बिहार में महागठबंधन बनी मजबूरी! ...मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना
बिहार में चल रही राजनीतिक गहमा-गहमी के बीच महागठबंधन के दरार की बातें सामने आईं। लेकिन, महागठबंधन अटूट है। यह घटक दलों की मजबूरी भी है।
पटना [काजल]। बिहार में महागठबंधन की सरकार पर आए दिन मुसीबतों का पहाड़ टूटता रहा है। राजनीतिक बयानबाजी हो या आरोप-प्रत्यारोप, या फिर एकता में दरार पड़ने की बात, गाहे-बगाहे बीजेपी के तीर से घायल होकर तीनों सहयोगी दल अपनी-अपनी पीड़ा को महसूस तो करते हैं, लेकिन उसे बयां करने से डरते हैं। इनमें तो बस 'हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना...' वाली बात है।
मंगलवार को आयकर विभाग की छापेमारी केंद्रीय वित्तमंत्री रहे पी चिदंबरम के बेटों के ठिकानों पर भी की गई। लेकिन, जब लालू यादव और उनके करीबियों के ठिकानों पर छापेमारी की बात सामने आई तो सियासी भूचाल आ गया। इस छापेमारी ने बिहार मे चल रही महागठबंधन की सरकार को कठघरे में ला खड़ा किया। दूसरी ओर सवालों के तीर से राजद छलनी होता रहा।
कुछ भी बोलने से कतराते रहे जदयू और कांग्रेस
घटनाक्रम पर बोलने से महागठबंधन के सहयोगी दल भी कतराते दिखे। राजनीतिक हलके में इसके कई मायने निकाले गए। घटनाक्रम से लालू को आघात लगा और उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं से गहन विचार-विमर्श कर आगे की रणनीति की चर्चा की।
लालू के ट्वीट ने मचाया धमाल
लेकिन, भूचाल तो लालू ने इस ट्वीट से आया कि 'बीजेपी को नया साथी मुबारक हो...।' इस ट्वीट ने राजनीतिक विश्लेषकों तक को अचंभे में डाल दिया। इसके बाद क्या था? राजनीतिक उबाल के बीच ये खबरें आने लगीं कि महागठबंधन टूट की कगार पर पहुंच गया है, अब इसपर मुहर लगनी बाकी है।
लेकिन, राजनीति के माहिर खिलाड़ी रहे लालू ने तुरंत अगला ट्वीट किया कि 'ज्यादा लार टपकाने की जरूरत नहीं है, गठबंधन अटूट है।' इससे बयानबाजी और आशंकाओं ने नया मोड़ ले लिया।
सबने कहा-महागठबंधन मजबूत है
महागठबंधन के सभी घटक दलों ने कहा कि उनकी एकता मजबूत है। लेकिन, विपक्ष ने इसे गहरे जख्म को झेलते हुए हंसी दिखाने की कोशिश करार दिया। वैसे भी राजनीति में कोई किसी का स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। इसमें कौन कब किस करवट का बैठेगा, कोई नहीं जानता। जब लालू व नीतीश एक साथ आए थे, तब भी यह आश्चर्य से कम नहीं था।
रही बात लालू-नीतीश की जोड़ी की, तो आज बड़े भाई-छोटे भाई बनकर गलबहियां करते दिखते दोनों नेताओं ने राजनीति की एक ही पाठशाला में पढ़ाई की है। एक समय एेसा भी था जब दोनों एक-दूसरे के धुर विरोधी थे। बीजेपी को सबक सिखाने के लिए दोनों ने एक दूसरे से समझौता किया और बिहार में महागठबंधन का प्रयोग हुआ।
विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने एनडीए को धूल चटाया
2015 के नवंबर महीने में बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर चुनाव हुए जिनमें से महागठबंधन ने 178 सीटों पर बंपर जीत हासिल की। आरजेडी को 80, जेडीयू को 71 और महागठबंधन की तीसरी पार्टी कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं। दूसरी ओर, एनडीए को करारी हार का सामना करना पड़ा। उसे केवल 58 सीटें हीं मिलीं।
नीतीश को पाकर धन्य हुई जनता
इस जीत के बाद महागठबंधन की सरकार ने उत्साही होकर बिहार को नई सूरत, नई सीरत देने का दावा किया। शराबबंदी का फैसला बहुत बड़ा फैसला था। उसके बात सात निश्चय कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घर-घर जाकर लोगों की फरियाद सुनीं और उन्हें पूरा करने का वचन दिया।
सबकुछ ठीक चल रहा था कि अचानक गठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद पर आरोप लगने शुरु हुए। तीनों दलों के बीच खटपट और विवाद की चर्चाएं होने लगीं। दलों के नेजाओं के बयान इन चर्चाओं का पुष्ट करते दिखे। लेकिन, सबने महागठबंधन अटूट है, कहकर अटकलों पर विराम लगा दिया।
बदल सकता है गठबंधन का समीकरण
