ASI की रिपोर्ट से बंधी कोहिनूर हीरे को भारत लाने की उम्मीद
कोहिनूर हीरा कुछ दिन से चर्चा का विषय बना हुआ है। भारत, इंग्लैड, पाकिस्तान व अफगानिस्तान इस पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं।
नई दिल्ली [विजयालक्ष्मी]। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने कोहिनूर हीरे पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट संस्कृति मंत्रालय को सौंप दी है। एएसआइ के प्रवक्ता व अतिरिक्त महानिदेशक रामनाथ फोनिया ने बताया कि सांसदों व संस्कृति मंत्रालय ने कोहिनूर हीरे के अतीत से संबंधित सभी साक्ष्य मांगे थे।
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रिपोर्ट तैयार करने में एएसआइ ने बाबरनामा और जम्मू-कश्मीर से संबंधित विभिन्न दस्तावेजों की मदद ली है। एएसआइ ने अपनी रिपोर्ट में इसे भारत वापस लाने संबंधी कानूनी पहलुओं की जानकारी भी दी है।
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एएसआइ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि भारतीय पुरातत्व से जुड़े एक्ट और 1970 में बने यूनेस्को कन्वेशन एक्ट इस मामले में लागू नहीं होते हैं। ऐसे में केंद्र सरकार को कोहिनूर हीरा लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयास करने चाहिए।
ज्ञात हो कि कोहिनूर हीरा कुछ दिन से चर्चा का विषय बना हुआ है। भारत, इंग्लैड, पाकिस्तान व अफगानिस्तान इस पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं।
केंद्र सरकार ने कुछ दिन पहले एएसआइ से कोहिनूर हीरे के बारे में विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा था। जिसके बाद से एएसआइ के विशेषज्ञों की टीम इसके प्रमाणिक साक्ष्य जुटाने में लग गई थी। इसके लिए उर्दू में अनुवाद किए गए बाबरनामा का हिंदी में अनुवाद किया गया और कोहिनूर हीरे से जुड़े तथ्यों को रिपोर्ट में शामिल किया गया।
बाबरनामा में बादशाह बाबर ने लिखा है, जब मैं आगरा पहुंचा तब हुमायूं ने बताया कि यह हीरा ग्वालियर के राजा विक्रमजीत के औलाद ने उसे नजर किया है। मैंने सब उपहार हुमायूं को लौटा दिए थे, बस हीरा रख लिया था। इस हीरे की कीमत दुनिया की आधी आबादी की आमदनी के बराबर है।
बाबरनामा तुर्की भाषा में लिखी गई थी। जिसे बाद में अबुल फजल ने फारसी में अनुवाद किया। इसके बाद इसका उर्दू व अन्य भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया।
एएसआइ का कहना है कि बाद में यह हीरा राजा रणजीत सिंह के आठ वर्षीय बेटे दिलीप सिंह (1838-1893) से गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने ले लिया था। डलहौजी के जरिये यह हीरा ब्रिटिश राजघराने तक पहुंचा।