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    1993 मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेनन की फांसी बरकरार

    By anand rajEdited By:
    Updated: Thu, 09 Apr 2015 11:27 AM (IST)

    1993 मुंबई बम धमाकों का दोषी और फांसी की सजा पा चुका याकुब मेनन की पुनर्विचार याचिका खारिज हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने मेनन की याचिका खारिज करते हुए उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी है। इससे पहले राष्ट्रपति ने भी याकूब की दया याचिका खारिज कर दी थी।

    नई दिल्ली। 1993 मुंबई बम धमाकों का दोषी और फांसी की सजा पा चुका याकूब अब्दुल रज्जाक मेनन की पुनर्विचार याचिका खारिज हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने मेनन की याचिका खारिज करते हुए उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी है। उसने अपनी याचिका में फांसी की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने की अपील की थी। इससे पहले राष्ट्रपति ने भी याकुब की दया याचिका खारिज कर दी थी।

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    मेमन ने अपनी याचिका में फांसी की सजा निरस्त करने की मांग करते हुए दलील दीथी कि वह करीब 19 साल से जेल में है जो उम्रकैद की सजा के बराबर है, ऐसे में उसे फांसी नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे सजा दोहरी हो जाएगी। एक अपराध के लिए दो सजा नहीं हो सकती।

    इस मामले में विशेष टाडा अदालत ने 10 अन्य दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे पीठ ने यह कहते हुए उम्रकैद में बदल दिया था कि इन लोगों की भूमिका मेमन की भूमिका से अलग थी। इन 10 लोगों ने मुंबई में विभिन्न स्थानों पर आरडीएक्स विस्फोटक से लदे वाहन खड़े किए थे। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट मेमन भगोड़े अपराधी टाइगर मेमन का भाई है।

    मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि वह मुंबई में हुए सीरीयल बम धमाकों का मुख्य षडयंत्रकारी था। मुंबई में भीड़ भरे 12 स्थानों पर हुए इन विस्फोटों में 257 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हो गए थे।


    कोर्ट ने यह भी कहा था कि मौत की सजा का सामना कर रहे 10 अन्य दोषी समाज के कमजोर वर्ग के थे, उनके पास रोजगार नहीं था और वह लोग मुख्य षड्यंत्रकारियों के ‘गुप्त इरादों’ के शिकार बन गए। कोर्ट ने कहा था ‘मेमन और अन्य भगोड़े मुख्य षड्यंत्रकारी थे, जिन्होंने इस त्रासद कार्रवाई की साजिश रची थी। 10 अपीलकर्ता सिर्फ सहयोगी थे, जिनकी जानकारी उनके समकक्षों की तुलना में बहुत कम थी। हम कह सकते हैं कि याकूब ने और अन्य फरार आरोपियों ने निशाना लगाया जबकि शेष अपीलकर्ताओं के पास हथियार थे।

    फिल्म अभिनेता संजय दत्त को इस मामले में अवैध हथियार रखने के जुर्म में पांच साल की सजा सुनाई गई थी। उन्हें शेष साढ़े तीन साल की सजा काटने का आदेश दिया गया था।

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