मानसून की वापसी में देरी, ज्यादा बारिश हुई तो धान के उत्पादन के लिए फायदेमंद या नुकसान
इस साल मानसून की वापसी में एक से दो सप्ताह की देरी हो सकती है जिससे धान के उत्पादन पर असर पड़ने की आशंका है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि बारिश सामान्य रही तो फसल पकने में समय लगेगा और यह लाभदायक होगा लेकिन अनियंत्रित बारिश से खेतों में जलभराव हो सकता है जिससे फसल को नुकसान पहुंच सकता है।

जागरण संवाददाता, कानपुर। पूर्वानुमान से भी ज्यादा बरसने वाले मानसून की वापसी में इस साल एक से दो सप्ताह का अतिरिक्त समय लग सकता है। अगर ऐसा हुआ तो धान के उत्पादन पर असर पड़ेगा। जिस समय मानसून की वापसी का समय होता है, उसी समय धान की अगैती फसल पक रही होती है। ऐसे में अगर सामान्य बारिश हुई तो फसल पकने में समय जरूर लगेगा, लेकिन यह लाभदायक होगा। अनियंत्रित बारिश की स्थिति में देरी के साथ ही खेतों में जलभराव की वजह से रोग लगने का खतरा होगा।
कानपुर और आसपास के जिलों में जुलाई और अगस्त में अलग-अलग क्षेत्रों में कम या ज्यादा वर्षा हुई। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) ने सितंबर में भी वर्षा सामान्य से 108 प्रतिशत अधिक रहने की संभावना जताई है। मौसम विशेषज्ञ डा. एसएन सुनील पांडेय के अनुसार मानसून चक्र 15-15 दिन का होता है। जो 15 दिन मैदान और 15 दिन पहाड़ पर अपना असर दिखाता है। इससे 15 सितंबर तक वापस होने वाले मानसून की वापसी में देरी होती दिख रही है। मौसम विभाग ने भी 17 सितंबर से छह अक्टूबर तक मानसून वापसी की संभावना जताई है।
सीएसए के कृषि विज्ञानी डा. आरके यादव के अनुसार मानसून अगर 15 सितंबर तक लौट जाता है, तो धान की फसल को पकने के लिए सितंबर अंतिम के 15 दिन मिलेंगे। इससे धान की बालियों को विकसित होने के साथ ही पकने का मौका मिल जाएगा। अगर मानसून 30 सितंबर के बाद भी बना रहता है तो धान पकने के लिए और 15 दिन चाहिए होंगे। इससे कटाई में विलंब होगा। हालांकि इसमें लाभ और हानि दोनों हो सकते हैं। ज्यादा समय मिलने से धान की बालियों को विकसित होने का अवसर मिल सकता है। जबकि अधिक बारिश से खेत में जलभराव रहेगा और इससे जड़ें सड़ सकती हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं। इसके साथ ही नम मौसम की वजह से फफूंद जनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
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