चित्रकूट में 2008 में दर्ज बिजली चोरी के झूठे मुकदमे का भुगतेंगे अंजाम, जेई, लाइनमैन और विवेचकों पर कार्रवाई के आदेश
चित्रकूट में 2008 में बिजली चोरी का एक झूठा मुकदमा दर्ज किया गया था। जांच के बाद, जेई, लाइनमैन और विवेचकों पर कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं। यह मामला झूठा साबित हुआ, जिसके बाद यह निर्णय लिया गया।

जागरण संवाददाता, चित्रकूट। बिजली चोरी के झूठे मुकदमे में फंसाए गए दो सगे भाइयों को न्याय मिल गया है। विशेष न्यायाधीश विद्युत अधिनियम/अपर सत्र न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने जेई, लाइनमैन, अन्य बिजलीकर्मियों और विवेचना करने वाले पुलिस अधिकारियों को कठघरे में खड़ा करते हुए विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं। अदालत ने साफ कहा कि पुलिस ने असत्य व निराधार आरोप-पत्र दाखिल कर अपने अधिकारों का घोर दुरुपयोग किया है।
पांच अप्रैल 2008 को अवर अभियंता (जेई) कृष्णलाल ने कोतवाली कर्वी में मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप था कि शिवरामपुर निवासी प्रमोद कुमार जायसवाल और उनके भाई विनोद जायसवाल ने बिजली बकाया वसूली के दौरान कनेक्शन काटने पहुंची टीम पर हमला किया, दस्तावेज लूट लिए और मारपीट की। इसके आधार पर पुलिस ने दोनों भाइयों के खिलाफ सरकारी काम में बाधा, विद्युत अधिनियम सहित कई धारों के तहत केस दर्ज कर आरोप-पत्र दाखिल किया।
मनगढ़ंत बयान
अदालत ने कहा झूठे आरोप, अन्य उद्देश्यों से मुकदमा कराया गया। विस्तृत सुनवाई के बाद अदालत ने पाया कि जेई कृष्णलाल, लाइनमैन मोहनलाल, कर्मचारी शंकरराम समेत विभागीय कर्मियों ने झूठे और मनगढ़ंत बयान दिए। पुलिस विवेचकों चंद्रकांत उपाध्याय व प्रमोद कुमार पांडेय ने भी निष्पक्ष जांच नहीं की और केवल जेई की तहरीर के आधार पर आरोप-पत्र दाखिल कर दिया। अदालत ने कहा कि यह प्रकरण एक उपभोक्ता के उत्पीड़न का सर्वोत्तम उदाहरण है।
अधिकारों का दुरुपयोग गंभीर अपराध
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि गलत विवेचना, झूठी गवाही और अधिकारों का दुरुपयोग गंभीर अपराध है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आरोपित का भी निष्पक्ष जांच का संवैधानिक अधिकार है, जिसका इस मामले में खुला उल्लंघन हुआ। न्यायालय ने आदेश की प्रतियां डीजीपी लखनऊ, उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के चेयरमैन और यूपी इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन को भेजते हुए तत्कालीन जेई कृष्णलाल, लाइनमैन मोहनलाल, शंकरराम, अधिशाषी अभियंता तथा विवेचक पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय व अन्य दंडात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करने को कहा है। अदालत ने दोनों भाइयों को सभी आरोपों से पूरी तरह दोषमुक्त कर दिया और उनके संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन पर गहरी चिंता जताई।
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