पाकिस्तान: आतंकियों ने भारतीय मूल के चार लोगों को उतारा मौत के घाट
आतंकवादियों ने पाकिस्तान के कराची में मजलिस पर हमला कर उप्र के मुजफ्फरनगर कवाल के मूल निवासी एक परिवार को उजाड़ दिया। आतंकियों ने एक ही परिवार के चार ...और पढ़ें
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरनगर : आतंकवादियों ने पाकिस्तान के कराची में मजलिस पर हमला कर उप्र के मुजफ्फरनगर कवाल के मूल निवासी एक परिवार को उजाड़ दिया। आतंकियों ने एक ही परिवार के चार लोगों की हत्या कर दी। इनके कई परिजन घायल भी हुए हैं।
कवाल गांव के केसर अब्बास के बड़े पुत्र नैयर मेहंदी (70) इंग्लैंड और इनसे छोटे नासिर (68) अमेरिका में नौकरी करते थे, जबकि केसर के तीन पुत्र नादिर, ताहिर और बाकर पाकिस्तान के कराची शहर के नाजिमाबाद में रहते हैं।
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इस बार भी करीब 20 दिन पूर्व नैयर व नासिर अपने परिवार के साथ मोहर्रम मनाने कराची आए हुए थे। बीते रविवार की रात मजलिस में इन पांचों के परिवार के अलावा रिश्तेदार भी शामिल थे। अचानक हेलमेट लगाए बाइक सवार दो युवकों ने अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं। मौके पर ही नैयर, नासिर, बाकर और उनका 20 वर्षीय पुत्र मुर्तजा मारा गया।
इस आतंकी वारदात के बारे में गांव वालों को मंगलवार की सुबह जानकारी मिली। पुत्रों व जवान पौत्र के शव देखने को तरस रहे वृद्ध केसर का रो-रोकर बुरा हाल है।
सोमवार की रात तीन पुत्रों और पौत्र की हत्या की सूचना फोन पर मिली तो बिना लाठी के चलने वाले इस शख्स की कमर टूट गई। बोले, अब लगता है कि लाठी के बिना नहीं चल सकूंगा। एक साथ चार जनाजे परिवार में निकले हैं, लेकिन अभी भी मन नहीं करता कि गांधी व नेहरू के देश से अपने आपको जुदा कर लूं।
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केसर अब्बास ने बताया कि वारदात से एक दिन पहले ही बड़े बेटे नैयर ने फोन पर कहा था कि अब्बा अपना ख्याल रखा करो या फिर मेरे पास आ जाओ, लेकिन मैने भी कह दिया कि बेटे आप वहीं रहो और मेरे ख्वाबों में आकर अपनी खैरियत बता दिया करो। मैं अपने वतन में ही खुश हूं। मुझे क्या पता था कि अब वह केवल ख्वाबों में ही आने के लिए इतनी दूर चला जाएगा।
गम का पहाड़ टूटने के बावजूद केसर अब्बास का कहना है कि मुझे अपने मुल्क से बेपनाह मोहब्बत है। वतन के आगे परिवार का मोह कोई मायने नहीं रखता। इसी मिट्टी में पैदा हुआ हूं और इसी मिट्टी में खाक होने की तमन्ना है।
गांव के एक कोने में पुराने से मकान में रहने वाले 99 वर्षीय केसर अब्बास कुछ जुदा सोच रखते हैं। बताते हैं, पांचों पुत्रों ने कई बार उन्हें साथ ले जाने की जिद की। पाकिस्तान में रहने वाले बेटे एक बार उन्हें अपने साथ ले भी गए थे, लेकिन वह वतन की मिट्टी और गांव की गलियां नहीं भुला सके। कुछ दिन ठहरने के बाद वापस घर चले आए।

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