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    असेंबली इलेक्‍शन: राजशाही का ताज गया, फि‍र भी राज बरकरार

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Tue, 31 Jan 2017 12:22 PM (IST)

    उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव में राजघरानों के वंशज भी सक्रिय हैं। राजशाही का ताज भले ही न रहा हो, लेकिन राज अभी भी बरकरार है।

    असेंबली इलेक्‍शन: राजशाही का ताज गया, फि‍र भी राज बरकरार

    देहरादून, [अनिल उपाध्याय]: राजशाही का ताज भले ही न रहा हो, लेकिन राज अभी भी बरकरार है। राजशाही का दौर गया तो राजघरानों ने लोकशाही के साथ कदम मिला लिए। पूरे देश में तमाम राजघरानों के वंशज आज भी सक्रिय राजनीति का चेहरा हैं और राजसी हनक बरकरार है। उत्तराखंड की बात करें तो आजादी के बाद 1952 से राज परिवार का लोकशाही में दखल है। यह दखल आज तक भी जारी है। राज्य के चार राजघरानों ने सक्रिय राजनीति में अपना दखल रखा है। इनमें से एक परिवार से मौजूदा सासंद हैं तो दूसरे से विधायक। दो परिवारों से पूर्व सांसद हैं।

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    देश आजाद होने के बाद रियासतों का विलय हुआ तो टिहरी रियासत सबसे बाद में विलय होने वाली रियासत में शुमार थी। राज्य की मौजूदा सियासत में चार राजघरानों का दखल देखने को मिलता है। टिहरी, लंढौरा, चंद्रवंश और अस्कोट पाल राजवंश परिवार के वंशज राज्य की राजनीति में न सिर्फ चेहरा रहे हैं, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी इनका असर पड़ा है।

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    मौजूदा विधानसभा चुनाव में सीधे तौर पर भले ही एक ही परिवार के सदस्य मैदान में हैं, लेकिन बाकी तीनों राज परिवार भी अपने-अपने क्षेत्रों में राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेंगे। गढ़वाल और कुमाऊं में दो-दो राज परिवारों का दखल हैं। इनमें से गढ़वाल के दोनों राजघराने जहां भाजपा के साथ हैं, वहीं कुमाऊं के दोनों राजघराने कांग्रेस के पाले में हैं।

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    मौजूदा विधानसभा में राजशाही के दखल और प्रभाव की बात करें तो टिहरी राज परिवार की भाजपा सासंद माला राज्यलक्ष्मी शाह का मसूरी, कैंट, यमुनोत्री, गंगोत्री, पुरोला, प्रतापनगर, नरेंद्रनगर, घनशाली, देवप्रयाग क्षेत्र में प्रभाव रहेगा। चुनाव प्रचार में भी पार्टी उनके चेहरे को सामने रख सकती है। वहीं, लढौंरा राज परिवार के कुंवर प्रणव सिंह लंढौरा, खानपुर, हरिद्वार ग्रामीण, लक्सर आदि सीटों पर असर डाल सकते हैं। उधर, कुमाऊं में केसी सिंह बाबा नैनीताल जनपद और आसपास की सीटों पर मतदाताओं को कांग्रेस की ओर मोड़ने का काम कर सकते हैं। इनके साथ ही पूर्व सासंद महेंद्र पाल भी कांग्रेस के लिए काम कर कई सीटों पर असर डाल सकते हैं।

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    1952 से है राजनीति में राजशाही

    इतिहास पर गौर करें तो टिहरी राजघराने से 1952 में गढ़वाल नरेश नरेंद्र शाह की धर्मपत्नी कमलेंदुमति शाह ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा में प्रवेश किया। इसके बाद 1957 से 1962 तक राजा मानवेंद्र शाह ने दोनों लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते। 1971 में वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिपूर्णानंद पैन्यूली से चुनाव हारे। इसके बाद 20 साल तक राज परिवार को जीत नसीब नहीं हुई।

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    1991 में भाजपा के टिकट पर मानवेंद्र शाह ने इस 20 साल के सूखे को समाप्त किया, वे 2004 तक इस सीट पर अविजित रहे। 2007 के उपचुनाव में इस सीट पर उनके पुत्र मनुजयेंद्र को हार का सामना करना पड़ा और 2014 में उनकी धर्मपत्नी माला राज्यलक्ष्मी शाह ने जीत दर्ज की।

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    गढ़वाल मंडल का दूसरा राजघराना लंढौरा से है। इस राज परिवार के कुंवर प्रवण सिंह चैंपियन 2002 से लगातार विधायक निर्वाचित हुए हैं। वे पहला चुनाव निर्दलीय जीते और उसके बाद दो चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते। इस बार वे भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। कुमाऊं मंडल में चंद्रवंश राज परिवार के केसी सिंह बाबा नैनीताल से लगातार दो बार सांसद, विधायक और अविभाजित उत्तर प्रदेश में भी विधायक रहे चुके हैं। वहीं, पिथौरागढ़ के अस्कोट पाल राज परिवार से महेंद्र पाल 1989 में जनता पार्टी और 2002 में कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंचे।

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    सूबे की सियासत में राजशाही

    टिहरी राज परिवार

    -कांग्रेस से तीन बार और भाजपा से पांच बार टिहरी संसदीय सीट पर कब्जा। मौजूदा चेहरा माला राज्यलक्ष्मी शाह सांसद।

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    चंद्रवंश राज परिवार

    -इस परिवार से नैनीताल संसदीय सीट पर काबिज रहे केसी बाबा। कांग्रेस का कद्दावर चेहरा।

    लंढौरा राज परिवार

    -लक्सर व लंढौरा सीट से तीन बार विधायक रहे कुंवर प्रणव चैंपियन। पहला चुनाव निर्दलीय और दो बार कांग्रेस से जीते और इस बार भाजपा के टिकट पर मैदान में।

    अस्कोट पाल राजपरिवार

    -अस्कोट पाल राजवंश परिवार के महेंद्रपाल अलग-अलग दलों से दो बार सांसद रहे।

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