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पिता की SC से गुहार 'इंसाफ दिलाओ या फिर दो खुदकुशी की इजाजत'

बेटे की हत्या के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए 15 साल से भटक रहे निराश पिता ने सुप्रीम कोर्ट से क हा कि इंसाफ दो या फिर खुदकुशी की इजाजत।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2015 11:37 AM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2015 12:04 PM (IST)

नई दिल्ली (राकेश कुमार सिंह)। बेटे की हत्या के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए नवल किशोर शर्मा ने 15 साल तक उन तमाम जगहों के चक्कर काटे, जहां से न्याय मिलने की उम्मीद थी। निराश पिता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इंसाफ दो या फिर खुदकुशी की इजाजत।

हर दर दी दस्तक

इंसाफ के लिए नवल किशोर शर्मा ने जिला अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट ने न्याय दिलाने की कोशिश भी की, लेकिन कहीं न कहीं किसी खामी की वजह से अब तक न्याय नहीं मिला है।

SC से गुहार

हताश हो चुके बिजेंदर के पिता नवल किशोर ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर आत्महत्या करने की बात कही। इसके बाद उन्हें तिलकमार्ग थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। रातभर हवालात में रखने के बाद मंगलवार को उन्हें छोड़ दिया गया।

आंदोलन की नहीं मिली इजाजत

कुछ महीने पहले नवल ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू को चिट्ठी लिखकर पांच दिन तक आंदोलन करने की इजाजत मांगी थी। उन्होंने चिट्ठी में लिखा कि धरने पर वह अकेले होंगे। दिन में दो बार सुप्रीम कोर्ट के गेट पर माथा टेककर नाक रगड़कर प्रार्थना करेंगे।

कोई भी शोर-शराबा व अशांति नहीं फैलाएंगे। रोज सुबह, दोपहर, शाम 20-20 बार नाक रगड़ेंगे और पांच दिन में 300 बार नाक रगड़कर माथा टेककर न्याय की मांग करेंगे, लेकिन यह नौबत नहीं आई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बात सुन ली थी।

कोर्ट ने हत्या की ठीक से जांच न करने संबंधी नवल किशोर की चिट्ठी पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी को भेजकर जरूरी अनुपालन करने को कहा था, लेकिन बस्सी भी उन्हें सहयोग नहीं कर पाए।

यह है पिता का दर्द

नवल किशोर शर्मा के बेटे की हत्या की घटना बेहद झकझोरने वाली है। वह अलीपुर के रहने वाले हैं। उनका आरोप है कि 25 अक्टूबर 2000 को ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय करने वाले प्रमोद, राममेहर व प्रमोद के चाचा राजवीर, कृष्ण व श्रीप्रकाश उनके 17 साल के बेटे बिजेंदर कुमार को अगवा कर मुजफ्फरनगर लेकर गए।

वहां उसकी हत्या कर शव फेंक दिया। करेला थाना पुलिस को शव मिलने पर प्रमोद ने शिकायतकर्ता बनकर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया। पांचों उस केस में सरकारी गवाह बन गए। उस दौरान करेला में हरी सिंह भदौरिया एसओ थे।

पुलिस ने बिजेंदर के परिजनों को ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की। हरी सिंह ने केस को खोलने के लिए ङिाझाना थाने में चोरी के आरोप में बंद मोहकम, अभिमन्यु व सरजू को हत्या का आरोपी बना दिया। तीनों से पूछताछ नहीं की गई। झूठे आरोप में फंसा आरोपपत्र दायर कर दिया गया।

यह जानकारी जब नवल किशोर को मिली तो उन्होंने मुजफ्फरनगर के सीजीएम कोर्ट में कंप्लेन केस दायर किया। उनके समक्ष पांच गवाहों को पेश किया गया। उत्तर प्रदेश में न्याय मिलने में संदेह होने पर नवल किशोर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मुकदमे की सुनवाई दिल्ली की अदालत में स्थानांतरित करने की गुहार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2011 को मामले को दिल्ली की अदालत में स्थानांतरित कर जिला अदालत को केस से जुड़ा सारा रिकार्ड दिल्ली स्थानांतरित करने का आदेश दिया, लेकिन जिला अदालत ने प्रमोद की शिकायत पर दर्ज केस को ही दिल्ली भेजा और नवल के कंप्लेन केस की फाइल नहीं भेजी।

कोर्ट ने कई बार फाइल भेजने की मांग की

कड़कड़डूमा अदालत ने कई बार मुजफ्फरनगर अदालत को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कंप्लेन केस की फाइल भेजने की मांग की, लेकिन जिला अदालत ने फाइल नहीं भेजी।

जवाब में बताया गया कि इलाहाबाद हाइकोर्ट के आदेश के बिना मामले की फाइल नहीं भेजी जा सकती है। लिहाजा फर्जी केस पर सुनवाई कर कड़कड़डूमा अदालत ने 9 अप्रैल को तीनों आरोपियों को बरी कर दिया। इसके बाद नवल किशोर ने सुप्रीम कोर्ट के चक्कर काटने शुरू किए।


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