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एक बहन को मिला ताज, दूसरी को सिर्फ अंधियारा

दो फूल संग फूले, किस्मत जुदा-जुदा है। इक का बना है सेहरा, इक कब्र पर चढ़ा है। सब किस्मत का खेल है। बेनजीर हुस्न की मलिका मुमताज महल की यह किस्मत ही थी कि उससे शहंशाह-ए-हिंद शाहजहां को इश्क हो गया और वे उनकी बेगम बन गईं। बेगम मुमताज महल से बेपनाह मुहब्बत करने वाले इस मुगल बादशाह ने आगरा में यमुन

By Edited By: Published: Mon, 06 May 2013 02:49 PM (IST)Updated: Mon, 06 May 2013 04:46 PM (IST)

अनिल कुमार, पटना सिटी।

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दो फूल संग फूले, किस्मत जुदा-जुदा है।

इक का बना है सेहरा, इक कब्र पर चढ़ा है।

सब किस्मत का खेल है। बेनजीर हुस्न की मलिका मुमताज महल की यह किस्मत ही थी कि उससे शहंशाह-ए-हिंद शाहजहां को इश्क हो गया और वे उनकी बेगम बन गईं। बेगम मुमताज महल से बेपनाह मुहब्बत करने वाले इस मुगल बादशाह ने आगरा में यमुना के किनारे उनकी मजार पर एक नायाब इमारत की तामीर करा दी जिसे दुनिया ताजमहल के नाम से जानती है। आज भी दुनिया भर से लाखों लोग हर साल इस शाही इश्क की यादगार को देखने आते है। वहीं मुमताज की सगी बहन मल्लिका बानो की किस्मत तो देखिए कि राजधानी पटना के चौक थाना क्षेत्र में गंगा के किनारे उसकी मजार अंधेरे में एक चहारदीवारी के भीतर गुमनामी में पड़ी हुई है।

पटना सिटी में विश्व प्रसिद्ध तख्त श्री हरिमंदिर से महज 70 गज की दूरी पर गंगा किनारे एक व्यवसायी की चहारदीवारी के अंदर चुपचाप सो रही हैं मुमताज की बड़ी बहन मल्लिका बानो उर्फ हमीदा बानो। परिवार के एस.एम. फिरोद-उल-हक कहते हैं कि मल्लिका बानो की मजार तक जानकारी के अभाव में कम ही लोग आ पाते हैं। उनके अलावा स्थानीय लोग भी बताते हैं कि क्षेत्र में मल्लिका और सईफ की मुहब्बत के भी चर्चे थे, लेकिन दुर्भाग्यवश सूबेदार सईफ खान अपनी बेगम के स्मारक को शाहजहां के ताजमहल जैसा रूप न दे सके।

इतिहासकारों की मानें तो शाहजहां का पटना सिटी से नजदीकी रिश्ता रहा है। गद्दीनशीन होते ही उन्होंने अपने रिश्तेदार सईफ खान को बिहार का सूबेदार बना दिया था।

सईफ ने मस्जिद-मदरसा बनवाया मदरसा मस्जिद के इमाम मुहम्मद सलीम फानी बताते हैं कि सूबेदार सईफ ने भी झाऊगंज में गंगा तट पर विशाल मस्जिद व मदरसे का निर्माण कराया जो वर्तमान में मदरसा मस्जिद के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा 40 खंभों वाले हाल का निर्माण भी कराया जो चहालसलूम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुलजारबाग के समीप शाही ईदगाह का निर्माण भी कराया पर अपनी मुहब्बत को यादगार रूप नहीं दे सके।

नसीब अपना-अपना

बेगम मल्लिका के परिवार से जुड़ी शीरी व ताहिरा शारीन बताती हैं कि एक ही कोख से पैदा होने के बाद भी सबका नसीब अलग-अलग होता है। बस समझ लीजिए, मुमताज व मल्लिका की तकदीर में आकाश-पाताल जैसा अंतर है।

पहले लोग चढ़ाते थे चादर

परिवार के नौशाद बताते हैं कि एक जमाना था जब कोई प्रमुख व्यक्ति पटना आता था तो बिहार के सूबेदार सईफ खान की पत्नी मल्लिका उर्फ हमीदा बानो की मजार पर चादर चढ़ाना नहीं भूलता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है।

पुनरुद्धार की मांग

पुरातत्व विभाग भी इस पौराणिक स्थल को विकसित व यादगार बनाने में विफल रहा। स्थानीय लोगों की मांग है कि मल्लिका की कब्र को दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जाए।

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