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    अपने ही निशाने पर कांग्रेस

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    Updated: Sat, 22 Oct 2016 04:15 PM (IST)

    हिमाचल में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में संगठन व सरकार के बीच गहराती जा रही दूरियों के साथ ही पार्टी का सोमवार से श‍िमला में शुरू हो रहा दो दिवसीय जनरल हाउस काफी अहम माना जा रहा है

    डॉ. रचना गुप्ता

    हिमाचल में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में संगठन व सरकार के बीच गहराती जा रही दूरियों के साथ ही पार्टी का दो दिवसीय जनरल हाउस काफी अहम माना जा रहा है। लंबे अरसे के बाद इस हाउस में वे लोग भी रहेंगे जिनको पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सुखविद्र सुक्खू ने सचिव तैनात कर खुद को बड़े विवाद में धकेल दिया और यहीं से पूरा पुराना कांग्रेसी कुनबा सुक्खू की मुखालफत में उठ खड़ा हुआ। राज्य में जिस तरह से खुद प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले भाजपा में नई ताकत झोंकने का प्रयास किया उससे कांग्रेस को न सिर्फ नई रणनीति और एकजुटता के साथ चलना ही पड़ेगा और जो हालात पार्टी में मौजूदा समय में उभर चुके है उससे भी फूट की ज्वाला से निपटना होगा। क्योंकि टिकट आवंटन में एकतरफा फैसले सुक्खू के रहते पार्टी में हो नहीं सकेंगे। यही एक बड़ी पीड़ा धड़ो में बंटे कांग्रेसी नेताओं की मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह समेत रहेगी।

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    24 व 25 अक्टूबर को शिमला में कांग्रेस मेला लगेगा। कभी कभार हिमाचल का रुख करने वाले नेताओं जैसे आनंद शर्मा, विप्लव ठाकुर व प्रभारी अंबिका सोनी भी रहेगी। जबकि सभी विधायक और राज्य कार्यकारिणी सदस्यों समेत 300 लोग होंगे। पार्टी का एजेंडा यू तो राज्य कार्यकारिणी में तय हो चुका है लेकिन फिर भी औपचारिक राय शुमारी जनरल हाउस मे होगी। मूलत: पार्टी भाजपा की परिवर्तन रैली का उत्तर विकास यात्रा के नाम से देगी और मोदी एक-झूठ-अनेक जैसे नारों से कांग्रेस रैलियों का आगाज नवंबर में राहुल गाधी की मौजूदगी के साथ करेगी। बड़ी सभाओ के माध्यम से पार्टी लोगों के बीच जाएगी। कुल मिलाकर बैठक में तय होगा कि कैसे प्रदेश में 'पार्टी' के पुराने व मजबूत वोट बैंक को सहेजना होगा।

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    फिलहाल जिस तरह कांग्रेस में जो असंतोष है वह छिटक-छिटक कर बाहर आने लगा है। क्योंकि चुनावी वक्त में टिकट आवंटन को लेकर अपनी सभी चलाना चाहते है। इसीलिए पार्टी अध्यक्ष अपनी पसंद का हो, यह सभी चाहते है। इसी कसरत में वीरभद्र सिह भी दिल्ली गए है और पहले भी वह पत्र के माध्यम से कह आए हैं कि पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष को बदलो।

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    उधर परिवहन, खाद्य एवं आपूर्ति एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री जीएस बाली व कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य आशा कुमारी सरीखे नेता भी सुक्खू को नहीं चाहते। इसीलिए जमीन खरीद आरोपो-प्रत्यारोपों के बीच अध्यक्ष को कुर्सी बचाने के लिए कसरत करनी पड़ी है। इस तरह कांग्रेस भाजपा पर झपटने के बजाय गुटबाजी के दलदल से ही निकल नहीं पा रही। कारण कोई बड़ा नहीं। सिर्फ इतना है कि पार्टी में नए सचिवों की दोगुनी तैनाती कर दी गई। जहां 31 पार्टी सचिव हुआ करते थे वहां 60 बना दिए गए। इसके पीछे कारण यही गिनाया गया कि स्पीकर बीबीएल बुटेल का बेटा, मंत्री अनिल शर्मा का पुत्र, मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी के बेटे, जीएस बाली के पुत्र को जब संगठन मे तवज्जो मिल सकती है तो फिर आम कार्यकर्ता को क्यों नहीं?

