Move to Jagran APP

यूपी विधानसभा चुनावः सपा के आंगन इटावा में अपनों के बीच ही दंगल

दो धड़ों में बंटे दल में नए पावर सेंटर बनकर उभरे अखिलेश यादव के यहां वही फौज है, जिसे चाचा शिवपाल सिंह यादव से उम्मीदों के अनुरूप तवज्जो न मिली हो।

By Ashish MishraEdited By: Published: Sat, 18 Feb 2017 10:48 AM (IST)Updated: Sat, 18 Feb 2017 11:17 AM (IST)
यूपी विधानसभा चुनावः सपा के आंगन इटावा में अपनों के बीच ही दंगल
यूपी विधानसभा चुनावः सपा के आंगन इटावा में अपनों के बीच ही दंगल

इटावा [जितेंद्र शर्मा] । पारिवारिक विवाद के ताप में तप रही समाजवादी पार्टी के लिए तपिश उसके आंगन इटावा में कम होती नहीं दिख रही। यहां शहर की सदर विधानसभा क्षेत्र में 'मुलायम के लोग नाम से खुला पार्टी का कार्यालय इसका सबसे मजबूत सुबूत है। दो धड़ों में बंटे दल में नए पावर सेंटर बनकर उभरे अखिलेश यादव के यहां वही फौज है, जिसे चाचा शिवपाल सिंह यादव से उम्मीदों के अनुरूप तवज्जो न मिली हो। वरना, इस्तीफे देकर भी पुराने समाजवादी भी शिवपाल की साइकिल में ही धक्का लगाने में जुटे हैं। भरथना सीट भी स्थिति भी इससे जुदा नहीं है। यहां गौर करने वाली बात ये है कि इस पारिवारिक विवाद को खड़े हुए भले ही महीनों गुजर गए, लेकिन ये परिदृश्य लगभग ओझल होने के बाद चंद घंटों में दोबारा उभरा है।

loksabha election banner

यह भी पढ़ें- यूपी चुनाव 2017: अखिलेश बोले मोदी कर रहे पिता-पुत्र में दरार डालने की कोशिश
बात थोड़ा पहले से शुरू करते हैं। मुलायम सिंह यादव की साइकिल में पैडल मारकर शिवपाल यादव 1996 में पहली दफा विधानसभा चुनाव में कूदे। मुकाबला मुलायम सिंह के तत्कालीन प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दर्शन सिंह यादव से था। मगर, इस नौजवान ने पहलवान मुलायम के दम और दांव से इस खांटी नेता को चित कर दिया। जसवंत नगर सीट पर यहां से शुरू हुई शिवपाल की साइकिल में फिर कभी कोई अवरोध आया ही नहीं, अलबत्ता रफ्तार बढ़ती गई और जीत का अंतर बढ़ता गया। सिर्फ जसवंत नगर ही नहीं, इटावा की सदर और भरथना सीट भी लगातार मजबूत होती गई। सिर्फ 2007 में लखना वर्तमान भरथना विधानसभा सीट से सपा की सुखदेवी और सदर से 2009 में सपा से बागी हुए महेंद्र सिंह राजपूत ने जरूर जीती। मगर, 2012 में इस पर सपा ही काबिज हो गई और इस पूरे क्षेत्र में मुलायम सिंह और शिवपाल का प्रभुत्व बढ़ता गया।

यह भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश चुनाव 2017: मोदी ने दत्तक पुत्र बनकर यूपी को दिया माई-बाप का दर्जा


इस चुनाव में पारिवारिक विवाद के बाद से अप्रत्यक्ष रूप से शिवपाल यादव और उनके समर्थक किराए की साइकिल पर हैं। परिवार के हितैषी हों या प्रतिद्वंद्वी, सभी इसी गुणा-भाग में लगे हैं कि यहां भितरघात क्या असर दिखाएगा। जसवंत नगर तिराहे पर चाय की दुकान चलाने वाले का दिल टटोला तो वह शिवपाल की जीत से तो आश्वस्त था, लेकिन मानता है कि अंतर कुछ घटेगा। मगर, जैसे ही इस विधानसभा क्षेत्र के बिल्कुल केंद्र में स्थित छिमारा गांव पहुंचे तो ये आशंकाएं गांव की दहलीज पर ठिठकी महसूस होती हैं। यहां खड़े नौजवान हों, घूंघट की ओट से बतिया रही अधेड़ महिलाएं हों या ऊंचा सुनने वाले बुजुर्गवार। वह पारिवारिक कलह पर मुंह बिचका देते हैं। कहते हैं कि अखिलेश भी 'हमाए हैं। बहुत काम किया है, लेकिन हम तो सिर्फ नेताजी को जानते हैं और शिवपाल को जानते हैं।

