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मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड को जांचेगा सुप्रीम कोर्ट

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नियमों की जांच करेगा सुप्रीम कोर्ट। मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव की सुनवाई के लिए कोर्ट की एक पीठ ने प्रधान न्यायाधीश से 'सक्षम पीठ' बनाने को कहा है।

By Sachin kEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2015 12:02 PM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2015 12:42 AM (IST)

नई दिल्ली। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नियमों की जांच करेगा सुप्रीम कोर्ट। मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव की सुनवाई के लिए कोर्ट की एक पीठ ने प्रधान न्यायाधीश से 'सक्षम पीठ' बनाने को कहा है। वह पीठ तलाक के मामलों या पति के दूसरी शादी करने के कारण मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव की सुनवाई करेगी।

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शीर्ष न्यायालय पहले ही केंद्र सरकार से ऐसे तरीकों का सुझाव देने को कह चुका है, जिससे दूसरे धर्मो की महिलाओं जैसा बर्ताव ही मुस्लिम महिलाओं के साथ भी सुनिश्चित हो सके। न्यायमूर्ति अनिल आर दवे और एके गोयल की पीठ ने बुधवार को मुस्लिम महिलाओं से संबंधित मुद्दों के हल के लिए एक जनहित याचिका सूचीबद्ध करने और मामले को नई पीठ के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है।

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आदेश में पीठ ने रेखांकित किया कि यह सिर्फ एक नीतिगत मामला ही नहीं है, बल्कि संविधान के तहत महिलाओं को मिले मूलभूत अधिकारों से संबंधित है। यह मुद्दा ¨हदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सामने आया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'यद्यपि लिंग भेदभाव का एक महत्वपूर्ण मुद्दा इस याचिका से सीधे तौर पर संबद्ध नहीं है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों से जुड़े लोगों के कुछ वकीलों द्वारा इसे उठाया गया है। इस मुद्दे के साथ लिंग भेदभाव पर भी विचार-विमर्श होगा।' पीठ ने कहा, 'संविधान के जिम्मेदारी लेने के बावजूद मुस्लिम महिलाएं भेदभाव का शिकार हैं।

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मनमाने ढंग से दिए जाने वाले तलाक और पहले शादी के बने रहने के दौरान ही पति के दूसरा विवाह कर लेने के खिलाफ कोई सुरक्षित उपाय न होने से इन महिलाओं को संरक्षण नहीं मिल पाता है। इसका परिणाम उनके मान-सम्मान और सुरक्षा के हनन के रूप में सामने आता है।'पीठ ने कहा, 'इस आशय के लिए, एक जनहित याचिका को अलग से सूचीबद्ध कर भारत के प्रधान न्यायाधीश के आदेश के अनुसार सक्षम पीठ के समक्ष प्रस्तुत की जाए।' इस संबंध में शीर्ष अदालत ने कहा कि अटार्नी जनरल (महान्यायवादी) और राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण को नोटिस जारी करें और 23 नवंबर तक इसका जवाब दाखिल करें। इस मामले में पेश हो चुके वकीलों को हम न्यायालय को अपने सुझाव देने की स्वतंत्रता देते हैं।

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