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    यमुना एक्सप्रेसवे हादसा: 10 वैज्ञानिक, 160 घंटे और चार चरण; इस तकनीक से हासिल किया मृतकों का DNA

    Updated: Wed, 24 Dec 2025 08:39 AM (IST)

    आगरा फोरेंसिक लैब की टीम ने मथुरा हादसे में यमुना एक्सप्रेसवे पर मारे गए लोगों के डीएनए निकालने में सफलता पाई। जले हुए नमूनों से डीएनए प्राप्त करना चु ...और पढ़ें

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    विधि विज्ञान प्रयोगशाला आगरा।

    जागरण संवाददाता, आगरा। मथुरा के बल्देव में यमुना एक्सप्रेसवे पर 16 दिसंबर की सुबह हादसे में मरने वाले कुछ लोगों के नमूनों से डीएनए हासिल करना विज्ञानियों की टीम के लिए आसान नहीं था। हादसे के बाद वाहनों में लगी भयावह आग ने उनमें फंसे लोगों को इस तरह जला दिया था कि सिर्फ हड्डियां और दांत ही बचे थे।

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    शवों की पहचान के लिए नमूने की रूप में हड्डी और दांत भेजे गए थे। जिसमें चार से पांच ऐसे नमूने थे जो जांच के लिए लेते ही वह कोयले की तरह चूर-चूर हो रहे थे। ऐसे में अत्याधुनिक मशीनो ने तो अपना काम किया ही, संयुक्त निदेशक अशोक कुमार के नेतृत्व में विज्ञानियों की टीम ने भी अपना पूरा अनुभव झोंक दिया था।

    जले कोयले की तरह चूर-चूर हो रहे कई नमूनों से डीएनए हासिल करना था बड़ी चुनौती

    विज्ञानियों की टीम ने नमूनों को केमिकल में गलाने के बाद उन्हें मशीनों में डालने के बाद टाइमर सेट कर देते थे। प्रत्येक मशीन नमूनों से डीएनए निकालने के लिए निर्धारित समय लेती है। निर्धारित समय के बाद वह स्वत: बंद हो जाती है। विज्ञानी मशीन से नमूना लेने के बाद उसका अध्ययन करते है।परिणाम आंशिक या मनमाफिक नहीं आने पर नमूने से डीएनए हासिल करने के लिए मशीनों को दोबारा चला दिया जाता। खाना-पीना भूल विज्ञानियों की टीम पूरी तरह से इसमें जुटी रही। वह नमूनों से डीएनए हासिल करने को लगातार विश्लेषण करती रही।

    विज्ञानियों ने 160 घंटे लगातार इस प्रक्रिया को जारी रखा। रविवार आधी रात के बाद शवों से डीएनए मिलने का सिलसिला शुरू हुआ ताे विज्ञानियों की चेहरों पर उत्साह था।हालांकि दो नमूनों से डीएनए निकालने की चुनौती बरकरार है।


    तकनीक के चार चरण जिनसे हासिल किया डीएनए


    डीएनए सेक्शन के उप निदेशक श्रीकृष्ण मौर्य बताते हैं कि किसी भी नमूने से डीएनए हासिल और मिलान करने के लिए चार तकनीक चरण हैं। डीएनए अनुक्रमण या सीक्वेंसिंग वह विधि है जो चार न्यूक्लियोटाइड आधारों एडेनिन, थाइमिन,साइटोसिन ओर ग्वानिन (ए.टी.सी.जी) के क्रम को निर्धारित करती है।

    एटीसीजी डीएनए अणु बनाते हैं और महत्वपूर्ण अनुवांशिक जानकारी देते हैं। मानव जीनोम में लगभग तीन बिलियन आधार जोड़े होते हैं। जिन्हें पढने के लिए डीएनए सीक्वेंसर की मदद ली जाती है। डीएनए सीक्वेंसर ऐसे उपकरण हैं जो डीएनए नमूनों को पढ़ते हैं और प्रतीकों के साथ एक इलेक्ट्रानिक फाइल उत्पन्न करते हैं। जो नमूनों के नाइट्रोजन आधारों एडेनिन, थाइमिन, साइटोसिन व ग्वानिन का प्रतिनिधित्व करते हैं।

