बंगाल: जीना है जिसके साथ, वोट उसके साथ
'सारधा टू नारदा'. कोलकाता की सड़कों पर आप किसी को भी रोककर पूछ लें तो वह आपको सारधा से नारदा के बीच की पूरी कहानी सुना सकता है।
कोलकाता। 'सारधा टू नारदा'. कोलकाता की सड़कों पर आप किसी को भी रोककर पूछ लें तो वह आपको सारधा से नारदा के बीच की पूरी कहानी सुना सकता है। हालांकि कहानी सुनकर यह धारणा बनाना गलत हो सकता है कि उक्त व्यक्ति इन दोनों घटनाओं में मौजूद तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ ही वोट करने जाएगा। आगे कुरेदेंगे तो वह यह भी बता सकता है कि वसूली के कारोबार से जनता परेशान है, लेकिन इसका भी यह अर्थ नहीं है कि उसने चुनाव में बदलाव का ही मन बना लिया है।
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सच्चाई यह है कि जनता आखिर तक इंतजार करना चाहती है और जो जीतता हुआ दिखा उसी के साथ आगे बढ़ना चाहती है। कोलकाता हो या नक्सलवाद की चपेट में रहा जंगलमहल, चुनाव के मुद्दे दो ही हैं। विकास और भ्रष्टाचार। पर चर्चा सबसे च्यादा भ्रष्टाचार की है। चुनावी रैलियों का कोई भी भाषण 'सारधा टू नारदा' के बिना पूरा नहीं होता है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खड़गपुर से इसका जिक्र किया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दामन पर इन दो घटनाओं ने दाग का थोड़ा छींटा तो डाल ही दिया है। हालांकि ममता के व्यक्तिगत आचरण को लेकर पश्चिम बंगाल की जनता अभी भी आश्वस्त है, लेकिन आसपास के शक्तिशाली लोगों के इन घटनाओं में शामिल होने की बात को कोई अनदेखा करना नहीं चाहता है।
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कोलकाता के गोल्फ ग्रींस स्थित एक बैंक में कार्यरत शिशीर चौधरी कहते हैं कि हमारा रोज का लेना देना तो मुख्यमंत्री से नहीं होता है। हम तो उनसे मिलते हैं जो उनके आसपास रहते हैं। उनको भी तो ईमानदार बनाना चाहिए। वहीं डिजिटल ग्राफिक्स का छोटा सा व्यवसाय करने वाले अनिल बिश्वास कहते हैं कि विकल्प बहुत कम हैं। जो जीतता हुआ दिखेगा उसे ही वोट दे देंगे। आखिरकार रहना भी तो उनके ही साथ है। गौरतलब है कि सारधा चिटफंड घोटाले में तृणमूल नेताओं की मिलीभगत सामने आई थी। इस संबंध में जांच चल रही है। अब चुनाव से ऐन पहले नारद का स्टिंग ऑपरेशन सामने आया, जिसमें तृणमूल के नेता रिश्वत लेते दिखाए गए। ममता ने हालांकि इसे साजिश करार देते हुए खारिज कर दिया है, लेकिन तृणमूल के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने यह कहकर आग भड़का दी है कि आरोपों के घेरे में आए लोगों को फिलहाल इस्तीफा दे देना चाहिए।
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