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    सुक्खू कई वर्ष तक एनएसयूआइ व यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। वहां से उनके साथ जुड़ी विश्र्वस्त टीम को लगभग प्रदेश के हरेक हिस्से से उन्होंने संगठन में सचिव बना दिया। इसमें मुख्यमत्री वीरभद्र सिंह समेत कई मंत्रियो के हलकों में ऐसा हुआ और एक ही विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के ही कई भाग बन गए। क्योंकि जिनको सचिव बनाया गया उनको हर विधानसभा क्षेत्र में आ‌र्ब्जवर का अधिकार भी दे दिया यानी संगठनात्मक रूप से सरकार में बैठे पुराने या हारे राजनीतिक खिलाडि़यों की चौकसी शुरू हो गई। अर्थात वीरभद्र सिह ने जो हारे नेताओं की लंबी फौज सरकार में चेयरमैन बनाकर बिठा दी उनकी शान पर असर पड़ गया। साथ ही कांग्रेसी विधायको पर भी। इसीलिए हर जगह से नेता आगबबूला हुए और बात आलाकमान तक पहुची कि अध्यक्ष को ही बदल दिया जाए।

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    लेकिन बात सिरे नही चढ़ी। सोमवार को अंबिका सोनी मीडिया के समक्ष क्या बात कहेगी, इस पर सुक्खू खेमा आश्र्वस्त है लेकिन वीरभद्र सिंह भी संगठन में बड़े हस्तक्षेप की अपेक्षा नहीं रख सकते। क्योंकि बढ़ती उम्र व उन पर लगे आरोपों के कारण वह पार्टी से सीधे सीधे विवाद से बचेंगे। आलाकमान तक यह भी बात कही गई कि मंत्री व कई नेता सरकारी प्रभाव के चलते संगठन में रुचि नहीं दिखा रहे है। इसीलिए सचिवों की भूमिका की मजबूती भी थी। उधर कई का पक्ष यह भी है कि सुक्खू ने पूरे प्रदेश में अपनी एक ऐसी ब्रिगेड बना दी जो अपनी ही पार्टी के धुंरधंरो को नाकों चने चबवाने जैसी हालत पैदा कर चुकी है।

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    पार्टी की रार इसी विषय में नहीं है बल्कि सरकारी स्तर पर संगठन को चलाने के लिए फूटी कौड़ी का भी न मिलना है। बताते है कि कौल सिह व सुक्खू के रहते सत्ताधारी कांग्रेसी संगठन में सहयोग नहीं देते। यही वह विषय है जो दूरियों को इस कदर बढ़ा रहे है कि भाजपा के लिए सुगम राह बन रहे है। मोदी की रैली के बाद कांग्रेस के खिलाफ चार्जशीट का पुलिदा मजबूत करने जा रही भाजपा योजनाबद्ध आगे बढ़ रही है।

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    फिलहाल अंबिका, वीरभद्र, आनंद शर्मा व आशा कुमारी सहित सभी कांग्रेसी सोमवार को मंथन करेंगे कि सफलता का अगला रास्ता क्या निकलेगा। वहीं व्यक्तिगत तौर पर वरिष्ठ नेताओं की भूमिका की दिशा भी तय होगी। वैसे राज्य में कांग्रेस का प्रभाव व अस्तित्व धीरे-धीरे वीरभद्र के नाम के इर्द गिर्द सिमटा है। जिन्होंने तमाम विपरीत हालात होने के बावजूद चार वर्ष सरकार चलाई और उम्र के इस पड़ाव में भी कैसे-तैसे सत्ता को पास रखा। भले ही इसके लिए उन्हे कई परिस्थितियों से समझौता करना पड़ा हो। देखे अब कांग्रेस कैसे खुद को जनता के समक्ष पेश करेगी?

    (लेखिका दैनिक जागरण की राज्य संपादक है।)

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