Move to Jagran APP

कई घरों की खुशियां छीन चुकी है यह 'ब्लू व्हेल', आप ऐसे करें बचाव

माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चे को क्वालिटी टाइम दें। उन्हें बच्चे से लगातार बात करते रहना चाहिए, ताकि बच्चा आगे से उन्हें अपनी हर बात बता सके।

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 17 Aug 2017 05:30 PM (IST)Updated: Thu, 17 Aug 2017 06:28 PM (IST)
कई घरों की खुशियां छीन चुकी है यह 'ब्लू व्हेल', आप ऐसे करें बचाव
कई घरों की खुशियां छीन चुकी है यह 'ब्लू व्हेल', आप ऐसे करें बचाव

जागरण स्पेशल, [स्पेशल डेस्क]। केरल में 26 जुलाई को 16 वर्षीय लड़के मनोज सी मानू ने खुदकुशी कर ली। केरल में ही 22 वर्षीय आईटीआई छात्र वन सावंत ने भी मौत को गले लगा लिया। मणिपुर के पूर्व मंत्री के बेटे 19 वर्षीय सिद्धार्थ सिंह ने भी ऊंचाई से छलांग लगा दी। 9वीं कक्षा में पढ़ने वाला 14 वर्षीय मनप्रीत भी मुंबई के अंधेरी में बिल्डिंग से कूद गया और असमय काल के गाल में समा गया। यह कुछ नाम भर हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से खूनी 'ब्लू व्हेल' गेम ने देशभर में अभिभावकों को चिंता में डाला हुआ है। इन युवाओं की मौत ने एक ऐसी दहशत पैदा कर दी है, जिसके बाद सरकार ने भी कड़े कदम उठाते हुए तमाम वेबसाइटों से इस 'सुसाइड गेम' के लिंक हटाने को कहा है।

loksabha election banner

दुनियाभर में दर्जनों बच्चों व युवाओं की जान ले चुका यह गेम किसी त्रासदी से कम नहीं है। अगर आप भी ऐसे बच्चों के माता-पिता हैं, जो हर समय कंप्यूटर या मोबाइल में खोए रहते हैं तो अब सावधान हो जाएं। अब भी नहीं चेते तो कहीं देर न हो जाए। सरकार ने तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से इसके लिंक हटाने का निर्देश देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। अब आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपने बच्चों पर नजर रखें और उन्हें इस तरह से आत्मघाती गेम्स से दूर रखें। 

पिछले दो हफ्तों के दौरान ही महाराष्ट्र के सोलापुर में एक, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक और इंदौर में एक व उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक बच्चे को मौत के मुंह से निकाला गया है। सोलापुर में जहां 14 वर्षीय छात्र को पुलिस ने उस वक्त हिरासत में लिया, जिस वक्त वह संभवत: आत्महत्या के लिए जा रहा था। वहीं इंदौर में 13 वर्षीय छात्र स्कूल के तीसरे मंजिल की एक खिड़की से कूदने की कोशिश कर रहा था। उसके दोस्तों ने उसे किसी तरह से रोका और बाद में फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर ने उसे बचाया। भोपाल और देहरादून में छात्र के गुमसुम होने व अजीब से व्यवहार के चलते प्रिंसिपल ने उनकी काउंसिलिंग करवाई और किसी तरह इन छात्रों की जान बच गई।

मशहूर साइक्लॉजिस्ट प्रणिता गौड़ ने इस बारे में Jagran.Com से बात की। उन्होंने बताया कि शुरुआत में बच्चे सोचते हैं कि एक बार करके देखते हैं क्या होता है? वे सोचते हैं कि एक-दो बार खेलेंगे, फिर हम छोड़ देंगे। फिर बच्चों के ग्रुप बन जाते हैं और आपस में गेम्स की लेवल को लेकर भी उनमें आपसी प्रतियोगिता होने लगती है।