फिलहाल की घटनाओं और आरोप-प्रत्यारोप के दौर में गठबंधन के समीकरण जरूर बदलेंगे। यह उल्लेखनीय है कि जहां लालू यादव आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी प्रत्याशी विपक्षी दलों को एकजुट कर घोषित करने की बात कह रहे हैं, वहीं नीतीश कुमार वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नाम पर तैयार हैं।
वहीं आयकर की छापेमारी मामले में नीतीश कुमार और शरद यादव जैसे जेडीयू के दिग्गजों की चुप्पी से कई मायने लगाए जा रहे हैं। एक ओर जहां राजद ने भाजपा पर क्षेत्रीय दलों के खिलाफ अड़चनें पैदा करने का आरोप लगाया वहीं बीजेपी की यही मंशा दिख रही है कि नीतीश अब लालू सहित उनके परिवार पर कार्रवाई करें।
नीतीश भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करेंगे
महागठबंधन मजबूत है, लेकिन नीतीश कुमार अपने उसूलों के पक्के और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने के लिए जाने जाते हैं। उनका बार-बार कहना कि अपराध साबित होने पर अपराधी कोई भी हो बख्शा नहीं जाएगा, एक बड़ा चैलेंज है। हालांकि जदयू और राजद एक दूसरे को भली-भांति जानते हैं और किसी भी मामले से अनभिज्ञ नहीं है, लेकिन राजनीतिक दोस्ती में समझौते तो करने ही होते हैं।
अभी विपक्ष के लिए लालू को घेरने का मौका है। आरजेडी सुप्रीमो के परिवार पर पिछले करीब 2 महीने से घोटाले के आरोप लगा रहे बीजेपी नेता सुशील मोदी ने लालू को बेनामी संपत्तियों के कथित गोरखधंधे का मास्टरमाइंड बताया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जांच की मांग की।
नीतीश ने कह दिया कि सच्चाई हो तो केंद्र सरकार जांच करा ले, केंद्र ने जांच के आदेश दे दिए। आयकर विभाग की छापेमारी हुई, इन सबमें टाइमिंग एेसी रही कि विपक्ष को तीर चलाने का मौका मिल गया।
रविशंकर प्रसाद ने कहा-लालू पर भी कार्रवाई हो
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पूरा देश जानता है कि जानवरों का चारा किसने खाया। उन्होंने सीएम नीतीश कुमार को उनकी सरकार के बनाए उस कानून की याद दिलाई जिसमें भ्रष्ट अधिकारियों की जायदाद जब्त करने का प्रावधान है। उन्होंने लालू पर भी इसी कानून को लागू करने की मांग की। प्रसाद का कहना था कि नीतीश कुमार में लालू के बेटों को मंत्रिमंडल से हटाने की हिम्मत नहीं है।
रामविलास, पप्पू यादव ने कहा-लालू से नाता तोड़िए
वहीं, लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और केंद्र में मंत्री रामविलास पासवान ने नीतीश से पूछा कि क्या भ्रष्टाचार के मामले में भी महागठबंधन अटूट है? जन अधिकार पार्टी के बाहुबली नेता पप्पू यादव ने भी बिहार के मुख्यमंत्री को लालू की पार्टी से नाता तोड़ने की सलाह दी।
जदयू भी समझ रहा, लालू की मंशा
जेडीयू के नेता भी समझ रहे हैं कि लालू यादव जानबूझ कर इशारों-इशारों में क्या बात कर रहे हैं। लालू यादव के बयान के बारे में पूछे जाने पर जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने कहा कि हम तो नए साथी की तलाश नहीं कर रहे हैं। लेकिन, लालू जी ने किस संदर्भ में क्यों यह बात कही है, इसकी व्याख्या वह खुद कर सकते हैं। हम तो कई अवसरों पर अनकंफर्टेबल रहकर भी इस गठबंधन की उम्र पूरी करना चाहते हैं।
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उन्होंने कहा कि जेडीयू के किसी नेता ने ने आज तक लालू यादव के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। लेकिन, अपने नेता के खिलाफ हम लगातार अशोभनीय शब्द सुन रहे हैं और बर्दाश्त कर रहे हैं। केसी त्यागी ने कहा कि अपनी तरफ से जेडीयू का गठबंधन को अंत तक निभाने की पूरी कोशिश करेगा।
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ये जो पब्लिक है वो सब जानती है
फिलहाल जो भी राजनीतिक हलचल हो बिहार की जनता सब और समझ रही है। चौक-चौराहों से पान-चाय की दुकानों तक चर्चा गर्म है कि क्या होगा गठबंधन का? एक ओर गठबंधन के सबसे बड़े दल राजद के अध्यक्ष पर चारा और बेनामी संपत्ति घोटाला के मामले हैं तो दूसरा बड़ा दल जदयू खामोश है। कांग्रेस दोनों दलों के बीच सेतु बनी हुई है। अब आगे-आगे देखिए होता है क्या?
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