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    साक्षात्कार : शासन करने वालों के पास नहीं नैतिक साहस : धूमल

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    Updated: Sat, 05 Nov 2016 02:08 PM (IST)

    ह‍िमाचल में भाजपा के वर‍िष्‍ठ नेता एवं पूर्व मुख्‍यमंत्री प्रेम कुमार धूमल से ह‍िमाचल की राजनीत‍ि व भाजपा से जुड़े कई मसलों पर व‍िशेष बातचीत

    हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए भले ही एक वर्ष के करीब समय बचा है लेकिन बिसात बिछ चुकी है। कांग्रेस व भाजपा के तेवर आक्रामक होते जा रहे है। वाकयुद्ध भी तेज हुआ है। आरोप-प्रत्यारोपो के इस दौर में दो बार मुख्यमंत्री रहे भाजपा नेता प्रो. प्रेम कुमार धूमल राज्य सरकार की कारगुजारी पर तीखा प्रहार कर रहे है। हालांकि भाजपा ने अब भी अपने मुख्यमंत्री प्रत्याशी के तौर पर कोई नाम घोषित नहीं किया है परंतु जो संकेत आलाकमान दे चुकी है, उससे साफ है कि प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के तजुर्बे को तवज्जो दी जा रही है।

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    हालांकि धूमल कहते है कि भले ही भाजपा में केंद्र का नेतृत्व मुख्यमंत्री की घोषणा पहले करता रहा है परंतु मैंने कभी अपने लिए कोई टिकट मांगा न ही कोई अन्य अपेक्षा की। महत्व है तो सिर्फ यह कि सरकार भाजपा की बने। दैनिक जागरण की राज्य संपादक डॉ. रचना गुप्ता और राज्य ब्यूरो प्रमुख प्रकाश भारद्वाज के साथ उन्होंने पार्टी की भविष्य की तमाम योजनाओं सहित बड़े मसलो पर अपनी बेबाक राय दी। पेश है बातचीत के अंश।

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    कांग्रेस सरकार के चार साल के कामकाज को कैसे आंकते है?

    -जब से हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया है, इतनी निकम्मी व भ्रष्ट सरकार कभी नहीं रही। कोई भी सरकार आगे बढ़ती है, लेकिन इस सरकार का आगे जाने या बढि़या काम करने का सवाल पैदा नहीं होता। प्रदेश की यह सरकार हर मोर्चे पर असफल रही है। सरकार की कारगुजारियों का आकलन यही है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने वित मंत्री रहते हिमाचल को निवेश करने के मामले में 'बेस्ट डेस्टिनेशन' का पुरस्कार दिया था। प्रदेश सरकार के चार साल के शासन में राज्य पहले स्थान से गिरता हुआ 17वें स्थान पर पहुंच गया है। केंद्र सरकार की 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।

    कर्ज लेने का मर्ज बढ़ता जा रहा है। क्या कारण है?

    -जब भाजपा ने वर्ष 2012 मे सत्ता छोड़ी थी तो कर्ज 28 हजार करोड़ था लेकिन चार साल में 12 हजार करोड़ का कर्ज लिया और कर्ज 40 हजार करोड़ का आंकड़ा पार कर गया है। दिल्ली में सत्ता परिवर्तन होने के बाद एनडीए सरकार ने ढाई साल में प्रदेश सरकार की भारी मदद की है। ऐसे में सरकार को बताना चाहिए कि कर्ज लेने की जरूरत क्यों पड़ती रही। आर्थिक कुप्रबंधन के कारण ऐसी स्थिति है। निगम-बोर्डो में अध्यक्षों व उपाध्यक्षों की फौज पर फिजूलखर्ची की जा रही है। इतना ही नहीं अफसरशाही पर भी खर्च हो रहा है। सरकार जनता के पैसे पर मौजमस्ती कर रही है।

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    सरकारी कर्मचारी व पेंशनरो पर कांग्रेसी कार्य को कैसे आंकते है?