यह इंटरनेट पर खेली जाने वाली एक गेम है, जो दुनियाभर के कई देशों में उपलब्ध है। इस गेम को खेलने वाले शख्स के सामने एडमिनिस्ट्रेटर कई तरह के चैलेंज रखता है। यह सभी चैलेंज 50 दिन के भीतर पूरे करने होते हैं। इसमें अंतिम चैलेंज के रूप में आत्महत्या को रखा गया है। माना जाता है कि यह गेम बीच्ड व्हेल (आत्महत्या करने वाली व्हेल) से प्रेरित होकर बनाई गई है। इस गेम की शुरुआत रूस में साल 2013 में हुई थी। इस गेम से पहली मौत 2015 में हुई थी। साल 2016 में बच्चों के बीच यह गेम खासा लोकप्रिय हो गया। 

'द ब्लू व्हेल गेम' को 25 साल के फिलिप बुडेकिन ने साल 2013 में बनाया था। रूस में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं के बीच उसे गिरफ्तार किया गया और बाद में फिलिप को जेल की सजा हो गई। हालांकि, फिलिप दावा करते हैं कि यह गेम समाज में सफाई के लिए है। खुदकुशी करने वाले बायोलॉजिकल वेस्ट होते हैं। बताया जाता है कि फिलिप बुडेकिन साइक्लॉजी का छात्र था और उसे युनिवर्सिटी से निकाल दिया गया था। डॉ. ब्रूटा ने बताया कि फिलिप के बारे में उन्होंने ज्यादा नहीं पढ़ा तो नहीं है, लेकिन उनके अनुसार वह एक सिक पर्सनैलिटी है। अरुणा ब्रूटा हैरानी जताते हुए कहती हैं कि आखिर इस गेम को चलाने का लाइसेंस कैसे मिल गया। 

यह भी पढ़ें: वाह रे पाकिस्‍तान! हिजबुल को आतंकी संगठन कहने पर जता रहा दुख

मुंबई, केरल और दिल्ली में इस खतरनाक गेम के चलते अब तक कम से कम बच्चों व युवाओं की जान जा चुकी है। जबकि कई अन्य छात्रों को ऐसी स्थिति से बचाया गया है, जबकि वे खुदकुशी करने के लिए जा रहे थे।

- इंटरनेट पर खेले जाने वाले इस गेम में 50 दिन तक रोज एक चैलेंज बताया जाता है। 

- हर चैलेंज को पूरा करने पर हाथ पर एक कट करने के लिए कहा जाता है।

- चैलेंज पूरे होते-होते आखिर तक हाथ पर व्हेल की आकृति उभरती है।

- चैलेंज के तहत हाथ पर ब्लेड से एफ-57 उकेरकर फोटो भेजने को कहा जाता है।

- सुबह 4.20 बजे उठकर हॉरर वीडियो या फिल्म देखने के लिए और क्यूरेटर को भेजने का भी चैलेंज इसमें है।

- हाथ की 3 नसों को काटकर उसकी फोटो क्यूरेटर को भेजना भी एक चैलेंज है।

- सुबह ऊंची से ऊंची छत पर जाने को इस गेम में कहा जाता है।

- कागज की सीट पर व्हेल बनाकर क्यूरेटर को भेजना होता है।

यह भी पढ़ें: यहां पत्थर फेंककर एक-दूसरे का खून बहाते हैं और फिर गले मिलते हैं लोग

- चार स्टेज में छत पर जाना होता है।

- क्यूरेटर के द्वारा भेजे गए संगीत को सुनना भी एक चैलेंज है।

- व्हेल बनने के लिए तैयार होने पर अपने पैर में 'यस' उकेरना होता है।

- तैयार होने पर खुद को चाकू से कई बार काटकर सजा देना भी चैलेंज का हिस्सा है।

- सभी चैलेंज पूरे करने वाले को खुदकुशी करनी पड़ती है।

भारत सरकार ने गूगल, फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, माइक्रोसॉफ्ट, याहू व अन्य तमाम इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से इस (आत्मघाती) गेम के लिंक तुरंत हटाने को कहा है।

