"आवारा आतंक" के जबड़े ने नहीं भूलने वाला दिया दर्द, किसी ने गंवाई जान तो कोई पाया गहरा जख्म
आजमगढ़ के बलरामपुर में आवारा कुत्तों का आतंक जारी है जिससे ग्रामीण दहशत में हैं। हर साल इनकी संख्या बढ़ रही है और अस्पताल में एंटी रैबीज लगवाने वालों की भीड़ उमड़ रही है। कुत्तों के काटने से कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं और कुछ की मौत भी हो चुकी है जिससे परिवार उजड़ गए हैं।

जागरण संवाददाता, बलरामपुर (आजमगढ़)। अवारा आतंक के जबड़े का दर्द ऐसा की आज भी ग्रामीण सोच कर सिहर जाते है। हंसी-खुशी दुनिया में आग लगा दिया सुहागन से विधवा बना दिया। इसके बावजूद भी जिम्मेदारों को दिखाई नही देता है। ऐसे में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत इनकी संख्या बढ़ रही है। जबकि केवल जिला अस्पताल की बात करे तो हर वर्ष लगभग 60 हजार लोगों को अपना शिकार बनाते है। ऐसे में विभाग की तरफ से व्यवस्था नगण्य है।
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बेखौफ आवारा आतंक जहां लोगों को अपने जबड़े का दर्द दे रहे है तो वही प्रतिदिन लोग एंटी रैबीज लगवाने के लिए अस्पताल पहुंच रहे है। आए दिन आवारा आतंक का खौफ इतना की रात को लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकलना भी मुश्किल की घड़ी समझ रहे है। सीएमओं डाक्टर अजीज अंसारी ने बताया कि सभी सीएचसी पर 200 सौ वायल और पीएचसी पर 100 वायल भेजा गया है। जबकि जिला अस्पातल में पर्याप्त मात्रा में एंटी रैबीज उपलब्ध है।
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पिछले वर्ष की अपेक्षा हर वर्ष इनकी खपत बढ़ती जा रही है। जबकि पशु अस्पताल में इनके नसबंदी और एंटी रैबीज लगाने की व्यवस्था नही है। जबकि इनके नियंत्रण के लिए विभाग के पास कोई ठोस इंतजाम नही है। हालाकि कभी-कभार लोग कुत्ते के काटने पर लाल र्मिच लगा देते है वह गलत है। उन्हें जागरुक होने की जरुरत है, तुरंत अपने नजदीकी सीएचसी, पीएचसी या फिर जिला अस्पताल जाकर एंटी रैबीज लगवाएं। वही उनके लिए फायदेमंद रहता है।
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बोले घायल
तीन साल पहले जब मैं बाजार से घर जा रहा था। गली में कुछ खुंखार आवारा कुत्ते घूम रहे थे। अचानक मेरे दाहिने पैर के पीछे का हिस्सा पकड़ लिया, जब तक मै उसे छुड़ाता लेकिन तब तक वह मेरा मांस वहां का निकाल लिया। इलाज के दौरान मुझे ठीक होने में छह माह लग गए लेकिन दर्द आज भी रहता है। -मनोज सैनी कोलघाट
पांच साल पूर्व मै रात को मूर्ति विर्सजन कर पैदल घर लौट रहा था। रास्ते में कुछ कुत्ते आपास में झगड़ रहे थे, मै उनके बगल से निकल ही रहा था कि अचानक कुछ कुत्तों ने हमला बोल दिया। चेहरा तो किसी तरह से बचा लिया लेकिन हाथ और पैर में बुरी तरह से काट लिया। जब-जब दर्द होता है उस घटना को याद कर आज भी सिहर जाता हूंं। -सोनू जायसवाल, चौक
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उजाड़ दिया मांग का सिंदूर
मुबारकपुर थाना क्षेत्र के अलीनगर निवासी रमेश मजदूरी कर अपनी पत्नी दूर्गा और तीनों बच्चों का भरण-पोषण करते थे। एक शाम मजदूरी कर घर लौट रहे थे कि गांव में आवारा कुत्ते ने काट लिया। हालाकि उस समय उन्होंने ध्यान नहीं दिया जो कि दो माह बाद कमरें में भौक-भौके मर गए। जबकि उनके माता-पिता की पहले ही मौत हो चुकी थी, वही पत्नी और बच्चों के लिए सहारा थे। अब पत्नी मजदूरी कर अपने तीनों बच्चों की परवरिश कर रही है। दो साल बीतने के बाद भी उसे किसी भी सरकारी सुविधाएं नही मिली ऐसे में बच्चों का पेट पालना मुश्किल हो गया है।
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जिला अस्पातल में एंटी रैबीज लगवाने के लिए आए लोग
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