोषित कर दिया।

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    सुमेला अफगानी ने दहेज उत्पीडऩ मारपीट के आरोप में इस्तगासा दायर किया। मजिस्ट्रेट ने बयान दर्ज कर याची को सम्मन जारी किया। यह कहते हुए चुनौती दी गई कि पति-पत्नी संबंध खत्म होने के बाद दहेज उत्पीडऩ केस नहीं हो सकता। पत्नी ने लाखों रुपये जेवरात लेने के बाद भी दहेज के लिए प्रताडि़त करने का आरोप लगाया है। पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की तो मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी दी जिस पर शिकायती मुकदमा कायम है। 

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    संविधान के दायरे में काम करता मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

    तीन तलाक और फतवे पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणी पर देवबंदी उलमा का कहना है कि संविधान में सभी धर्मों के लोगों को धार्मिक आजादी प्राप्त है। इसके चलते वे अपने सभी धार्मिक क्रियाकलाप व परंपराओं का निर्वहन स्वतंत्रता के साथ कर सकते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समाज को जागरूक करने की लगातार कोशिश कर रहा है। दारुल उलूम जकरिया के वरिष्ठ उस्ताद और फतवा ऑन मोबाइल सर्विस के चेयरमैन मुफ्ती अरशद फारुकी ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में रहकर ही कार्य करता है। दारुल इल्म के मोहतमिम व वरिष्ठ मुफ्ती आरिफ कासमी ने कहा कि फतवा एक शरई राय है, जो शरीयत की रोशनी में दिया जाता है। फतवा देने वाले किसी मुफ्ती को यह अधिकार नहीं है कि वह फतवे को जबरन लागू करा सके। फतवा कभी भी संवैधानिक निर्णयों से टकराव नहीं करता। इसे मानने या न मानने का अधिकार फतवा लेने वाले व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है।