अधिकांश जनता मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट पर अपेक्षाएं भारी
नरेन्द्र मोदी सरकार का दो साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। कई मोर्चे पर जनता ने उनके कामकाज को सराहा लेकिन कुछ क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
दिल्ली, [प्रशांत मिश्र]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो साल पूरा हो गया। यूं तो मोदी को मध्यावधि समीक्षा में बहुत विश्वास नहीं हैं। भारी जनअपेक्षाओं के साथ आए मोदी कहते रहे हैैं कि पांच साल पूरा होने पर वह हर सवाल का जवाब देंगे और पूरे देश को हक होगा कि वह हर कसौटी पर कसें। लेकिन जनता तो जनता है, वह हर रोज और हर वक्त अपना मन भी बनाती है और संतोष-असंतोष भी जताती है।
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सरकार के दो साल पूरा होने से कुछ दिन पहले 'दैनिक जागरण' के लिए प्रतिष्ठित सर्वे कंपनी 'हंसा रिसर्च' लोगों के पास पहुंची तो जनता ने खुलकर बात की। किसी क्षेत्र में मोदी सरकार को अव्वल करार दिया तो कहीं पासिंग मार्क देकर छोड़ दिया। कहीं पीठ थपथपाई तो कहीं थोड़़ा सतर्क कर दिया है।
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अंग्रेजी में एक कहावत है- वेल बिगन इज हाफ डन। सर्वे इसका इजहार करता है कि बुनियाद अच्छी पड़ी है। हर आयुवर्ग, पुरुष और महिला, हिंदी और गैर हिंदीभाषी, छोटे बड़े कुल 17 राज्यों में जनता की राय सरकार को अपने कामकाज से कुछ संतुष्ट होने का आधार देती है। लेकिन बकाया तीन साल में उसके सामने बड़ी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैैं।
इस व्यापक सर्वेक्षण से जो बात उभर कर सामने आई है वह यह है कि जनता ने दो साल पहले जो जनादेश दिया था वह उससे आज भी इत्तफाक रखती है। मोदी सरकार कुछ मामलों को छोड़कर उसकी उम्मीदों पर खरी उतर रही है। ऐसा नहीं कि सभी मसलों पर जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज की पीठ ही थपथपाई हो। गरीबी उन्मूलन, काला धन को वापस लाने, बेरोजगारी और खेत खलिहान के मामले में सरकार को केवल पासिंग मार्क ही मिले हैैं। जनता मानती है कि इन विभागों में मोदी सरकार को कुछ और मजबूती से कदम बढ़ाने होंगे।
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दरअसल नरेंद्र मोदी ने जब अपना प्रचार अभियान शुरू किया था तो उन्होंने अपने लिए मानक भी बहुत उंचे रखे थे। उनके लिए वही मानक अब चुनौती भी बन गए हैैं। जनता को अपेक्षाएं हैं कि मोदी ने जो वायदे किए थे, प्रचार के दौरान जो सपने दिखाए थे उन्हें हकीकत में बदलें। अभी दो साल बीते हैैं, तीन साल बाकी है। विरासत में मोदी को यूपीए-2 से बड़ी नाकामयाबियां, भ्रष्टाचार के तमाम मुंह बाए खड़े मसले, लुंज पुंज प्रशासनिक व्यवस्था हाथ लगी थी। लेकिन अपने सफर की उतार चढ़ाव भरी शुरूआत के साथ नरेंद्र मोदी ने जनता के मन में यह भावना गहरे से पैठा दी है कि उनकी न केवल नीयत अच्छी है बल्कि वह बिना रुके थके जनता के द्वारा देखे गए सपनों को साकार करने के लिए किसी हद तक जाने के लिए तैयार हैैं।
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अपने इस प्रयास में मोदी अपने मातहतों पर भी कोई मुरव्वत नहीं बख्शना चाहते। मोदी के चुनाव प्रचार में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा था। उसे दुरुस्त करने में वह अव्वल रहे हैैं। हंसा ने भ्रष्टाचार जैसे अमूर्त मुद्दे पर देश की जनता से जब राय मांगी तो लगभग पूरे देश में बहुमत का मानना था कि सरकार सही दिशा में बढ़ रही है। जनता की सोच है कि मोदी के गद्दी संभालने के बाद देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी भारत की साख बढ़ी है। भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर अब ज्यादा सम्मान के साथ लिया जाने लगा है।
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भारत का नया चेहरा सामने रखा गया है। पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक हर क्षेत्र में इसे बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा गया है। रक्षा से जुड़े मसलों पर भी जनता इस बात से मुतमईन है। देश की रक्षा की जरूरतों और साजो सामान की आपूर्ति में अब पहले जैसा विलंब नहीं हो रहा है। फैसले तेज गति से लिए जा रहे हैैं। देश की जनता ने थम्स अप करके सरकार के कामकाज को सराहा है। कुछ ही महीनों पहले सहिष्णुता और असहिष्णुता पर छिड़ी तीखी बहस के बावजूद जनता मानती है कि देश में अमन-चैन का माहौल पहले के मुकाबले बढ़ा है।
आंतरिक सुरक्षा मजबूत हुई है लेकिन इस मसले पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अन्यथा पठानकोट जैसी घटनाओं से बचा जा सकता था। देश में विकास के मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की गति को जनता ने सराहा है। बेबाकी के साथ यह आमराय है कि मोदी सरकार विकास के मुद्दे पर एकदम सही पटरी पर है। यदि विकास की यही रफ्तार रही तो देश के बुनियादी ढांचे को आने वाले सालो में और मजबूती मिलेगी। उच्च शिक्षा, अल्पसंख्यक कल्याण, महिला सशक्तिकरण जैसे सामाजिक मुद्दों पर सरकार ने झंडे गाड़े हैैं। सरकार की योजनाओं का असर दिखने लगा है। जाहिर है कि लोगों की आशाएं अपेक्षाएं और बढ़ेंगी और उसी अनुसार मोदी सरकार के लिए चुनौतियां भी ज्यादा होंगी।
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महंगाई जैसे ज्वलंत मामले में देश के आर्थिक पैरामीटर दुरुस्त हुए हैैं। मुद्रास्फीति नेगेटिव में गया है। लेकिन जनता अभी इसे महसूस नहीं कर पा रही है। कुछ खाद्य सामग्री की कीमतें सरकार के लिए भी सिरदर्द बनी रही हैैं और ऐसे में जनता मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के असर का अहसास नहीं कर पा रही है। 'महंगाई डायन भागे जात है वाली स्थिति आनी अभी बाकी है। महंगाई जैसे विषय पर केंद्र के साथ ही राज्यों की भी बराबर की जिम्मेदारी है लेकिन शायद जनता को अपेक्षा मोदी से बहुत अधिक है।
बहरहाल, औसत रूप से देश की जनता निराश नहीं है। शायद मुद्रा, स्टार्ट अप स्टैैंड अप जैसी योजनाओं ने उनके भरोसे को जिंदा कर दिया है। देश की रीढ़ माने जाने वाले किसानों से जुड़े सवालों को रखने पर जनता ने मोदी सरकार को कहीं पास कहीं फेल वाली स्थिति में रखा है। कुछ लोग यह मानते हैैं कि फसल बीमा योजना, बीज योजना, सिंचाई योजना जैसे कदम इस सरकार ने बढिय़ा उठाए हैैं लेकिन देश के किसानों को इतने भर से सबूरी नहीं हो सकती है। जाहिर सी बात है कि कृषि के क्षेत्र में सरकार के लिए बड़ी चुनौतियां अभी भी मुंंह बाए खड़ी है।
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