काशी में कर्मकांड व हर्षोल्लास के साथ संपन्न श्रावणी उपाकर्म, जानें वैदिक परंपराओं का महत्व
Varanasi news वाराणसी जिले में गंगा तट पर स्नान व तर्पण के पश्चात सभी द्विज ब्राह्मण शास्त्रार्थ महाविद्यालय के सरस्वती सभागार में उपस्थित हुए। यहां गणपति व ऋषि पूजन के साथ पुराने जनेऊ को बदलकर नया जनेऊ धारण किया गया। इसके अलावा भी शहर के विभिन्न क्षेत्रों में विविध आयोजन हुए।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। गुरु (शिक्षक) संस्कृत-संस्कार और संस्कृति के परिदृश्य में विद्यार्थियों को उत्तम कर्म करने का पाठ पढ़ाएं, शिक्षक श्रेष्ठ गुरु बन, श्रेष्ठ विद्यार्थियों का जन्म दें, जब श्रेष्ठ विद्यार्थी होंगे तभी श्रेष्ठ भारत का निर्माण होगा।
वही कर्णधार भारत के परिदृश्य को विश्व फलक पर स्थापित करेंगे। उक्त विचार शनिवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विभाग के अंतर्गत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन राष्ट्र कल्याण एवं संस्कृत परंपरा के अनुसार श्रावणी उपाकर्म (ऋषि पूजन) पर संस्कृत जगत को आशीर्वाद देते हुए कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने व्यक्त किए।
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जनेऊ पूजन एवं ब्रह्म गांठ बांधकर
प्रो. महेन्द्र पांडेय ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि इस दिन सुबह दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान करते हैं। फिर कोरे जनेऊ की पूजा करते हैं। जनेऊ की गांठ में ब्रह्म स्थित होते हैं। उनके धागों में सप्तऋषि का वास माना जाता है। ब्रह्म और सप्तऋषि पूजन के बाद नदी या सरोवर में खड़े होकर ब्रह्मकर्म श्रावणी संपन्न होती है। पूजा के बाद उसमें शामिल जनेऊ में से एक जनेऊ पहन लेते हैं और बाकी के जनेऊ रख लेते हैं। पूरे वर्षभर जब भी जनेऊ बदलने की आवश्यकता होती है तो श्रावणी उपाकर्म के पूजन वाले जनेऊ को ही पहनते हैं।
द्विजन्म के नाम से यह पर्व जाना जाता
बतौर मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य एवं न्याय शास्त्र के उद्भट विद्वान् प्रो. रामपूजन पांडेय ने कहा कि यह पर्व द्विजन्म के नाम से भी जाना जाता है,मनुष्य एक बार अपने मां के तन से जन्म लेता है मनुष्य का जन्म ही नहीं पशुओं पक्षियों का भी इस तरह से जन्म होता है, लेकिन मनुष्य उन सबसे भिन्न है उसका श्रेष्ठ गुरुओ की सानिध्यता में शिष्य बनाकर आज के ही दिन गुरुकुलों में विद्याध्ययन के लिए प्रवेश दिया जाता है,यहाँ पर गुरु जन अपने शिष्यों को राष्ट्र,समाज और परिवार के प्रति उत्तमचरित्र, नैतिक, राष्ट्रीयता, संस्कार संस्कृति एवं दयाभाव का अध्ययन कराते हैं। शिष्य गुरु के प्रति अपने भाव और आदर के माध्यम से सम्पूर्ण समय समर्पित करते हैं संस्कृत दिवस और रक्षाबंधन का पर्व भी आज ही के दिन होता है।यह पापों के प्रायश्चित के लिए पूजन के माध्यम से किया जाता है।
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श्रावणी उपाकर्म के साथ गंगा स्नान एवं ऋषि पूजन