    -कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान वादा किया था सभी सरकारी कर्मचारियों को टाइम स्केल यानी 4-9-14 वर्ष 2006 से किया जाएगा। जो हमने दिया था वह भी कर्मचारियो को नहीं मिला। जो हमारी सरकार देकर गई थी, कर्मचारियों के कई वर्गो से रिकवरी की जा रही है। प्रदेश के सरकारी कर्मचारी तब बिलकुल भी परेशान नहीं थे, लेकिन अब कर्मचारियों की परेशानी सबके सामने है। महंगाई भत्तों का भुगतान कर्मचारियों व पेंशनरों को 11-11 महीने बाद हो रहा है।

    रोजगार की कोई नीति नहीं, बेरोजगरों को बेरोजगारी भत्ता भी नहीं मिला?

    -सत्ता प्राप्त करने के लिए जनता के साथ विश्र्वासघात नहीं होना चाहिए। कांग्रेस ने बेरोजगारो को भत्ता देने के नाम पर ठगा। प्रदेश में ऐसा कोई बेरोजगार नहीं है, जिसको सरकार ने एक हजार रुपये का बेरोजगारी भत्ता दिया होगा। यदि सरकार बेरोजगारी भत्ता देने की स्थिति में नहीं है तो कांग्रेस के किसी नेता ने इस बारे में किसी प्रकार का जिक्र नहीं किया। बेरोजगारी बड़ी समस्या है, जिसे लेकर नीति निर्धारण करने की जरूरत है। स्वरोजगार की दिशा मे आगे बढ़ा जा सकता है।

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    स्कूलों में बच्चों को वर्दी न मिलने व सड़कों की हालत खस्ता होने पर क्या कहेंगे?

    -यही तो सरकार की जिम्मेदारी है कि आम आदमी को प्रभावित करने वाली मुश्किलों को दूर किया जाए। जहां तक सवाल स्कूलों में बच्चो को वर्दी मिलने का है, तो भाजपा सरकार में अटल स्कूल वर्दी योजना शुरू हुई। प्रत्येक स्कूली बच्चे को वर्दी सिलाने के लिए सौ रुपये सिलाई के भी मिलते थे। कांग्रेस सरकार में वर्दी की सिलाई के सौ रुपये भी बंद हुए और हालत ये है कि वर्दी भी समय पर नहीं मिल रही। होमगार्ड जवान परेशान है, मजदूरों की कोई सुनवाई नहीं हो रही। बागवानों के बगीचों को जोड़ने वाली सड़को की खस्ता हालत है। जबकि इस बार सेब की फसल भी अधिक नहीं थी।

    ठियोग-हाटकोटी सड़क पर राजनीति कब तक होगी?

    -यही बात तो ठियोग-हाटकोटी सड़क के नाम पर राजनीति करने वाले विधायक भूल गए है। चुनाव में वादा किया था कि सता में आने के बाद सड़क बनकर तैयार हो जाएगी। भाजपा सरकार के समय में सड़क निर्माण को लेकर सभी औपचारिकताएं पूरी की गई। सबसे अहम बात ये है कि सेब सीजन के दौरान कभी बागवानों को कोई परेशानी नहीं होने दी। सब जानते है कि उस समय रिकॉर्ड सेब की पैदावार हुई थी। इतना ही नहीं परवाणू कोल्ड स्टोरेज मे रखे हुए सेब खराब हो गए। बागवानों के हितो की अनदेखी हो रही है।

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    सरकार पर माफिया राज के आरोप भाजपा क्यों लगा रही है?

    -जो लोग शासन कर रहे है, वे नैतिक साहस खो चुके है। जब नैतिक साहस पर अधिकार न हो तो अफसरशाही सरकार के आदेशों को महत्व नहीं देती है। ऐसा लगता है कि जनसेवा की इच्छाशक्ति खत्म हो चुकी है। कुछ करने के लिए जज्बा होना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मंत्रिमंडल महत्वपूर्ण है। यदि मंत्रिमंडल की बैठक में दो मंत्रियो के बीच मे झगड़ा होने की स्थिति में मुख्यमंत्री समझौता करवाते है तो मतलब साफ है। सही मायनों में ऐसा ही लगता है कि प्रदेश में सरकार नहीं माफिया राज है। शराब माफिया, खनन माफिया, ड्रग्ज माफिया, वन माफिया और भी कई तरह का माफिया सक्रिय है। मुख्यमंत्री व वन मंत्री के विधानसभा क्षेत्रों में लगातार वन कट रहे है। प्रदेश में कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार जैसे अपराध आम बात हो चुकी है, जबकि सरकार का सबसे बड़ा दायित्व लोगों के जान माल की रक्षा करना है। लोग हताश व परेशान हैं। हर तरफ माफिया का राज है।

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    क्या आप मानते है कि सरकार प्रशासनिक ढांचे यानी उपमंडलो का युक्तिकरण यानी उन्हे रेश्नलाइज कर रही है?

