Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मानसून की वापसी में देरी, ज्यादा बारिश हुई तो धान के उत्पादन के लिए फायदेमंद या नुकसान

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 05:26 PM (IST)

    इस साल मानसून की वापसी में एक से दो सप्ताह की देरी हो सकती है जिससे धान के उत्पादन पर असर पड़ने की आशंका है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि बारिश सामान्य रही तो फसल पकने में समय लगेगा और यह लाभदायक होगा लेकिन अनियंत्रित बारिश से खेतों में जलभराव हो सकता है जिससे फसल को नुकसान पहुंच सकता है।

    Hero Image
    मानसून की बारिश से फसल को नुकसान हो सकता है।

    जागरण संवाददाता, कानपुर। पूर्वानुमान से भी ज्यादा बरसने वाले मानसून की वापसी में इस साल एक से दो सप्ताह का अतिरिक्त समय लग सकता है। अगर ऐसा हुआ तो धान के उत्पादन पर असर पड़ेगा। जिस समय मानसून की वापसी का समय होता है, उसी समय धान की अगैती फसल पक रही होती है। ऐसे में अगर सामान्य बारिश हुई तो फसल पकने में समय जरूर लगेगा, लेकिन यह लाभदायक होगा। अनियंत्रित बारिश की स्थिति में देरी के साथ ही खेतों में जलभराव की वजह से रोग लगने का खतरा होगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कानपुर और आसपास के जिलों में जुलाई और अगस्त में अलग-अलग क्षेत्रों में कम या ज्यादा वर्षा हुई। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) ने सितंबर में भी वर्षा सामान्य से 108 प्रतिशत अधिक रहने की संभावना जताई है। मौसम विशेषज्ञ डा. एसएन सुनील पांडेय के अनुसार मानसून चक्र 15-15 दिन का होता है। जो 15 दिन मैदान और 15 दिन पहाड़ पर अपना असर दिखाता है। इससे 15 सितंबर तक वापस होने वाले मानसून की वापसी में देरी होती दिख रही है। मौसम विभाग ने भी 17 सितंबर से छह अक्टूबर तक मानसून वापसी की संभावना जताई है।

    सीएसए के कृषि विज्ञानी डा. आरके यादव के अनुसार मानसून अगर 15 सितंबर तक लौट जाता है, तो धान की फसल को पकने के लिए सितंबर अंतिम के 15 दिन मिलेंगे। इससे धान की बालियों को विकसित होने के साथ ही पकने का मौका मिल जाएगा। अगर मानसून 30 सितंबर के बाद भी बना रहता है तो धान पकने के लिए और 15 दिन चाहिए होंगे। इससे कटाई में विलंब होगा। हालांकि इसमें लाभ और हानि दोनों हो सकते हैं। ज्यादा समय मिलने से धान की बालियों को विकसित होने का अवसर मिल सकता है। जबकि अधिक बारिश से खेत में जलभराव रहेगा और इससे जड़ें सड़ सकती हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं। इसके साथ ही नम मौसम की वजह से फफूंद जनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

    यह भी पढ़ें- तेज बारिश और बर्निंग कार... दहशत में लोग

    यह भी पढ़ें- टीईटी अनिवार्यता से परेशान शिक्षक ने दी जान, मृतक आश्रित में मिली थी नौकरी

    यह भी पढ़ें- Breaking: कानपुर, इटावा सहित आसपास की अपराध और घटनाक्रम से जुड़ी खबरें, पढ़ें, 8 सितंबर को क्या हुआ