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    टिहरी झील में विस्थापितों की उम्मीद बनी जल समाधि

    By BhanuEdited By:
    Updated: Wed, 08 Feb 2017 08:37 PM (IST)

    टिहरी बांध से न तो स्थानीय लोगों को बिजली-पानी मुहैया हो रहा और न सही ढंग से प्रभावितों का विस्थापन हो पाया है। प्रतापनगर क्षेत्र तो झील की वजह से अलग -थलग पड़ गया है।

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    टिहरी झील में विस्थापितों की उम्मीद बनी जल समाधि

    नई टिहरी, [जेएनएन]: जिस विकास के लिए फलते-फूलते टिहरी शहर को जलमग्न करने के साथ ही एक समृद्ध संस्कृति को दरबदर कर दिया गया हो, वह टिहरी बांध बनने के एक दशक बाद भी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा। विकास के मायने सिर्फ देश का सबसे ऊंचा बांध बनाना और झील को वोटिंग के लिए खोलना ही नहीं, बल्कि क्षेत्र में आधारभूत ढांचे की मजबूती को लेकर भी है।

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    इस लिहाज से देखें तो टिहरी बांध से न तो स्थानीय लोगों को बिजली-पानी मुहैया हो रहा और न सही ढंग से बांध प्रभावितों का विस्थापन हो पाया है। और तो और प्रतापनगर क्षेत्र तो झील की वजह से अलग -थलग पड़ गया है।

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    2006 में टिहरी बांध परियोजना के अस्तित्व में आने के बाद इसकी झील की जद में आने वाले टिहरी विस क्षेत्र के 1200 परिवारों को अभी विस्थापन का इंतजार है तो प्रतापनगर क्षेत्र के आठ गांवों की व्यथा भी ऐसी ही है।

    प्रतापनगर की डेढ़ लाख की आबादी को तो एक अदद पुल भी अब तक नसीब नहीं हो पाया है। इन मसलों का क्षेत्रवासी लगातार सियासतदां को ध्यान दिलाते आ रहे, मगर मजाल क्या कि किसी ने इसे गंभीरता से लिया हो। अब फिर से सियासी समर में उतरे सूरमा क्षेत्र की जनता के बीच हैं। जाहिर है, उन्हें भाग्यविधाताओं के ऐसे सवालों से जूझना पड़ेगा।

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    यहां जर्जर होने लगे हैं घर

    बांध की झील के कारण टिहरी विस क्षेत्र के उत्थड़, नंदगांव, पिपोला, कैलबागी, भटकंडा व चोपड़ा गांवों में भूस्खलन और भूधंसाव की दिक्कत आने लगी है। घरों की बुनियाद हिलने के साथ ही दीवारों में दरारें पड़ चुकी हैं।यह भी पढ़ें: यहां पेयजल की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं ग्रामीण

    स्थिति तब नाजुक हो जाती है, जब बरसात में झील का जलस्तर बढ़कर इन गांवों के करीब तक आ जाता है। यहां के 1200 परिवारों के विस्थापन के आदेश सुप्रीम कोर्ट भी कर चुकी है, मगर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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    खतरे की जद में आठ गांव

    प्रतापनगर विस क्षेत्र के खांड, जलवाल गांव, सांदणा, मदननेगी, गडोली, रौलाकोट, सिल्ला उप्पू, म्यूंडा गांव भी झील की वजह से खतरे की जद में हैं। भूगर्भीय सर्वेक्षण में भी इन्हें खतरनाक मानते हुए संयुक्त विशेषज्ञ समिति ने विस्थापन की सिफारिश की, जो फाइलों में गुम है। क्षेत्रवासी कई मर्तबा आंदोलन कर चुके हैं। लेकिन आश्वासन ही मिले।

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    अलग-थलग पड़ा प्रतापनगर क्षेत्र

    42 वर्ग किमी में फैली टिहरी बांध की झील ने प्रतापनगर विधानसभा क्षेत्र को एक प्रकार से अलग-थलग किया हुआ है। नतीजतन, यहां की लगभग डेढ़ लाख की आबादी कालापानी की सजा भुगत रही है। प्रतापनगर क्षेत्र को जोडऩे के लिए डोबरा-चांटी पुल की कसरत 2006 से चल रही है, मगर यह आस अब तक पूरी नहीं हो पाई है।

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