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आपातकाल के दौरान भय का वातावरण बन गया था: मनमोहन सिंह

देश में लगे आपातकाल से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी आश्चर्यचकित थे। उस दौरान उन्होंने कई मनमानी गिरफ्तारियां और पूरे देश में भय के वातावरण का माहौल देखा। डॉक्टर सिंह की पुत्री दमन सिंह की पुस्तक 'स्ट्रिक्टली पर्सनल : मनमोहन एंड गुरुशरण' में पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ये एक आश्चर्य था, अशांति थी, लेकिन किसी ने उम्मीद नहीं की थी श्रीमती गांधी इस तरह का कोई कदम उठाएंगी।

By Edited By: Published: Mon, 18 Aug 2014 11:57 AM (IST)Updated: Tue, 19 Aug 2014 10:10 AM (IST)
आपातकाल के दौरान भय का वातावरण बन गया था: मनमोहन सिंह

नई दिल्ली। देश में लगे आपातकाल से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी आश्चर्यचकित थे। उस दौरान उन्होंने कई मनमानी गिरफ्तारियां और पूरे देश में भय के वातावरण का माहौल देखा।

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डॉक्टर सिंह की पुत्री दमन सिंह की पुस्तक 'स्ट्रिक्टली पर्सनल : मनमोहन एंड गुरुशरण' में पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, यह आश्चर्यजनक था, अशांति थी, लेकिन किसी ने उम्मीद नहीं की थी श्रीमती गांधी इतना आगे चली जाएंगी। यह पुस्तक दमन की अपने माता-पिता के साथ की गई बातचीत तथा पुस्तकालयों एवं अभिलेखागारों में बिताए समय पर आधारित है।

आपातकाल के दौरान सरकारी नौकरशाहों पर पड़े प्रभाव पर पूछे जाने पर मनमोहन सिंह ने कहा, मेरा मानना है कि उस दौरान अनुशासन और समय की पाबंदी पर अधिक जोर था। कुछ अच्छी बातें भी सामने आई। लेकिन मेरा मानना है कि उस दौरान पूरे देश में भय का माहौल था। मनमाने ढंग से लोगों को हिरासत में लिया जा रहा था और गिरफ्तारियां की जा रहीं थी।

सिंह के अनुसार, पूरे देश में अशांति का माहौल था, विशेषरूप से परिवार नियोजन कार्यक्रम [नसबंदी कार्यक्रम] से जिसको कई उत्तरी राज्यों और दिल्ली में चलाया जा रहा था। उनका मानना था कि उस दौरान संजय गांधी संविधान से इतर सबसे महत्वपूर्ण शक्ति थे।

मनमोहन सिंह ने कहा कि संजय का बहुत प्रभाव था। उनके सीधे हितों से जुड़ी चीजों को संभाल रहे कई लोगों का मानना था कि वे काफी दबाव महसूस करते थे।

आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार ने कई अधिकारियों पर गाज गिराई, परंतु मनमोहन सिंह अपने स्थान पर बरकरार रहे।

मनमोहन सिंह ने शुरुआत में महसूस किया कि देसाई उनके ज््रति ज्यादा लगाव नहीं रखते थे। इस पुस्तक में मनमोहन सिंह को उद्धत करते हुए कहा गया है कि जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने तो उन्हें बताया गया कि मैं पिछली सरकार के काफी करीब था। इसलिए शुरुआत में वह काफी कठोरता से पेश आए। परंतु कुछ समय के बाद उनका मुझसे लगाव हो गया। मोरारजी देसाई निष्पक्ष रूप से संतुलित थे, हालांकि लोगों ने उन्हें एक कठोर व्यक्ति के तौर पर गलत ढंग से समझ लिया। मेरा मानना है कि वह सतही स्तर पर काफी कठोर थे लेकिन एक जिम्मेदार व्यक्ति भी थे।

पुस्तक के मुताबिक मनमोहन सिंह का कहना है कि उन्हें 1991 में पीसी अलेक्जेंडर ने जब पीवी नरसिम्हा राव की ओर से वित्त मंत्री बनने का प्रस्ताव देने के लिए फोन किया तो वह सो रहे थे और यह उनके लिए अप्रत्याशित था।

मनमोहन सिंह के अनुसार राव की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका यह रही कि उन्होंने उन्हें उदारीकरण की प्रक्रिया की इजाजत दी तथा अपना पूरा सहयोग दिया। पूर्व प्रधानमंत्री का कहना है कि राव उदारीकरण को लेकर पहले थोड़ा संशय में थे, लेकिन उन्होंने उनको मनाया।

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