संरक्षण के नाम पर ये क्या कर दिया?
हुमायूं के मकबरे में कंजरवेशन (संरक्षण) के नाम पर नवीनीकरण कराने का आरोप लगा है। मकबरे के प्रवेश द्वार में भी काफी बदलाव कर दिया गया है। इसे लेकर पुरातत्वविद नाराज हैं। उनका कहना है कि कंजरवेशन का मतलब स्मारक जिस स्थिति में है, उसे उसी स्थिति में बचाए रखना है। मगर यहां तो नवीनीकरण कर
नई दिल्ली, [वीके शुक्ला]। हुमायूं के मकबरे में कंजरवेशन (संरक्षण) के नाम पर नवीनीकरण कराने का आरोप लगा है। मकबरे के प्रवेश द्वार में भी काफी बदलाव कर दिया गया है। इसे लेकर पुरातत्वविद नाराज हैं। उनका कहना है कि कंजरवेशन का मतलब स्मारक जिस स्थिति में है, उसे उसी स्थिति में बचाए रखना है। मगर यहां तो नवीनीकरण कर दिया गया है जो आपत्तिजनक है। इसकी शिकायत यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) में करने की तैयारी चल रही है। उधर स्मारक का संरक्षण करा रहे आगा खां ट्रस्ट ने पुरातत्वविदों द्वारा उठाए गए सवालों का बेबुनियाद बताया है।
हुमायूं के मकबरे में आगा खां ट्रस्ट ने 2007 में एएसआइ (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के साथ हुए करार के तहत कंजरवेशन का काम शुरू कराया था। काम चल ही रहा था कि 2009-10 में बड़े स्तर पर शुरू किए गए कंजरवेशन के कार्य पर एएसआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रिपोर्ट एएसआइ मुख्यालय को दी थी। मगर बताया जाता है कि केंद्र सरकार के एक मंत्रालय के दबाव में रिपोर्ट को दबा दिया गया। उसके बाद से एएसआइ के किसी अधिकारी ने इस बारे में हिम्मत नहीं जुटाई। 2009-2010 में ही एनडीएमसी (नई दिल्ली नगर पालिका परिषद) की सिटी सेंटर जैसी इमारतों का डिजाइन तैयार करने वाले कुलदीप सिंह ने कंजरवेशन के नाम पर कराए जा रहे कार्य का विरोध किया है। उनका कहना है कि स्मारक के फाउंडेशन को उखाड़ दिया गया है। स्मारक के आर्च में सीलन आ रही है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के यहां आने पर उस पर रंगरोगन करा दिया गया था। मगर यह अब फिर से बर्बाद हो गया है। कुलदीप सिंह कहते हैं कि उन्होंने 2009 में भी आगा खां ट्रस्ट व एएसआइ को पत्र लिखा तथा काम बंद किए जाने के लिए कहा। कुलदीप सिंह कहते हैं कि उस शिकायत के बाद एएसआइ ने इस मसले पर अधिकारियों की बैठक बुलाई थी।
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उन्होंने इसमें गड़बड़ी वाले सभी बिंदु उठाए मगर उस पर कार्रवाई नहीं हुई उल्टे उन्हें ही धमकियां मिलने लगीं। वह कहते हैं कि इस मामले को लेकर पूर्व शहरी विकास मंत्री जगमोहन से भी मिले हैं। कुलदीप कहते हैं कि वह चुप नहीं बैठने वाले हैं। तथ्य जुटाए जा रहे हैं। यूनेस्को में इसकी शिकायत की जाएगी।
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1861 में बने एएसआइ के लिए मैनुअल तैयार करने वाले पुरातत्वविद जॉन मार्शल ने मैनुअल में इस बात का स्पष्ट जिक्र किया है कि स्मारक का केवल कंजरवेशन ही कराया जा सकता है। जबकि हुमायूं के मकबरे में स्मारक का नवीनीकरण करा दिया गया है जो बिल्कुल गलत है। यूनेस्को में शिकायत होती है तो यूनेस्को इस बारे में कार्रवाई कर सकता है। यहां तक कि इस स्मारक से विश्व विरासत का तमगा छिनने का भी खतरा है। -पद्मश्री डॉ. आरएस बिष्ट, पूर्व संयुक्त महानिदेशक, एएसआइ
हुमायूं के मकबरे की छत से हमने 10 लाख किलो मलबा हटाया है। स्मारक को नया जीवन दिया है। हम नियम कानून के आधार पर काम करा रहे हैं। सभी कार्य के लिए एएसआइ से स्वीकृति ली है। दुनिया भर में काम की प्रशंसा हो रही है। इस कार्य के लिए यूनेस्को से प्रशंसा पत्र मिल चुका है। -रतीश नंदा, संयोजक, आगा खां ट्रस्ट दिल्ली चैप्टर
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