प्रो. सुधाकर मिश्र के अध्यक्षता में श्रावणी उपाकर्म के लिए वेद विभागाध्यक्ष प्रो. महेंद्र नाथ पांडेय सहित अनेक अध्यापकों और विद्यार्थियों ने प्रातः 09:30 बजे गंगा तट पर स्नान आदि के साथ विधि पूर्वक गण पूजन किया।
सप्तऋषि, गणेश और गौरी पूजन
उसके बाद विश्वविद्यालय के वेद विभाग में मध्याह्न 10:30 बजे कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा के आशीर्वादन एवं प्रो रामपूजन पाण्डेय जी के अध्यक्षता में षोडशोपचार विधि से संस्कृत,संस्कृति और संस्कार तथा दया, करुणा, राष्ट्रीयता के भाव के लिये सप्तऋषि,गौरी -गणेश पूजन किया गया।
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इनकी रही विशेष उपस्थिति
वेदविभागाध्यक्ष प्रोफेसर महेंद्र पाण्डेय के निर्देशन, डाक्टर विजय कुमार शर्मा के आचार्यत्व तथा डाक्टर सत्येन्द्र कुमार यादव के संयोजकत्व में सम्पन्न हुआ। उस दौरान प्रो. रामपूजन, प्रो. सदानंद शुक्ल, प्रो. महेंद्र पांडेय, विजय शर्मा, डा. सत्येंद्र कुमार यादव, डा. गिरजा शंकर चौबे, डा. जनक नंदिनी, डा. साकेत शुक्ल डा. श्याम सुंदर तिवारी, संतोष दुबे आदि उपस्थित रहे।
श्रावणी पूर्णिमा पर्व सतुआ बाबा आश्रम मे मनाया गया
वाराणसी में शनिवार को मणिकर्णिका घाट स्थित सतुआ बाबा आश्रम में सावन माह के पूर्णिमा पर महामंडलेश्वर सन्तोष दास सहित सैकड़ों सनातन धर्म के लोगों ने ललिता घाट गंगा द्वार पर विधि विधान के साथ गंगा स्नान पंच द्रव्यो से स्नान के बाद काशी विश्वनाथ जी का दर्शन पूजन कर आश्रम में श्रावणी उपक्रम के पूजन पाठ हवन कर श्रावणी पूर्णिमा पर्व मनाया गया।
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शास्त्रार्थ महाविद्यालय व विप्र समाज के संयुक्त तत्वाधान में अहिल्याबाई घाट पर सैकड़ों की संख्या में श्रावणी उपाकर्म का पर्व मनाया। आयोजन के सह संयोजक व शास्त्रार्थ महाविद्यालय के प्राचार्य डा. पवन कुमार शुक्ल ने कहा कि श्रावणी पर्व पर द्विजत्व के संकल्प का नवीनीकरण किया जाता है। उसके लिए परंपरागत ढंग से तीर्थ अवगाहन, दशस्नान, हेमाद्रि संकल्प एवं तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं। श्रावणी के कर्मकाण्ड में पाप-निवारण के लिए हेमाद्रि संकल्प कराया जाता है, जिसमें भविष्य में पातकों, उपपातकों और महापातकों से बचने, परद्रव्य अपहरण न करने, परनिंदा न करने, आहार-विहार का ध्यान रखने, हिंसा न करने, इंद्रियों का संयम करने एवं सदाचरण करने की प्रतिज्ञा ली जाती है।
कठिन संकल्प के बाद शुद्धि के लिए गाय के गोबर, मिट्टी, भस्म, दूर्वा, अपामार्ग व कुशा से मार्जन के साथ पंचगव्य जिसमें गोमय (गाय का गोबर), गोदधि (गाय के दूध से बनी दही), गोघृत (गाय का शुद्ध घी), गोदुग्ध (गाय का दूध) गोमूत्र (गाय का मूत्र ) आदि शामिल हैं से स्नान व प्राशन किया गया।
यह संस्कार जनेऊ बदलने और नया जनेऊ धारण करने का कर्म है। गंगा तट पर स्नान व तर्पण के पश्चात सभी द्विज ब्राह्मण शास्त्रार्थ महाविद्यालय के सरस्वती सभागार में उपस्थित हुए। यहां गणपति व ऋषि पूजन के साथ पुराने जनेऊ को बदलकर नया जनेऊ धारण किया गया।
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