    - मैं नई तहसीलें व उप-तहसीलें खोलने को रेश्नलाइजेशन नहीं मानता। ये तो इरेश्नलाइजेशन है। भद्दा मजाक है। इस तरह से बिना अधिकारी व कर्मचारी दिए हुए तहसीले खुल सकती है क्या?

    सरकार का आरोप है एनएच देने से क्या होता है बजट दिया जाए?

    -जो प्रदेश सरकार स्वीकृत परियोजनाओं के लिए डीपीआर नहीं बना सकती है, वह विकास पर क्या खर्च करेगी। केंद्र सरकार ने 56 नेशनल हाईवे, तीन फोरलेन और 6 ओवर ब्रिज दिए है। अब इनकी डीपीआर बनाने की जिम्मेदारी सरकार की है। केंद्र से स्वास्थ्य विभाग को बहुत सी योजनाओं में पैसा आया है।

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    क्या भाजपा विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है, आप नेतृत्व करेंगे?

    - भाजपा विधानसभा चुनाव के लिए तैयार बैठी है। जहां तक नेतृत्व का सवाल है तो केंद्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनाव से पहले नेतृत्व की घोषणा करता रहा है। लेकिन महत्व यह नहीं है कि किसके नेतृत्व में चुनाव होते है। महत्व इस बात का है कि भाजपा चुनाव जीतकर सरकार बनाती है। सबको एकजुट होकर काम करने की जरूरत है। भाजपा काडर बेसड पार्टी है।

    भाजपा में टकराव का प्रचार हो रहा?

    - यह दो राजनीतिक कार्य पद्धतियां है, कांग्रेस ढिंढोरा पिटती है, जबकि भाजपा करके बताती है कि कर दिया। इसलिए दोनों में यह फर्क है। हम चुनाव में पूर्व भाजपा सरकारों की उपलब्धियों की तुलना करेंगे। यह भी बताया जाएगा कि कांग्रेस ने क्या किया। इसलिए पूर्व सैनिको को वन रैक, वन पेंशन मामले में जनता के बीच जाकर बताएंगे कि कांग्रेस ने इस मामले में चालीस साल तक केवल राजनीति की। इसी तरह से प्रदेश को वर्ष 2002 मे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विशेष औद्योगिक पैकेज दिया था।

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    सरकार के मंत्री कहते है, औद्योगिक पैकेज की बात कुछ और थी?

    - सरकार ने मुंबई, अहमदाबाद, बंगलूरु सहित दूसरे महानगरो में इन्वेस्टमेट मीट करते हुए दावे तो ऐसे किए थे, जैसे निवेश की भरमार हुई। कुछ समय पहले एक सर्वे रिपोर्ट में सामने आया है कि बड़ी संख्या में उद्योग यहां से पलायन करते जा रहे है। यदि सरकार उद्योगों की इतनी ही हितैषी थी तो जा रहे उद्योगों को रोकती।

    विधानसभा चुनाव समय से पहले होने की बात आप कैसे कह सकते है?

    -जिस तरह से मुख्यमंत्री प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र का लगातार दौरा कर रहे है और इन दौरों के दौरान लोकलुभावन घोषणाएं हो रही है। एक कमरा देकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोले गए है। स्कूल के गेट पर कॉलेज का फट्टा लगाने से कालेज नहीं खुलते। तय मानिए, विधानसभा के चुनाव मार्च अप्रैल में हो सकते है। क्योंकि इस प्रकार की लोक लुभावन घोषणाओं के बाद सरकार के लिए इन घोषणाओं को अमलीजामा पहनाना संभव नहीं है। इसलिए सारे घटनाक्रम को और वर्तमान अफरातफरी को देखकर लगता है कि निश्चित तौर पर चुनाव पहले होंगे।

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