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संसद में कांग्रेस का साथ देने को माकपा तैयार

भूमि अधिग्रहण विधेयक और धर्मनिरपेक्षता के मसलों पर संसद में लड़ाई लड़ने के लिए माकपा ने कांग्रेस के साथ मोर्चा बनाने का इरादा जताया है। लेकिन संसद के बाहर कांग्रेस के साथ ऐसे किसी गठजोड़ के लिए पार्टी तैयार नहीं है। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि संसद

By Murari sharanEdited By: Published: Sun, 03 May 2015 05:46 PM (IST)Updated: Sun, 03 May 2015 06:29 PM (IST)
संसद में कांग्रेस का साथ देने को माकपा तैयार

नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण विधेयक और धर्मनिरपेक्षता के मसलों पर संसद में लड़ाई लड़ने के लिए माकपा ने कांग्रेस के साथ मोर्चा बनाने का इरादा जताया है। लेकिन संसद के बाहर कांग्रेस के साथ ऐसे किसी गठजोड़ के लिए पार्टी तैयार नहीं है। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि संसद से बाहर ऐसा कोई गठजोड़ बहुत विश्वसनीय नहीं होगा।

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मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता ने स्वीकार किया कि बिहार का आगामी विधानसभा चुनाव सभी भाजपा विरोधी दलों के लिए बड़ा इम्तिहान होगा। आगे की रणनीति तय करते समय यह देखना होगा कि जनता परिवार का विलय क्या स्वरूप लेता है। माकपा हाल ही में सोनिया गांधी के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ संसद से राष्ट्रपति भवन मार्च में शामिल रही थी।

येचुरी ने एक साक्षात्कार में कहा, 'पार्टी पहले खुद को मजबूत करने का प्रयास करेगी। संसद के भीतर हमने कहा है कि हम भूमि विधेयक जैसे इन सभी मुद्दों पर एकजुट होंगे, जिनके बारे में हम सोचते हैं कि ये देश और जनता के हित में नहीं हैं।

संसद के बाहर, कई क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर मोर्चा बनाना फिलहाल सही नहीं रहेगा। क्योंकि ऐसे किसी मोर्चे के पास वैकल्पिक नीति होनी चाहिए, जिसके बारे में हमारा ख्याल है कि मौजूदा समय में ऐसा हालात पैदा नहीं हो सकते।'

व्यावहारिक राजनीति करने की पहचान रखने वाले येचुरी ने यह तो स्वीकार किया कि भूमि विधेयक जैसे मुद्दों पर राहुल गांधी का हालिया अभियान अच्छा है। लेकिन उनका मानना है कि कांग्रेस फिलहाल कोई सुसंगत नेतृत्व नहीं दे रही है।

माकपा नेता ने कहा कि जीएसटी विधेयक और श्रम कानून सुधारों को लेकर सरकार जोर दे रही है तथा यह भी साझा कदम के लिए अवसर हो सकता है। कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह संभव नहीं है क्योंकि कांग्रेस की गलत आर्थिक नीतियों के चलते उपजे असंतोष के कारण ही भाजपा सत्ता में आई है।

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