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    भगवान गणेश का अनोखा मंदिर, जहां बिना सिर के होती है उनकी पूजा

    Updated: Sun, 28 Dec 2025 06:31 PM (IST)

    उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद में गौरीकुंड के पास मुण्डकटिया गणेश मंदिर में बिना सिर वाले गणेश की पूजा होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, यहीं भगवान शिव ...और पढ़ें

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    केदारघाटी में मुण्डकटिया गणेश मंदिर में स्थित मुनकटिया गणेश की प्रतिमा। जागरण 

    नितिन जमलोकी, जागरण गौरीकुंड: भगवान शिव की भूमि केदारपुरी के प्रवेश द्वार पर स्थित है एक ऐसा अनोखा भगवान गणेश का मंदिर, जहां बिना सिर वाले गणेश की पूजा होती है। इस मंदिर का नाम मुण्डकटिया गणेश मंदिर है। ऐसी दुर्लभ आराधना संभवत: भारतवर्ष में कहीं और देखने को नहीं मिलती होगी।

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    मुण्डकटिया गणेश मंदिर मंदाकिनी नदी के तट पर गौरीकुंड मार्ग पर स्थित केदार घाटी की मनोरम वादियों में बसा है और भगवान शिव की आध्यात्मिक परंपरा में इसका विशेष स्थान है। ‘मुण्डकटिया’ नाम दो शब्दों से बना है, जिसमें मुण्ड (सिर) और कटिया (कटा हुआ), जो इस मंदिर की प्राचीन पौराणिक कथा से जुड़ाव को दर्शाता है।

    स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यही वह पवित्र स्थान है जहां भगवान शिव ने भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया था, जब गणेश ने देवी पार्वती के निजी कक्ष में प्रवेश करने से शिव को रोक दिया था। तभी से यह स्थान श्रद्धा, आस्था और दिव्य शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

    पौराणिक मान्यता

    माता पार्वती ने अपने प्रथम ऋतु स्नान के दौरान गौरीकुंड में पुरुष जाति के प्रवेश को रोकने के लिए अपने उबटन से भगवान गणेश की रचना की थी। इसी दौरान माता पार्वती ने गणेश को द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया।

    यहीं पर शिव और गणेश के मध्य भयंकर युद्ध हुआ था, जिसमें शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। यह जानकर माता पार्वती अत्यंत क्रोधित हो गईं तथा पुत्र को पुनर्जीवित करने की हठ करने लगीं। माता के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने हाथी का सिर लाकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया, जिसके बाद गणेश गजानन के रूप में विख्यात हुए।

    सर्वप्रथम होती मुण्डकटिया गणेश की पूजा

    स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान शिव ने स्वयं माता पार्वती से कहा था कि जो भी तीर्थयात्री केदार क्षेत्र में प्रवेश करे, उसे सर्वप्रथम मुण्डकटिया गणेश की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यहां पूजन से सभी विघ्नों का नाश होता है। बिना पूजा के की गई तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है।

    कैसे पहुंचे मंदिर

    रुद्रप्रयाग जनपद में सोनप्रयाग से तीन किमी की दूरी पर यह मंदिर स्थित है। यहीं से तीन किमी आगे माता गौरी मंदिर गौरीकुंड स्थित है। इसी गौरीकुंड से बाबा केदारनाथ धाम की पैदल यात्रा का शुभारंभ होता है। इस पावन स्थल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भगवान गणेश के सिर कटे स्वरूप की पूजा की जाती है।

    भारत में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां मुण्डकटिया गणेश के रूप में आराधना होती है। केदारखंड में इस स्थान का विशेष उल्लेख मिलता है और इसके दर्शन के बाद ही तीर्थयात्रा को पूर्ण माना जाता है।
    -विमल जमलोकी, मंदिर के पुजारी

    शासन-प्रशासन और पर्यटन विभाग की उपेक्षा के कारण आज तक इस स्थल का समुचित विकास नहीं हो पाया है। मंदिर में नित्य पूजा-अर्चना होती है, लेकिन केदारनाथ यात्रा के दौरान भी बहुत कम श्रद्धालु इस स्थान की पौराणिक महत्ता से परिचित होकर यहां पहुंच पाते हैं। यदि शीतकाल में इस स्थल का प्रचार-प्रसार किया जाए तो श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
    अनुसूया प्रसाद गोस्वामी स्थानीय ग्रामीण

    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की शीतकालीन यात्रा में मुण्डकटिया गणेश को भी शामिल किया जाना चाहिए। इससे न केवल इस पौराणिक धरोहर को पहचान मिलेगी, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों और व्यापारियों के लिए रोजगार व आजीविका के नए अवसर भी सृजित होंगे।
    रामचंद्र गोस्वामी, अध्यक्ष व्यापार संघ

     

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