डॉ. प्रणिता गौड़ ने बताया- बच्चे में विड्रॉवल सिमटम्स दिखते हैं, उसके अंदर एंग्जाइटी रहती है। ऐसे गेम बच्चा जब भी खेलता है वह पैरेंट्स से छिपकर खेलता है। बच्चे का स्वभाव उग्र होने लगता है। वह खाना-पीना छोड़ देता है, पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लगता। बच्चा डिप्रेशन में जाने लगता है। बच्चा अपने माता-पिता और दोस्तों से दूरी बना लेता है। जब भी बच्चों में ऐसा कोई दिखे तो माता-पिता को चाहिए कि उसे कभी अकेला न छोड़ें। रात को भी उसे अकेले न सुलाएं। बच्चे के आसपास रहें और उसे बिल्कुल भी यह एहसास न होने दें कि आप उस पर नजर रख रहे हैं। बच्चे को डांटना और मारना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे स्थिति और बिगड़ेगी ही। ऐसे बच्चे को प्यार की जरूरत होती है। उसे लगना चाहिए कि उसके माता-पिता, दोस्त और सामाज उसके साथ हैं।

डॉ. प्रणिता गौड़ कहती हैं कि ऐसे बच्चों में पर्सनेलिटी फैक्टर बहुत अहमियत रखती है। कुछ लोगों की पर्सनेलिटी ऐसी होती है कि वे एक खास स्टेज के बाद वापस नहीं आ पाते। शुरू से ही माता-पिता बच्चों को अच्छे-बुरे के बारे में बताते रहें तो बच्चे ऐसे गेम्स के आदी नहीं बनेंगे। कुछ लोगों कि पर्सनेलिटी होती है कि अगर वे किसी खास स्टेज से वापस आ जाएंगे या पीछे हटेंगे तो उन्हें लगता है कि समाज में उनकी वो एक्सेप्टेंस नहीं रहेगी, वो स्टेटस नहीं रहेगा।

डॉ. गौड़ कहती हैं, जब बच्चे गेम खेलते हैं तो ज्यादातर माता-पिता या तो बच्चे को मना कर देते हैं या उससे गेमिंग डिवाइस छीन लेते हैं। वे यह नहीं देखते कि बच्चा खेल क्या रहा है। माता-पिता को बच्चे के साथ उसके कामों में शामिल होना चाहिए, भले ही वह गेम ही क्यों न खेल रहा हो। उन्हें बच्चे को क्वालिटी टाइम देना चाहिए, बच्चे से लगातार बात करते रहना चाहिए, ताकि बच्चा आगे से उन्हें अपनी हर बात बता सके। इस तरह से आप अपने बच्चे की साइक्लॉजी को समझ सकते हैं और उसे गाइड भी कर सकते हैं।

यह भी पढें: नवाज शरीफ को नहीं रहा अपने भाई शाहबाज पर भरोसा, या है कुछ और बात

इस बारे में मशहूर मनोवैज्ञानिक डॉ. अरुणा ब्रूटा ने Jagran.Com से खास बातचीत में कहा, ऐसे बच्चों की पर्सनेलिटी चैक करनी होगी, जो इस गेम को ढूंढते हैं क्योंकि सारे बच्चे ऐसा नहीं करते। उन्होंने माता-पिता को ताकीद करते हुए कहा कि इस उम्र में उनकी भूमिका ज्यादा बढ़ जाती है और उन्हें बच्चों का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए। जब बच्चा ऐसी गेम डाउनलोड करता है तो वह उसे ज्यादा वक्त देगा। वह परिवार के साथ वक्त नहीं बिताएगा, वह बाहर खेलने नहीं जाएगा और खुद को दोस्तों से भी अलग कर लेगा। ऐसे वक्त में घरवालों को सचेत हो जाना चाहिए और बच्चे को तुरंत किसी मनोवैज्ञानिक के पास लेकर जाना चाहिए। ऐसे बच्चों की पर्सनेलिटी डिप्रेसिव होती है। 

यह भी पढ़ें: वाह रे इमरान खान, 64 वर्ष की उम्र में भी इनसे संजोए हैं शादी के सपने!  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.