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    'नमो नमो' ही जपेगी भाजपा, पीएम पद की दावेदारी की घोषणा आज

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    Updated: Fri, 13 Sep 2013 01:11 PM (IST)

    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। तमाम अंदरूनी खींचतान के बाद नरेंद्र मोदी की पीएम पद की दावेदारी की घोषणा का मंच तैयार हो गया है। इस बाबत भाजपा की तैयारी पूरी हो गई है। लालकृष्ण आडवाणी को छोड़ दिया जाए तो संसदीय बोर्ड के ज्यादातर सदस्यों ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को अपनी सहमति जता दी है यानी बोर्ड में मोदी के पक्ष में बहुमत है। खासतौर पर तब जब आडवाणी के साथ खड़ीं सुषमा स्वराज हरियाणा दौरे और मुरली मनोहर जोशी मध्य प्रदेश में होने के चलते शुक्रवार को दिल्ली में मौजूद

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    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। तमाम अंदरूनी खींचतान के बाद नरेंद्र मोदी की पीएम पद की दावेदारी की घोषणा का मंच तैयार हो गया है। इस बाबत भाजपा की तैयारी पूरी हो गई है। लालकृष्ण आडवाणी को छोड़ दिया जाए तो संसदीय बोर्ड के ज्यादातर सदस्यों ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को अपनी सहमति जता दी है यानी बोर्ड में मोदी के पक्ष में बहुमत है। खासतौर पर तब जब आडवाणी के साथ खड़ीं सुषमा स्वराज हरियाणा दौरे और मुरली मनोहर जोशी मध्य प्रदेश में होने के चलते शुक्रवार को दिल्ली में मौजूद नहीं होंगे। बहरहाल पूरा फैसला राजनाथ पर छोड़ दिया गया है कि वह बोर्ड की बैठक में औपचारिक प्रस्ताव पारित कर घोषणा करें या बैठक के बगैर।

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    पढ़ें : पहले भी विवादों में रहे हैं आडवाणी

    मन तो बन चुका है, लेकिन राजनाथ फैसले में सबको इकट्ठा करने की कोई कसर छोड़ना नहीं चाहते हैं। लिहाजा, गुरुवार को दिनभर अलग-अलग स्तर से सर्वसम्मति बनाने की कोशिश होती रही। राजनाथ आडवाणी और जोशी से बुधवार को ही मिल चुके थे। गुरुवार को उन्होंने सुषमा से भी लंबी चर्चा की। बताते हैं कि जोशी ने संकेत दे दिया कि वह पार्टी के फैसले के साथ खड़े हैं। सुषमा जरूर विधानसभा चुनाव तक फैसले को टालने के पक्ष में थीं, लेकिन उनका रुख आडवाणी की तरह अडिग नहीं है। ऐसे में शुक्रवार को ही मोदी को बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने में कोई अड़चन नहीं बची।

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    हालांकि, आडवाणी का रुख पार्टी को परेशान कर रहा है। दरअसल, पूरा माहौल देखने के बावजूद संसदीय बोर्ड की बैठक में भी वह अपनी आपत्ति दर्ज कराएंगे।

    पार्टी आशंकित है कि सामूहिक फैसला होने के बावजूद आडवाणी का रुख सार्वजनिक तौर पर पार्टी में विभाजन दिखाएगा। ऐसे में यह संभावना भी प्रबल है कि घोषणा संसदीय बोर्ड की बैठक के बगैर ही हो। सूत्रों की मानें तो संसदीय बोर्ड के सदस्यों और पदाधिकारियों को दोपहर बाद से पार्टी मुख्यालय में ही रहने को कहा गया है ताकि घोषणा के वक्त एकजुटता दिखाई जा सके। ऐसी स्थिति में तत्काल संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाकर फैसले पर मंजूरी की संभावना भी कम है। हो सकता है कि बाद में राष्ट्रीय परिषद की बैठक में ठीक उसी तरह प्रधानमंत्री उम्मीदवार के नाम पर औपचारिक मुहर लगे जैसे गोवा में चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पद का फैसला हुआ था।

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