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    शादी के लिए रुपये लेने जा रहा..... कानपुर में बेटी की डोली उठने से पहले पिता ने दी जान, 25 नवंबर को आनी थी बरात

    Updated: Sat, 15 Nov 2025 06:14 PM (IST)

    कानपुर में एक हृदयविदारक घटना सामने आई है। एक पिता ने अपनी बेटी की शादी से 10 दिन पहले आत्महत्या कर ली। बताया जा रहा है कि वह आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे और शादी के खर्चों को लेकर तनाव में थे। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

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    संवाद सहयोगी, जागरण, घाटमपुर(कानपुर)। कानपुर में दिल दहलाने वाला मामला सामने आया है। बेटी की डोली उठने से पहले एक पिता ने जान दे दी। वह बेटी की शादी के लिए रुपये लेने की बात कहकर निकला था। 

     

     

    साढ़ थाना क्षेत्र के पासीखेड़ा गांव में एक युवक ने पेड़ पर फंदा लगाकर जान दे दी। 10 दिन बाद उसकी बेटी की शादी है। युवक घर से रुपये लेने की बात कहकर निकला था। ग्रामीणों व पुलिस को आशंका है कि कमजोर आर्थिक स्थिति व शादी के लिए रुपयों की व्यवस्था न हो पाने के कारण ही उसने आत्महत्या की है। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा है।

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    पासीखेड़ा निवासी 40 वर्षीय अमिताभ पासवान किसानी करते थे। घर पर पत्नी बसंती, चार बेटे- नीरज, प्रांसू, दिव्यांशू, हिमांशू और एक बेटी स्नेहा है। बेटी की शादी शिवराजपुर क्षेत्र में तय हुई थी। 25 नवंबर को बारात आनी थी। बेटे नीरज ने बताया कि शनिवार सुबह आठ बजे सब्जी खरीदकर लाए थे। इसके बाद रुपये लेने की बात कहकर घर से निकले थे। लेकिन, काफी समय तक नहीं लौटे।

     

     

    ग्रामीणों को उनका शव गांव के बाहर स्थित लोहारन बगीचे में नीम के पेड़ पर मफलर के फंदे से लटका मिला। जानकर पाकर वे लोग पहुंचे। वहीं, साढ़ पुलिस भी पहुंची। पुलिस ने शव को उतारकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। साढ़ थाना प्रभारी अवनीश कुमार सिंह ने बताया कि आशंका है कि रुपये की व्यवस्था न हो पाने के कारण उसने फंदा लगाया है। स्वजन भी यही कारण मान रहे हैं। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है।

     



    बुक होना था शादी का सामान

    बेटे नीरज ने बताया बहन की शादी का सामान बुक होना था। इसके चलते पिता घर से रुपये की व्यवस्था करने की बात कहकर निकले थे। लेकिन, उन्हें नहीं पता था कि व इतना बड़ा कदम उठा लेंगे। नीरज का यह भी कहना है कि पिता ने घर पर कभी शादी के लिए रुपयों की व्यवस्था न होने का जिक्र नहीं किया। बताया कि पिता बटाई पर करीब पांच बीघा जमीन पर खेती करते थे। बाकी के दिनों में मजदूरी भी कर लेते थे।