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    SC से भी मायूस हुुए AK: LG ही रहेंगे दिल्ली के बॉस, केंद्र सरकार को नोटिस

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Sat, 10 Sep 2016 10:30 AM (IST)

    उपराज्‍यपाल से अधिकारों को लेकर दिल्ली सरकार की लड़ाई में उसे आज सुप्रीम कोर्ट (SC) से भी करारा झटका लगा है। उसे फिलहाल इस मामले में कोई राहत नहीं मिली है। एलजी ही दिल्‍ली के प्रशासक बने रहेंगे।

    नई दिल्ली (जेएनएन)। केंद्र से अधिकारों को लेकर दिल्ली सरकार की लड़ाई में उसे आज सुप्रीम कोर्ट से भी झटका लगा है। उसे फिलहाल कोई राहत नहीं मिली है। अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के फैसले पर रोक लगाने से साफ इन्कार कर दिया। ऐसे में उपराज्यपाल (एलजी) नजीब जंग के दिल्ली के बिग बॉस बने रहेंगे।

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    हालांकि, कोर्ट ने दिल्ली सरकार की 7 याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जस्टिस एके सीकरी और एनवी रमन्ना की पीठ ने केंद्र सरकार को छह हफ्ते में जवाब देने का समय देते हुए मामले को अंतिम सुनवाई के लिए 15 नवंबर तक स्थगित कर दिया।

    दिल्ली सरकार को लगातार दूसरे दिन झटका लगा है। कल हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को बड़ा झटका देते हुए 21 आप विधायकों के संसदीय सचिव बनाने की नियुक्ति रद कर दी थी।

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    AAP की दलील पर कोर्ट का जवाब

    सुनवाई के दौरान पीठ ने केजरीवाल सरकार के लिए पेश हुए वरिष्ठ वकीलों के इस आग्रह को मानने से इनकार कर दिया कि दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे लगाया जाए। उन्होंने कहा कि उप राज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक मुखिया बनाने के फैसले से दिल्ली प्रशासनिक संकट का सामना कर रही है। इस फैसले ने दिल्ली की निर्वाचित सरकार को महज एक सिफारिशी निकाय में तब्दील कर दिया है।

    उन्होंने कहा कि यदि उपराज्यपाल को कैबिनेट से सलाह लेने के लिए मना किया जा रहा है तो संसद ने दिल्ली में कैबिनेट का प्रावधान क्यों किया। उपराज्यपाल ने फैसले के बाद 400 फाइलों मंगवा लिया है और उनके निरीक्षण के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है जो उनमें आप सरकार द्वारा लिए गए प्रशासनिक निर्णयों में आपराधिकता तलाश रही है।

    उपराज्यपाल ने गुरुवार को 10 फाइलों में अनियमितताएं पाईं हैं। उन्होंने कहा मामले के लंबित रहते उपराज्यपाल को फाइलों पर कार्रवाई करने से रोक जाए। लेकिन कोर्ट ने इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह रोज कोई न कोई आदेश पास करते रहेंगे तो क्या हम रोजाना उन्हें देखते रहेंगे।

    क्या है केंद्र सरकार का तर्क

    केंद्र ओर से अटार्नी जरनल मुकुल रोहतगी और सालिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने बेंच से आग्रह किया कि सभी विशेष अनुमति याचिकाओं को सीधे खारिज कर देना चाहिए क्योंकि उनमें लगाया शपथपत्र उप मुख्यमंत्री का है। उन्होंने कहा कि शपथपत्र में मुख्य सचिव के हस्ताक्षर होने चाहिए।

    अटार्नी ने कहा कि दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश होने की स्थिति के बार में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ चर्चित एनडीएमसी केस स्थिति साफ कर चुकी है। मामले में कुछ नहीं बचा है इसलिए इस मामले में दोबारा जाने की जरूरत नहीं है।

    संविधान पीठ को भेजने में दिक्कतें

    इस दौरान आप सरकार के वकीलों ने कहा कि मामले को संविधान पीठ को भेजा जाए लेकिन अदालत ने कहा कि वह पहले इसकी प्राथमिक जांच करेंगे। जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि यदि यह मामला दिल्ली को केंद्र शासित राज्य होने से संबंधित है तो फिर इसे संविधान पीठ को भेजने की जरूरत नहीं होगी। क्योंकि नौ जजों की संविधान पीठ यह पहले से ही निर्णित किया जा चुका है दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश ही है। यदि मामले में कुछ और मुद्दे आते हैं तो फिर इसे संविधान पीठ को भेजा सकता है।

    क्या है हाई कोर्ट का फैसला

    पिछले महीने की चार अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा था कि दिल्ली के बॉस एलजी ही हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि एलजी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासनिक प्रमुख हैं। आम आदमी पार्टी की सरकार की इस दलील में कोई दम नहीं है कि उपराज्यपाल मंत्रियों की परिषद की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं।

    हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली सरकार की अर्जी पर सुनवाई की। दिल्ली सरकार ने 7 याचिकाएं दाखिल की हैं।

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    अपनी याचिका में दिल्ली सरकार ने दावा किया है कि इस फैसले के बाद हालात आसाधारण हो गए हैं। दिल्ली सरकार के अधिकारी समझ रहे हैं कि उन्हें मंत्री की जगह उपराज्यपाल को रिपोर्ट करना है और वो यही कर रहे हैं।

    दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच अधिकार के मामले में केजरीवाल सरकार ने प्रावधान 131 के तहत दायर याचिका यानी सूट वापस ले लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने केस वापस लेने की इजाजत दे दी थी। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 1 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दे दी गई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 7 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को दिल्ली सरकार ने चुनौती दी है।

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    यह है दिल्ली सरकार की याचिका में

    सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में दिल्ली सरकार का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले से लोकतांत्रिक व्यवस्था पलट जाएगी, जो संवैधानिक तरीके से दिल्ली को एक चुनी हुई विधानसभा के साथ राज्य का दर्जा देती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री विधानसभा के प्रति जवाबदेह हैं ना कि उपराज्यपाल के प्रति।

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    यहां पर याद दिला दें कि संविधान में 131 के तहत प्रावधान है कि यदि केंद्र और राज्य के बीच या राज्यों के बीच कोई विवाद हो तो सुप्रीम कोर्ट ही सुनवाई कर सकता है।