भारतीय माता-पिता ने अपने Gay बेटे की धूमधाम से की शादी
हम सभी से कहते फिरते हैं कि हम तो मॉर्डर्न हैं, लेकिन कितने ये कभी सोचा है नहीं मॉर्डर्न सिर्फ रहन-सहन या खाने पीने से नहीं बल्कि अपनी सोच बदलकर बन सकते हैं। असली मॉर्डर्न इसे कहते हैं, जरा पढ़ें इसे...
ये देश बदल रहा है लेकिन कितना...बदलते वक्त के साथ हमारे रहन-सहन का तरीका भी बदल गया है लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है हमारे सोचने का तरीका। हम रह तो 21वीं शताब्दी में रहे हैं लेकिन सोच वही पुरानी।
सोच, जिसके साथ हम जीते हैं और मर जाते हैं, लेकिन कभी उसे बदलने के लिए तैयार नहीं होते। जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दीजिये, ज्यादा मॉडर्न होने की जरूरत नहीं है। शादी एक लड़के और लड़की की होती है। पति की सेवा और बच्चों का ख्याल रखना एक औरत की ही जिम्मेदारी होती है। कुछ ऐसी ही सोच हमारे देश के ज्यादातर लोगों की है।
इसी वजह से हमारे देश में समलैंगिकता जैसा मुद्दा बहुत बड़ा बन जाता है। आज भी हम गे राइट्स के बारे में नहीं जानते। यहां तक कि समलैंगिक होना हमारे देश में जुर्म की तरह माना जाता है। अगर आप समलैंगिक हैं तो, या तो आप अलग तरह के इन्सान हैं या आप इंसान ही नहीं हैं।
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इसी सोच की वजह से ऋषि अग्रवाल की कहानी बनी है। ऋषि कनाडा में रहने वाले भारतीय हैं। कनाडा में रहने के बावजूद ऋषि की परवरिश पारम्परिक हिन्दू तौर-तरीके से हुई है। ऋषि हमेशा से हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ शादी करना चाहते थे।
लेकिन ऋषि के समलैंगिक (Gay) होने की वजह से उनके लिए ये बात इतनी आसान नहीं थी। उन्होंने स्कूल में एक सिख Gay लड़के के अपने परिवार द्वारा ठुकराए जाने की वजह से सुसाइड करने की खबर भी सुनी थी। उन्हें लगा कि उनके बारे में जानने के बाद उनके माता-पिता भी उन्हें घर से बेदखल कर देंगे।
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जब उन्होंने 2004 में, अपने माता-पिता को अपने समलैंगिक होने के बारे में बताया, तो उनके माता-पिता को बहुत बड़ा झटका लगा। लेकिन उन्हें घर से निकालने या कुछ कहने की बजाय उनके माता-पिता ने अगले 72 घंटे समलैंगिकता और समलैंगिक लोगों के बारे में जानने के लिए लगाये।
उन्होंने समलैंगिक लोगों के दोस्तों और परिवारों की मीटिंग्स में नियमित रूप से जाना शुरू कर दिया। जब ऋषि ने उनसे घर छोड़ जाने के लिए पूछा तो उन्होंने कहा कि नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं है। तुम आज भी हमारे बेटे हो और हम तुमसे प्यार करते हैं।
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जब ऋषि 2011 में अपने पार्टनर Daniel Langdon से मिले और उनसे शादी का फैसला किया, तो ऋषि के माता-पिता ने उनकी शादी हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ धूमधाम से की। ऋषि के पिता विजय ने बताया कि शादी कराने के लिए उन्हें 7 पंडितों से 'ना' सुननी पड़ी। इसके बाद उन्हें एक पंडित ने हां किया और शादी करवाई। उनकी शादी भी बाकी हिन्दू शादियों जैसी थी, जिसमें दूल्हों ने सामान्य रीति-रिवाज निभाए, जैसे अग्नि के फेरे लेना, जयमाला डालना और एक-दूसरे के नाम की मेहंदी लगाना।
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आज ऋषि और डेनियल अपनी कहानी से समलैंगिकता के मामले में भारतीय समुदाय की सोच बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं। क्योंकि हमें इस समाज और इसकी सोच को बदलने के लिए अगरवाल परिवार जैसे और परिवारों की जरूरत है, जिससे समलैंगिक लोगों को उनके परिवारों का साथ और अपनी जिंदगी खुल कर जीने का हक मिल सके।
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