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    रेलवे बोर्ड पर नकेल डालने की मोदी सरकार ने दिखाई हिम्मत

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    Updated: Wed, 09 Jul 2014 07:27 AM (IST)

    अधूरी रेल परियोजनाओं से खिन्न मोदी सरकार ने पहले ही रेल बजट में रेलवे बोर्ड को विभाजित करने, प्रबंधन व निगरानी के समूह बनाने, कार्यप्रणाली में पारदर्श ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली। अधूरी रेल परियोजनाओं से खिन्न मोदी सरकार ने पहले ही रेल बजट में रेलवे बोर्ड को विभाजित करने, प्रबंधन व निगरानी के समूह बनाने, कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने तथा परियोजनाओं की ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध कराने का वह कड़ा फैसला ले लिया, जिसकी हिम्मत पिछली सरकारें नहीं जुटा पाई थीं।

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    इन कदमों का सुझाव प्रकाश टंडन समिति के इतर संरक्षा पर अनिल काकोदकर समिति के अलावा आधुनिकीकरण पर सैम पित्रोदा समिति ने दिया था। मजे की बात यह है कि तृणमूल कांग्रेस के जिन दिनेश त्रिवेदी ने इन समितियों का गठन किया था, उन्हें ममता बनर्जी ने ज्यादा दिन रेल मंत्री रहने नहीं दिया। जबकि कांग्रेस के खास माने जाने वाले सैम पित्रोदा की रिपोर्ट को कांग्रेसी रेल मंत्री पवन बंसल और मल्लिकार्जुन खड़गे भी लागू नहीं कर पाए। ऐसे में मोदी सरकार ने इन समितियों की सिफारिशों को तरजीह देकर रेल को राजनीति से दूर करने की पहल की है।

    रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने लोकसभा में रेल बजट भाषण पढ़ते हुए कहा, 'नीति निर्धारण और कार्यान्वयन की ओवरलैपिंग भूमिका के कारण फिलहाल रेलवे बोर्ड का कार्य बोझिल हो रहा है। इसलिए मैं इन दोनों कार्यो को अलग-अलग करने का प्रस्ताव करता हूं।'

    उन्होंने खराब प्रबंधन के कारण परियोजनाओं का समय और लागत बढ़ जाने से हो रहे जबरदस्त नुकसान का भी जिक्र किया और कहा, 'परियोजना के निष्पादन में होने वाली देरी से बचने के लिए मैं रेलवे बोर्ड स्तर पर परियोजना प्रबंधन समूह की स्थापना करता हूं। इसी प्रकार ग्राउंड लेवल पर परियोजनाओं के कार्य में तेजी लाने के लिए परियोजना निगरानी एवं समन्वयन समूह की स्थापना की जाएगी, जिसमें राज्य सरकारों और रेलवे के पदाधिकारियों के अलावा पेशेवर शामिल होंगे।'

    गौड़ा ने रेलवे की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता के लिए उसके सरलीकरण पर जोर दिया और कहा, 'कार्यप्रणाली के सरलीकरण और सूचनाओं की आसान उपलब्धता से पारदर्शिता आती है और जनता में विश्वास बढ़ता है। प्रशासन, परियोजनाओं के निष्पादन और खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता को उच्च प्राथमिकता दी जाएगी। खरीद प्रक्रिया को पारदर्शी और अधिक कारगर बनाने के लिए युक्तिसंगत खरीद नीतियों का अनुपालन किया जाएगा। पच्चीस लाख रुपये और उससे अधिक लागत की खरीद के लिए ई-खरीद को अनिवार्य किया जाएगा। राज्य सरकारों व अन्य स्टेक होल्डरों के लिए परियोजनाओं की स्थिति की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध कराई जाएगी।'

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