मीरजापुर में विंध्याचल से निर्धारित होता है भारत का समय, धर्म और विज्ञान का अद्भुत संगम
मीरजापुर धर्म और विज्ञान का संगम स्थल है जहाँ माँ विंध्यवासिनी मंदिर के पास भारत का मानक समय निर्धारित होता है। 1947 में मीरजापुर के क्लाक टावर से 82.5 डिग्री पूर्वी देशांतर पर आधारित आइएसटी अपनाया गया जो ग्रीनविच मीन टाइम से साढ़े पांच घंटे आगे है। भौगोलिक केंद्र में होने के साथ-साथ धार्मिक मान्यताओं से भी जुड़ा है

जागरण संवाददाता, मीरजापुर। विंध्याचल ऐसा दुर्लभ स्थल है, जहां धर्म और विज्ञान का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। एक ओर यहां शक्ति की उपासना होती है, तो दूसरी ओर यह देश के समय निर्धारण की धुरी भी है। धर्म व विज्ञान की संगम नगरी मीरजापुर से ही भारत का मानक समय तय होता है।
भारत ने 1 सितंबर 1947 को अपना आधिकारिक मानक समय (आइएसटी) अपनाया था, जिसकी गणना 82.5 डिग्री पूर्वी देशांतर के आधार पर मीरजापुर के क्लाक टावर से की जाती है।
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यह वैश्विक मानक समय ग्रीन विच मीन टाइम से साढ़े पांच घंटे आगे है। यह काल्पनिक रेखा जिले में स्थित विंध्याचल कस्बे के समीप यानी मां विंध्यवासिनी मंदिर से दक्षिण, मीरजापुर-इलाहाबाद मार्ग पर अमरावती के पास से होकर गुजरती है, जो भारत के समय निर्धारण का केंद्र है।
...तो इसलिए मीरजापुर के विंध्याचल को ही चुना गया इसका केंद्र
प्रोफेसर इंदुभूषण द्विवेदी के मुताबक वैसे तो वैश्विक समय निर्धारण की शुरुआत वर्ष 1884 में इंटरनेशनल मेरिडियन कान्फ्रेंस में ही हो गई थी। उस समय 25 देशों के 41 डेलीगेट्स शामिल हुए थे। हालांकि उस दौरान भारत ब्रिटिश के अधीन था। ग्रीनविच, लंदन को पूरी दुनिया के लिए प्राइम मेरिडियन (0 डिग्री देशांतर) घोषित किया गया। तय हुआ कि ग्रीनविच से पूर्व की दिशा में जाने पर समय प्लस (आगे) होगा। वहीं पश्चिम की दिशा में समय माइनस होगा।
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हर 15 डिग्री देशांतर पर एक घंटे का अंतर होगा। इसलिए, हर 7.5 डिग्री देशांतर पर आधा घंटा यानी 30 मिनट का समय अंतर माना गया। इसी के अनुसार हर देश को ग्रीनविच मीन टाइम के आधार पर अपना स्टैंडर्ड टाइम तय करना था। वर्ष 1906 में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने भारत में एक ऐसा मध्याह्न रेखा चुना जो पूरे देश के लिए प्रभावी रूप से उपयोगी हो। ऐसे में 82.5 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित मीरजापुर के विंध्याचल काे चयन इसलिए किया गया क्योंकि यह देश के विशाल विस्तार के लिए एक केंद्रीय बिंदु प्रदान करता था। हालांकि पूरे देश के लिए आधिकारिक समय के रूप में आइएसटी एक सितंबर 1947 में लागू किया गया। इसके बाद यहां क्लाक टावर स्थापित किया गया जिसका बाद में जिला प्रशासन ने सौंदर्यीकरण किया।
मीरजापुर भारत के अधिकांश भाग के लिए एक उचित केंद्रीय संदर्भ बिंदु
भूगोलविद् अमित सिंह के मुताबिक यह काल्पनिक रेखा उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा व आंध्र प्रदेश से गुजरती है। चूंकि भारत बहुत लंबा-चौड़ा देश है, जिसमें पूरब (अरुणाचल प्रदेश) में सूरज जल्दी निकलता है जबकि पश्चिम (गुजरात) में सूरज देर से उगता है। इस कारण देश में लगभग 2 घंटे का प्राकृतिक समय अंतर होता है।
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ऐसे में देश के किसी एक छोर (जैसे सिर्फ दिल्ली या कोलकाता) का समय चुनते तो दूसरे छोर के लिए समय बहुत असमान हो जाता। इसलिए समय का निर्धारण उस जगह से किया गया जो देश के बीचों-बीच हो यानी मीरजापुर का विंध्याचल जो कि 82.5 डिग्री पूर्वी देशांतर पर है। मीरजापुर इस तरह स्थित है कि यह भारत के अधिकांश भाग के लिए एक उचित केंद्रीय संदर्भ बिंदु प्रदान करता है। इससे देश भर में समय-निर्धारण में विसंगतियां कम होती हैं।
जिला प्रशासन ने इस स्थल का करवाया सुंदरीकरण
वर्ष 2007 में भूगोलविदों के एक दल दिल्ली से मीरजापुर पहुंचा। विज्ञान और भूगोल के प्रति जनजागरूकता फैलाने वाली ''''साइंस पापुलेराइजेशन एसोसिएशन आफ कम्युनिकेटर्स एंड एजुकेटर्स'''' (स्पेस) नामक संस्था ने अपने शोध के आधार पर निकले निष्कर्ष के तहत एक सटीक बोर्ड लगवाया और वहां पर संबंधित जानकारी उपलब्ध कराई। स्पेस के दल ने भी माना कि यही वह स्थल है जो भारत के मध्य में स्थित है और जहां से देश का मानक समय निर्धारित होता है। बाद में जिला प्रशासन ने इस स्थल का सुंदरीकरण करवाया। आज यहां सेल्फी प्वाइंट की तरफ इसकी आभा चमकती है। यहां पर प्रशासन की ओर से सेल्फ प्वाइंट के साथ ही सूर्य घड़ी का बोर्ड भी लगाया गया है। इसके अलावा भारत के नक्शे में भी भारतीय मानक समय रेखा को दर्शाया गया है।
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पौराणिक मान्यताओं से भी जुड़ा है स्थल
विंध्याचल के विख्यात महाराज दीनबंधु मिश्र के मुताबिक यह स्थान केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। लंकाधिपति रावण भी विंध्याचल को पृथ्वी का केंद्र बिंदु मानता था। रावण ने ही बिंदेश्वर महादेव को स्थापित किया था। मंदिर में उसने तपस्या भी की थी। इसी कारण यहां की अधिष्ठात्री देवी को ''''बिंदुवासिनी'''' कहा जाता है। वह मूल बिंदु पर विराजमान है, भूमध्य रेखा का केंद्र हैं। यहीं से सूर्योदय व सूर्य अस्त का नाप होने के साथ पंचांग की गणना की जाती है।
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