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    वर्दी छोड़ो, इतने में तो पतलून भी नहीं सिलती जनाब!

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    Updated: Thu, 30 Jan 2014 10:42 AM (IST)

    'खाकी' की कहानी भी अजब-गजब है। सड़क पर रुआब का प्रतीक है, तो साहब के सामने अदब का। सलीके से ना पहनो तो नौकरी पर बन आए। फिटिंग भी ऐसी हो जिस पर सवाल ना उठे। इस स्थिति में खाकी वर्दी धारकों के लिए खुद को व्यवस्थित रखना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। खासकर ईमानदारी से नौकरी करने वालों के लिए। कहने

    नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। 'खाकी' की कहानी भी अजब-गजब है। सड़क पर रुआब का प्रतीक है, तो साहब के सामने अदब का। सलीके से ना पहनो तो नौकरी पर बन आए। फिटिंग भी ऐसी हो जिस पर सवाल ना उठे। इस स्थिति में खाकी वर्दी धारकों के लिए खुद को व्यवस्थित रखना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। खासकर ईमानदारी से नौकरी करने वालों के लिए। कहने के लिए पुलिसकर्मियों को साल में एक बार गर्मियों एवं ढाई साल में सर्दी की वर्दी का कपड़ा मिलता है। लेकिन इनकी सिलाई के लिए मिलने वाली रकम महज दिखावा है। पुलिसकर्मियों को इसके लिए सालाना 195 रुपये मिलते हैं। आला अधिकारी भी मानते हैं कि इस रकम से वर्दी तो दूर, पतलून भी नहीं सिल सकती, लेकिन सरकारी नियम का हवाला देकर वह भी चुप हैं।

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    दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार 1990 से पूर्व तक पुलिसकर्मियों को उनके नाप के हिसाब से सिली हुई वर्दी मिलती थी। लेकिन इसके बाद पुलिसकर्मियों को तीन मीटर खाकी रंग का कपड़ा मिलने लगा। जिसे उन्हें बाहर टेलर से सिलवाना पड़ता है। छठा वेतन आयोग लागू होने से पहले तक सिलाई की मद में पुलिसकर्मियों को महज 96 रुपये ही मिलते थे।

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    सच तो यह है कि पुलिस में एक बड़ा तबका वर्दी की सिलाई तथा कपड़े धोने के लिए मिलने वाले पैसों को लेकर असंतुष्ट है। लेकिन अनुशासन की डोर में बंधा होने के कारण कोई खुलकर कुछ बोल नहीं पाता। पिछले चौबीस साल से महकमे में काम कर रहे एक हेड कांस्टेबल का कहना है कि पत्नी समेत पाच्च बच्चों का परिवार है। किराए का मकान उस पर घर से डयूटी आने जाने के लिए बीस किलोमीटर का सफर। तनख्वाह का बड़ा हिस्च बच्चों की पढ़ाई लिखाई एवं घर खर्च में चला जाता है। उस पर वर्दी सिलवाने का नंबर आता है तो घर का बजट बिगड़ जाता है। हाल ही में दिल्ली पुलिस में नियुक्त हुए एक सब इंस्पेक्टर ने बताया कि वह अपने पसंदीदा टेलर से वर्दी सिलवाते हैं। इस पर उन्हें अमूमन 1000 रुपये खर्च आता है। साधारण टेलर भी 500 से 600 रुपये सिलाई के लेता है। सर्दियों की वर्दी सिलाने में 200 से 300 रुपये अतिरिक्त खर्च पड़ता है।

    पुलिस लाइन के समीप वर्दी सिलने वाले मास्टर शकील बताते हैं कि आम कपड़ों से वर्दी की सिलाई काफी अलग है। इस काम के लिए विशेषज्ञ लड़कों को रखा जाता है। एक वर्दी सिलने में दो से तीन दिन का समय लगता है। इस काम के लिए वह 600 रुपये लेते हैं।

    अधिकारियों का वर्दी भत्ता

    इंस्पेक्टर स्तर से ऊपर के अधिकारियों को वर्दी भत्ता मिलता है। जिसमें एसीपी स्तर के अधिकारियों को नियुक्ति के समय 2400 रुपये तथा उसके बाद तीन साल में 2,000 रुपये मिलते हैं। आइपीएस अधिकारियों को नियुक्ति के समय 14,000 रुपये तथा उसके बाद हर तीन साल में 3,000 रुपये वर्दी के लिए मिलते हैं।

    कपड़ा धोने के लिए भत्ता

    सिपाही से इंस्पेक्टर स्तर के कर्मियों को हर माह कपड़ा धोने के लिए 60 रुपये मिलते हैं। छठे वेतन आयोग से पहले यह राशि महज 30 रुपये थी।

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    ईमानदारी से जीना हमें भी पसंद है, लेकिन सुविधाएं तो मिलें। छठे वेतन आयोग से थोड़ी स्थिति सुधरी जरूर है, लेकिन अभी भी अन्य खर्चे व उसके लिए मिलने वाली रकम काफी कम है। -दिल्ली पुलिस के एक एएसआई

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