यह भी पढ़ें- UP Assembly Election: मंत्री-अफसरों की मिलीभगत से निष्पक्ष चुनाव में खतरा


यहां से हम महसूस कर सकते हैं कि यहां दिल के रिश्ते दल के बिखराव से ऊपर हैं। हालांकि सपाई कुनबे से ही खबर मिलती है कि दिन में जसवंत नगर में सपा के लिए पसीना बहाने वाले मुलायम के लोगों के क्रियाकलाप रात के अंधेरे में सदर सीट पर कुछ अलग हो जाते हैं। कुछ लोग तो सपा की खुली मुखालफत के साथ लोकदल के प्रत्याशी आशीष राजपूत के साथ नारे लगाते नजर आते हैं। प्रत्याशी खुद अपने प्रचार वाहन में मुलायम सिंह और शिवपाल के फोटो लगाए हुए हैं।

यह भी पढ़ें- UP Election 2017: अमित शाह बोले, सपा सरकार में काम नहीं मंत्रियों के कारनामे बोलते


कड़वे-मीठे शब्दों के ताजा समीकरण
चाचा भतीजा विवाद के बाद पार्टी और सरकार में हाशिए पर शिवपाल यादव ने 31 जनवरी को नामांकन के बाद नुमाइश पंडाल की सभा में ऐलान किया था कि 11 मार्च के बाद नई पार्टी बनाएंगे। यहां से विवाद की खाई और चौड़ी दिखी तो मुखिया मुलायम डैमेज कंट्रोल को आगे बढ़े। 11 फरवरी को शिवपाल के समर्थन में ताखा में जनसभा को संबोधित करते हुए परिवार की एकजुटता पर जोर दिया। संभवत: शिवपाल को भी कुछ ऐसा समझाया कि वह भी नरम हो गए। लिहाजा, खुलकर एक-दूसरे धड़े का विरोध कर रहे समर्थक भी मुंह पर अंगुली रख कर काम में जुट गए। उम्मीद जताई जा रही थी कि इससे भितरघात का नुकसान कम होता जाएगा। मगर, इसी नुमाइश मैदान से फिर कहानी बदल गई। गुरुवार को सदर से सपा प्रत्याशी कुलदीप गुप्ता संटू के समर्थन में सभा करने आए पार्टी के नए मुखिया अखिलेश यादव ने शिवपाल को बिना नाम लिए ही निशाने पर रखा। विश्वासघात से लेकर कई आरोप इशारों में लगाए। बस, उसके बाद से शांत नजर आ रहे अखिलेश विरोधी गुट के कार्यकर्ता फिर जड़ें हिलाने में सक्रिय हो गए हैं।

यह भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश चुनाव 2017: कांग्रेस-सपा गठबंधन सरकार करेगी कर्जा माफ

रामगोपाल ने डाला डेरा
इस कलह में चंद किलोमीटर स्थित परिवार के गांव सैफई से कोई सदस्य समर्थन या विरोध में नहीं आया है। सांसद तेजप्रताप यादव, शिवपाल यादव का नामांकन कराने के बाद लौटे नहीं। सिर्फ राष्ट्रीय महासचिव और अखिलेश के चाचा रामगोपाल यादव ही पूरी कमान संभाले हुए हैं। बीते चार दिन से वह सदर और भरथना सीट में प्रचार अभियान में जुटे हैं। हां, जसवंत नगर के मिजाज से शायद वह भी वाकिफ हैं, इसलिए उस तरफ वह गए ही नहीं हैं। मुलायम सिंह के अनुज राजपाल सिंह यादव और उनके पुत्र जिला पंचायत अध्यक्ष अभिषेक यादव भी सदर सीट तक ही सीमित हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.