विश्वकर्मा जयंती वर्ष 2031 से 17 नहीं 18 सितंबर को मनाई जाएगी, जानें इस बदलाव की अनोखी वजह
हर साल 17 सितंबर को सृष्टि के आदिशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाई जाती है जो कन्या संक्रांति के दौरान होती है जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है। ज्योतिर्विदों के अनुसार सूर्य का राशि परिवर्तन लगभग 72 वर्षों में होता है जिसके कारण भविष्य में विश्वकर्मा जयंती 18 सितंबर को मनाई जाएगी।

शैलेश अस्थाना, जागरण, वाराणसी। सृष्टि के आदिशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती प्रतिवर्ष 17 सितंबर को मनाई जाती है। एक हिंदू पौराणिक देवता की जयंती ग्रैगेरियन कैलेंडर की निश्चित तिथि पर मनाया जाना सनातन धर्मावलंबियों के मन में कौतूहल उत्पन्न करता है। वास्तव में भगवान विश्वकर्मा जयंती व पूजनोत्सव 17 सितंबर के बजाय कन्या संक्रांति में मनाया जाता है।
अभी तक मकर संक्रांति की तिथि 14 और 15 जनवरी को लेकर लोग विचार करते रहे हैं। जो पूर्व में लोग मान कर बैठे थे कि यही स्थाई तिथि है लेकिन अब यह 15 जनवरी कुछ समय से स्थायी दिखने लगी है। अब विश्वकर्मा जयंती की तिथि भी 17 सितंबर के स्थायी भाव से मुक्त हो जाएगी। इसके बाद वर्ष 2031 से 18 सितंबर को ही विश्वकर्मा जयंती लंबे समय तक मनाई जाएगी।
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चूंकि दशकों से कन्या संक्रांति 17 सितंबर के आसपास पड़ती आ रही है, इसलिए पारंपरिक रूप से यह उत्सव 17 सितंबर को मनाया जाता है। ज्योतिर्विदों का कहना है कि अगले छह वर्ष बाद स्थिति में परिवर्तन आएगा और यह उत्सव 17-18 सितंबर के मध्य होते-होते-होते 18 सितंबर को मनाया जाएगा।
प्रतिवर्ष सूर्य के सिंह से कन्या राशि में प्रवेश पर लगती है कन्या संक्रांति और इसके बाद आदि शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती लोग मनाते हैं। एक राशि में एक ही तिथि पर सूर्य का संक्रमण होने की अवधि लगभग 72 वर्ष होती है।
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पौराणिक कथाानकों के अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा के पुत्र भगवान विश्वकर्मा का जिस समय प्राकट्य हुआ, सूर्य सिंह से कन्या राशि में प्रवेश कर रहे थे यानी कन्या संक्रांति लग गई थी। बीएचयू के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि विश्वकर्मा जयंती सौर मान के अनुसार मनाया जाने वाला पर्व है। इसके बारे में ठीक-ठीक वर्णन तो धर्मशास्त्रों में नहीं मिलता किंतु विद्वत श्रुति के अनुसार कन्या संक्रांति के आसन्न इनकी जयंती परंपरानुसार मनाते चले आ रहे हैं।
सूर्य सभी राशियों में संचरण करते रहते हैं। मकर राशि में प्रवेश पर मकर संक्रांति, मेष में प्रवेश पर मेष संक्रांति होती है, उसी तरह कन्या राशि में प्रवेश पर कन्या संक्रांति लगती है।
प्रो. पांडेय बताते हैं कि 1981 से कन्या संक्रांति 17 सितंबर को पड़ती आ रही है। इस बीच में पिछले वर्षों में कभी-कभी 16 सितंबर को भी कन्या संक्रांति पड़ी लेकिन पारंपरिक रूप से पर्व 17 सितंबर में ही मनाया गया। सूर्य की राशि स्थिति में तिथि परिवर्तन लगभग 72 वर्षों बाद होता है।
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यह अवधि पूर्ण हो जाने पर कुछ वर्षों पश्चात एक समय ऐसा आएगा, जब कन्या संक्रांति 18 सितंबर को पड़ने लगेगी तो विश्वकर्मा जयंती की तिथि भी बदल जाएगी। पिछले वर्षों में देखा जाए तो 1980 के आसपास कन्या संक्रांति 16 सितंबर को पड़ती थी। फिर बाद के दिनों में 17 सितंबर को पड़ने लगी।
कभी-कभी यह 16 और 17 के मध्य भी पड़ी। अब 2031 से यह 17-18 के मध्य होने लगेगी और फिर कुछ वर्षों बाद 18 सितंबर को पड़ने लगेगी। वर्ष 2100 के आस-पास कन्या संक्रांति 18-19 सितंबर को पड़ने लगेगी। यह तिथियों का बदलाव हिंंदू कैलेंडर में होता रहता है। चूंकि लंबे समय बाद बदलाव होने पर यह हमें आश्चर्य से सराबोर करता है लेकिन वस्तुत: यह वास्तविक और स्वत: बदलाव है।
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