ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना: लछमोली से मलेथा के बीच 3 किमी लंबी सुरंग बनकर तैयार, 125 किमी का है प्रोजेक्ट
Rishikesh-Karnprayag Rail Project वीर शिरामणि माधो सिंह भंडारी ने 400 वर्ष पूर्व मलेथा गांव की असिंचित भूमि को सिंचित बनाने के लिए अपने दम पर सुरंग खोदकर गूल का निर्माण कर इंजीनियरिंग को अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया था। अब उसी मलेथा गांव में एक और सुरंग के निर्माण ने इतिहास को दोहराने का काम किया था। 400 साल पहले गांव की समृद्धि के लिए यह सुरंगा खोदी गई थी।
दुर्गा नौटियाल, ऋषिकेश। Rishikesh-Karnprayag Rail Project: वीर शिरामणि माधो सिंह भंडारी ने 400 वर्ष पूर्व मलेथा गांव की असिंचित भूमि को सिंचित बनाने के लिए अपने दम पर सुरंग खोदकर गूल का निर्माण कर इंजीनियरिंग को अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया था। अब उसी मलेथा गांव में एक और सुरंग के निर्माण ने इतिहास को दोहराने का काम किया था। 400 साल पहले गांव की समृद्धि के लिए यह सुरंगा खोदी गई थी और अब ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना (Rishikesh-Karnprayag Rail Project) के लिए यहां सुरंग का निर्माण किया गया है।
2.869 किमी है सुरंग की लंबाई
रेल विकास निगम के मुख्य परियोजना प्रबंधक अजीत सिंह यादव ने बताया कि 125 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना (Rishikesh-Karnprayag Rail Project) के पैकेज पांच में निकास सुरंग संख्या-09 लछमोली से मलेथा के बीच बनी है। इस सुरंग की कुल लंबाई 2.869 किमी है।
22 सितंबर 2020 को शुरू किया गया था खोदाई का काम
आरवीएनएल की कार्यदायी संस्था एनइसीएल ने मैसर्स युकसेल प्रोजे की देखरेख में 22 सितंबर 2020 को इस सुरंग की खोदाई का काम शुरू किया था। बीती आठ अक्टूबर को 1111 दिन में इस सुरंगा को सफलतापूर्वक आरपार किया है।
कर्णप्रयाग रेल परियोजना (Karnprayag Rail Project) पर टिहरी जिले में एनइसीएल के पास मैसर्स युकसेल प्रोजे की देखरेख में सुरंग-9 (2.869 किमी निकास सुरंग) के अलावा सुरंग-10 (4.067 किमी मुख्य व 4.127 किमी निकास सुरंग), छह छोटे पुल के साथ मलेथा और रानीहाट-नैथाना में दो रेलवे स्टेशन के निर्माण की जिम्मेदारी है।
चुनौतीपूर्ण लक्ष्य था मलेथा में रेल सुरंग
मलेथा में रेल सुरंग (Rail Tunnel) की खोदाई का काम आधुनिक विज्ञान के लिए इसलिए भी एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य था, कि यहां करीब 400 साल पहले वीर शिरोमणि माधो सिंह भंडारी सीमित साधनों से दो किमी लंबी भूमिगत सिंचाई गूल का निर्माण कर इंजीनियरिंग का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत कर चुके थे, जो आज भी सभी काे हैरान कर देता है।
वीर माधो सिंह भंडारी ने इस गूल के निर्माण से मलेथा गांव की ऊसर भूमि को सिंचित बनाकर गांव को समृद्ध करने का काम किया था। मगर, अब मलेथा गांव आधुनिक विज्ञान का साक्षी बनने जा रहा है। अब मलेथा गांव से होकर उत्तराखंड (Uttarakhand) के पर्वतीय क्षेत्रों के विकास की रेल दौड़ेगी।
राजमार्ग के कारण चुनौतीपूर्ण था सुरंग का निर्माण
लछमोली व मलेथा के बीच तैयार की गई इस सुरंग के निर्माण में कई बड़ी चुनौतियां भी थी। सुरंग के दोनों प्रवेश बिंदु राष्ट्रीय राजमर्गा सं. 58 से जुड़े हैं, जो बदरीनाथ (Badrinath) और केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) का मुख्य मार्ग है। उत्तराखंड (Uttarakhand) के इस सबसे व्यस्ततम राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुरंगों के निर्माण के साथ यातायात को निर्बाध बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं था। इसके लिए यहां राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) पर डायवर्जन भी बनाना पड़ा।
कार्यदायी संस्था को यहां सुरंग खोदाई से पूर्व भूमि अधिग्रहण, ढलान स्थिरीकरण और डायवर्जन की प्रक्रिया में ही दो साल का समय लगाना पड़ा। यहां की भूमिगत संरचना भी बहुत नाजुक थी, जिससे सुरंग बनाने की गति में बाधा उत्पन्न हुई।
पांच किमी प्रति माह की रफ्तार से हो रही सुरंगों की खोदाई
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना (Rishikesh-Karnprayag Rail Project) की कुल लंबाई 125 किमी है, जिसमें 105 किमी हिस्सा सुरंगों के भीतर तय होगा। इस परियोजना पर 105 किमी मुख्य सुरंगों के अलावा निकास सुरंग, निकास व मुख्य सुरंगों को जोड़ने के लिए क्रास पैसेज व एडिटल सुरंगें भी शामिल हैं, जिनकी कुल लंबाई 213 किमी है।
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129.446 किमी सुरंगों की हो चुकी है खुदाई
अब तक कुल 213 किमी सुरंगों में से कुल 129.446 किमी सुरंगों की खोदाई की जा चुकी हैं। जिनमें 60.739 किमी मुख्य सुरंग, 60.191 किमी निकास सुरंग, 3.694 क्रास पैसेज और 4.822 किमी एडिट सुरंगें शामिल हैं। वर्तमान में सुरंगों की खोदाई की गति पांच किमी प्रतिमाह है।
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