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शिक्षा मंत्रालय को समावेशी चेहरा देने की पहल, विवादों से बचने पर होगा जोर

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी प्रकाश जावडेकर को दिए का कदम मंत्रालय में एक समावेशी चेहरा देने की पहल के रूप में देखा जा रहा है।

By kishor joshiEdited By: Published: Wed, 06 Jul 2016 11:37 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jul 2016 11:52 PM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अगर आप जानना चाहते हैं कि बेहद महत्वपूर्ण शिक्षा मंत्रालय से स्मृति इरानी को हटा कर प्रकाश जावड़ेकर को क्यों लाया गया तो मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्री के तौर पर किए गए इरानी के आखिरी ट्वीट को ध्यान से पढ़ लें। इसमें उन्होंने अधिकारियों का धन्यवाद अदा किया है और साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण को पूरा करने की बात की है।

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दरअसल, यही वे अहम मोर्चे हैं, जिन पर वे पूरी तरह खरी नहीं उतर सकीं। राजनीतिक वर्ग हो या नौकरशाही, शिक्षा के क्षेत्र में सब को साथ ले कर चलने और प्रधानमंत्री के सुधार के एजेंडे को उनकी टीम के साथ मिल कर लागू करवाने के इरादे से ही यह अहम बदलाव किए गए हैं।

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गुजरात से राज्य सभा में चुन कर आईं स्मृति इरानी बेहद प्रभावशाली वक्ता और तेज-तर्रार नेता के साथ ही एचआरडी मंत्री के तौर पर बेहद सक्रिय प्रशासक भी साबित हो रही थीं। अपने दो साल के कार्यकाल में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में आइटी आधारित अनेक प्रयासों के जरिए पारदर्शिता और कार्यकुशलता लाने के कई अहम प्रयास किए। लेकिन उनकी बेहद आक्रामक छवि की वजह से यह संदेश लगातार गया कि शिक्षा जैसे अहम क्षेत्र में भी सरकार सबको साथ ले कर चलने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही। जबकि दूसरी तरफ जावड़ेकर कभी सबसे ज्यादा विवादों में रहने वाले पर्यावरण मंत्रालय के काम को भी चर्चाओं और विरोधियों के हमलों से बचाते हुए चुपचाप काम करते रहे।

जानकार बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए स्मृति की डिग्री या ज्योतिषी के पास जाने जैसे विवाद की कोई अहमियत नहीं थी। इसी तरह हैदराबाद विश्वविद्यालय और जेएनयू मामलों में भी इरानी ने ज्यादातर पार्टी लाइन का उल्लंघन नहीं किया। लेकिन इन मामलों में वे विवाद की आग को थाम पाने में कामयाब नहीं हुईं। इसी तरह विभिन्न आइआइटी के निदेशकों से ले कर न्यूक्लियर वैज्ञानिक अनिल काकोदर तक से अहम के टकराव की वजह से लगातार उनकी छवि अनावश्यक टकराव मोल लेने वाले की बनी।

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मंत्रालय के एक सूत्र कहते हैं, 'नई शिक्षा नीति की घोषणा जैसी अहम उपलब्धि आसानी से उनके खाते में शामिल हो सकती थी। मगर एक रिटायर्ड अधिकारी के साथ टकराव ने इसका मसौदा तक औपचारिक रूप घोषित नहीं किया जा सका।' दरअसल, पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम के नेतृत्व में उन्होंने नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति बनाई जरूर, लेकिन अंतिम समय में उनका योगदान स्वीकार करने से मना कर दिया। ऐसे में उनकी टीम की ओर से महीनों की मेहनत के बाद तैयार किया गया मसौदा सार्वजनिक किया ही नहीं जा सका।

उधर, पर्यावरण मंत्रालय का काम देख रहे जावड़ेकर को कैबिनेट मंत्री का दर्जा तो नहीं ही था। मगर उन्होंने मंत्रालय के सुधारवादी एजेंडे को लागू करने से ले कर तमाम विवादास्पद मामलों में सीधे पीएमओ के निर्देश में काम किया। जबकि इरानी भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आइआइएम) को स्वायत्तता देने से ले कर प्रस्तावित विश्व स्तरीय विश्वविद्यालयों की स्थापना के मामले तक में अक्सर पीएमओ से टकराती रहीं। ऐसे में मंत्रालय से विदा लेते हुए ईरानी ने अपने अंतिम ट्वीट में जो कहा है, उसे उनकी कसक के रूप में भी लिया जा सकता है।

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उन्होंने कहा, 'मैं मंत्रालय के अधिकारियों का धन्यवाद अदा करती हूं कि उन्होंने हर किसी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को पूरा करने में अनवरत सहयोग किया।' अब नए मंत्री जावड़ेकर के लिए शिक्षा क्षेत्र में सबको साथ ले कर चलने और पीएमओ के साथ मिल कर तेजी से सुधार लागू करने की अहम चुनौतियां होंगी।


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