उत्तराखंड चुनावः हड़बड़ी में सरकार ने ताक पर रखे नियम
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के लिए आचार संहिता लगने से पहले सरकार से बांटे गए दायित्वों में नियम कायदों को भी ताक पर रखा गया। ऐसे पद सृजित किए गए, जो ढांचे में थे ही नहीं।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने से पहले सरकार से चुनावी हड़बड़ी में पार्टी पदाधिकारियों को खुश करने के लिए बांटे गए दायित्वों में नियम कायदों को भी ताक पर रखा गया।
हालत यह है कि आनन फानन ऐसे पद सृजित किए गए, जो ढांचे में थे ही नहीं। अब इन पदों के सृजन पर नियमावली को आधार बनाते हुए विभागीय अधिकारी ही आपत्ति लगा रहे हैं।
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सरकार की ओर से पिछले एक पखवाड़े में बड़ी संख्या में दायित्वधारी बनाए गए। इन्हें सरकारी सुविधाएं भी प्रदान की गई। सरकार का कहना था कि पदाधिकारियों को सम्मान देने के लिए यह कदम उठाया गया। स्थिति यह हुई कि कार्यकर्ताओं को सम्मान देने से पहले नियम व कायदों को भी ताक पर रखा गया।
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ऐसा ही एक उदाहरण परिवहन विभाग में सड़क सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष का भी है। दरअसल, सड़क सुरक्षा परिषद का गठन सुप्रीम कोर्ट की ओर से सड़क सुरक्षा पर निगरानी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गठित समिति के निर्देश पर किया गया। सड़क सुरक्षा परिषद का गठन मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के अंतर्गत किया गया है।
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जब इसका ढांचा तैयार किया गया, तब इसमें उपाध्यक्ष का पद नहीं था। परिषद में विभागीय मंत्री इसके पदेन अध्यक्ष और सचिव परिवहन इसके पदेन सचिव हैं। इसके अलावा सभी संबंधित विभागों के प्रमुख सचिव इसके पदेन सदस्य हैं। इसमें राजनीतिक पद का कोई उल्लेख नहीं है।
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वहीं, दायित्व बांटने में मशगूल सरकार ने 25 दिसंबर को सड़क सुरक्षा परिषद में ओखल कांडा नैनीताल के सतीश नैनवाल को उपाध्यक्ष बना दिया। यहां तक कि उन्हें ख श्रेणी के दायित्वधारी को अनुमन्य सुविधा भी प्रदान कर डाली। आनन फानन हुए निर्देशों में नियमों की अवहेलना का ध्यान ही नहीं दिया गया।
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अब जब शासन के कुछ अधिकारियों का ध्यान इस ओर दिलाया गया तो उन्होंने सचिव परिवहन को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत कराते हुए इस आदेश पर आपत्ति लगाई है।
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