    पहला चरण-डीएनए निष्कर्षण: विज्ञानियों की टीम ने नमूनों से डीएनए हासिल करने के लिए उन्हें केमिकल में गलाया। इन सभी नमूनों को अत्याधुनिक मशीनों में विश्लेषण के लिए डाल दिया गया।
    दूसरा चरण-मात्रात्मक: मशीनों की मदद से नमूनों से हासिल किया, उसकी मात्रा आरटीपीआर में निर्धारित की जाती है। यह देखा जाता है कि जो मात्रा मिली है, वह डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए समुचित है या नहीं। विज्ञानियों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण चरण था। सबसे अधिक समय इसी चरण में लगा।नमूनों से प्राप्त परिणाम एेसे नहीं थे जिनसे विश्लेषण किया जा सके। इसलिए कई बार मशीनों से दोबारा परिणाम हासिल किए गए।
    तीसरा चरण-पीसीआर: इसमें मशीन की मदद से विज्ञानियों को जिन डीएनए की प्रोफाइल मिलीं।उनसे लाखों डीएनए कापी बनाईं।जिससे कि डीएनए की जांच प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया।
    चौथा चरण-एनलाइजर: विज्ञानियों द्वारा तीसरे चरण में मिले पीसीआर से मिले डीएनए प्रोफाइल की सीक्वेसिंग की गई, जिसके बाद पुलिस द्वारा भेजे गए नमूनों से उसका मिलान किया गया। यह देखा गया कि प्राप्त डीएनए प्रोफाइल पुलिस द्वारा भेजे गए किस नमूने के किस प्रोफाइल से मैच कर रहा है। मंगलवार दोपहर तक इस प्रक्रिया के तहत विज्ञानी 13 नमूनों से प्राप्त डीएनए से 11 की पहचान कराने में सफल रहे।

    डीएनए जांच करने वाली विज्ञानियों की टीम


    संयुक्त निदेशक आगरा फोरेंसिक लैब अशोक कुमार के निर्देशन में नमूनों से डीएनए निकालने में जुटी टीम में अनीता पुंढीर (उप निदेशक गाजियाबाद फोरेंसिक लैब), प्रगति सिंह (उप निदेशक लखनऊ फोरेंसिक लैब) के अलावा विज्ञानी अधिकारी पवन कुमार एवं शशि शेखर पांडेय (आगरा) प्रमुख हैं। इसके अलावा दो विज्ञानी सहायक समेत 10 लोग टीम में शामिल हैं।

    लखनऊ लैब जाएंगे दो शवों के नमूने, माइटाकांड्रिया तकनीक से निकाला जाएगा डीएनएा


    आगरा। मथुरा पुलिस द्वारा भेजे गए 15 नमूनों में दो को लखनऊ फोरेंसिक लैब भेजा जाएगा। यह नमूने बेहद बुरी स्थिति में थे।विज्ञानियों को इनसे आंशिक परिणाम मिले। दाेनों नमूनों की दोबारा जांच की जा रही है। मगर, निष्कर्ष हासिल करने वाले परिणाम की उम्मीद नहीं है। आगरा फोरेंसिक लैब में विज्ञानियों ने 13 नमूनों से न्यूक्लियस तकनीक से डीएनए हासिल किया था। इससे एडवांस तकनीक माइटोकांड्रिया है। जिसकी मदद से नमूनों से डीएनए हासिल किया जाएगा। माइटोकांड्रिया तकनीक से डीएनए निकालने वाली हाईटेक मशीनें यूपी में फिलहाल सिर्फ लखनऊ और मुरादाबाद फोरेंसिक लैब के पास है।

    इसलिए सफल है माइटोकांड्रिया तकनीक


    डीएनए मिलान के लिए फोरेंसिक लैब के विज्ञानी न्यूक्लियस तकनीक की मदद लेते हैं। एक सेल या कोशिका में एक न्यूक्लियस होता है। मगर, सेल या कोशिका में माइटोकांड्रिया या सूत्र कणिका की संख्या अनगिनत होती है। यह यूकैरियोटिक कोशिकाओं के अंदर पाए जाने वाले छोटे व झिल्ली-बद्ध कोशिकांग हैं। जिन्हें कोशिका का ऊर्जा घर या पावर हाउस भी कहा जाता है। शरीर की जिस कोशिकाओं को ऊर्जा की सबसे अधिक जरूरत होती है, वहां पर माइटोकांड्रिया की संख्या सबसे अधिक होती है।

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