Move to Jagran APP

शौहर के मकबरे में समाई है बेगम की मोहब्बत

बदायूं [लोकेश प्रताप सिंह]। महबूबा की याद में तो बहुतों ने मकबरे या स्मारक बनवाए होंगे, लेकिन बदायूं में एक ऐसा मकबरा है, जिसे बेगम ने शौहर की याद में बनवाया था। यह मकबरा भी 1610 ई. में औरंगजेब के जमाने में तामीर हुआ। ये आलीशान रोजा [मकबरा] नवाब इलियास खां की याद में उनकी महबूबा बेगम ने बनवाया था। इसकी वास्तुकला शैली काफी हद

By Edited By: Published: Mon, 20 Jan 2014 07:32 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2014 09:33 PM (IST)
शौहर के मकबरे में समाई है बेगम की मोहब्बत

बदायूं [लोकेश प्रताप सिंह]। महबूबा की याद में तो बहुतों ने मकबरे या स्मारक बनवाए होंगे, लेकिन बदायूं में एक ऐसा मकबरा है, जिसे बेगम ने शौहर की याद में बनवाया था। यह मकबरा भी 1610 ई. में औरंगजेब के जमाने में तामीर हुआ। ये आलीशान रोजा [मकबरा] नवाब इलियास खां की याद में उनकी महबूबा बेगम ने बनवाया था। इसकी वास्तुकला शैली काफी हद तक ताजमहल जैसी है। महबूबा बेगम के बारे में बताया जाता है कि वे मुमताज महल की रिश्ते में खालू थीं। इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने की फिक्र न तो पुरातत्व विभाग को है और न ही पर्यटन विभाग को।

loksabha election banner

पढ़ें : गुमनामी के साज में मिला एक 'ताज'

शहर के भीतर जवाहरपुरी मोहल्ले में आबादी के बीच निहायत खूबसूरत आलीशान रोजा है, जिसे लोग नवाब इखलास खां के रोजे के रूप में जानते हैं। जमीन से छह फिट की ऊंचाई पर बने रोजे की लंबाई 153 फिट और इतनी ही चौड़ाई है। चारों कोनों पर चार सुंदर बुर्जियां हैं। लखोरी ईट से बने मोटी दीवार वाले मुख्य भवन की लंबाई और चौड़ाई 77-77 फिट है। दालान के मध्य में बड़ा हॉल है, उसके ऊपर ऊंची गुंबद है। हॉल में पांच कब्रों की ताबीज है, जिसके नीचे असली कब्रें हैं। इसमें से एक कब्र तो नवाब इखलास खां की है और बाकी कब्रें उनके परिवार के लोगों की हैं। असली कब्रों तक जाने के सुरंगनुमा रास्ते उत्तर व दक्षिण दिशा से थे, जिन्हें अब बंद कर दिया गया है। भवन के चारों कोनों पर चार घुमावदार जीने [सीढि़यां] हैं, जो ऊपर जाकर मीनार की शक्ल में बदल जाते हैं। औरंगजेब के शासनकाल में नवाब इखलास खां बदायूं के सूबेदार थे, जिन्हें नवाब की उपाधि मिली थी।

पढ़ें : एक बहन को मिला ताज, दूसरी को सिर्फ अंधियारा

बताते हैं कि नवाब की बीबी अपने शौहर से बेइंतहा प्यार करती थीं। हिजरी 1071 में जब नवाब का अचानक इंतकाल हो गया तो बेगम ने सन 1610 ई. में इस मकबरे को उन्ही की याद में तामीर करवाया था।

इतिहासकार जिया अली खां अशरफी ने अपनी पुस्तक उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले का हस्ती बूद में इस मकबरे का वर्णन किया है। इसके बाद दिलकश बदायूंनी से लेकर डॉ. गिरिराज नंदन तक बदायूं के बारे में लिखने वाले सभी इतिहासकारों ने इस मकबरे की खूबसूरती का बखान किया है। पुरातत्व विभाग ने इस मकबरे को संरक्षित करने का बोर्ड तो लगा रखा है, लेकिन देख-रेख व रख-रखाव के अभाव में यह उजड़ता जा रहा है।

इतिहासकार प्रो. गिरिराज नंदन के मुताबिक यह दुनिया का पहला ऐसा मकबरा है जिसे नवाब शौहर की याद में बेगम ने तामीर करवाया था। यह किसी महिला द्वारा खानदान की याद सहेजने का अनूठा उदाहरण है। अगर पर्यटन विभाग थोड़ी रुचि दिखाए तो यह ऐतिहासिक इमारत पर्यटकों को आसानी से खींच सकती है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.