हॉलीवुड मूवी से कम लागत में ISRO करता है स्पेस मिशन, जानें चंद्रयान-2 के बारे में सब कुछ
Chandrayaan-2 इस मिशन से जुड़े कई ऐसे सवाल हैं जो आपके मन में होंगे। इसके बारे में जानते हैं आसान शब्दों और डिटेल में
नई दिल्ली, टेक डेस्क। चंद्रयान-2, भारत का चांद पर दूसरा मिशन आज यानि 22 जुलाई को लॉन्च हो गया है। चंद्रयान-1 की सफलता के बाद चंद्रयान-2 से देश की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं। चंद्रयान-2 के साथ ISRO पहली बार चांद पर एक लैंडर और रोवर भेजने वाली है। इस मिशन से जुड़े कई ऐसे सवाल हैं, जो आपके मन में होंगे। इसके बारे में जानते हैं आसान शब्दों और डिटेल में:
चंद्रयान 2 क्या है? चंद्रयान 2 का लॉन्च कब और कहां हुआ?
चंद्रयान का नाम चांद+यान(व्हीकल) के प्रतिक के रूप में रखा गया है। चंद्रयान-1, भारत का मानव रहित पहला मिशन था, जो अक्टूबर 2008 में हुआ था। चंद्रयान-2 दूसरा मानव रहित मिशन है। दूसरा मिशन, पहले मिशन के करीब एक दशक बाद किया जा रहा है। पेले मिशन की सफलता के बाद अब दूसरे मिशन से उम्मीदें जाहिर तौर से काफी ज्यादा है। चंद्रयान 2 स्पेसक्राफ्ट का लॉन्च 22 जुलाई को 2:43PM को आंध्र प्रदेश, श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर में रखा गया। उम्मीद है की लैंडर और रोवर चांद पर 6 सितम्बर को लैंड करेंगे।
ISRO स्टाफ चंद्रयान 2 मिशन के लिए विक्रम लीडर पर काम करते हुए। Image: PTI
चंद्रयान 2 का मिशन क्या है?
चंद्रयान-2, चांद के साऊथ-पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा पहली बार होगा, जब कोई भी मिशन इक्वेटर से इतनी दूर उतरेगा। इसके प्रमुख उद्देश्यों में से एक लूनर सरफेस पर सॉफ्ट लैंडिंग की जा सकती है या नहीं यानि की उसकी क्षमता का पता लगाना है।
वैज्ञानिक उद्देश्यों की बात करें,तो चंद्र स्थलाकृति, खनिज विज्ञान, तात्विक बहुतायत, चंद्र एक्सोस्फीयर की स्टडी के लिए प्रयोग किये जाएंगे। इसी के साथ हाइड्रॉक्सिल (एक ऐसा मॉलिक्यूल, जिसमे हयड्रोफेन और ऑक्सीजन होती है) के साइन देखे जाएंगे। इसी के साथ लनर सरफेस पर पानी बर्फ समेत ऐसे चीजों को खजा जाएगा, जिससे यह पता लगे की वहां पर जिंदगी संभव है या नहीं?
क्या होता है सॉफ्ट-लैंडिंग का मतलब? चंद्रयान 2 की अवधि क्या है?
सॉफ्ट लैंडिंग तकनीकी टर्म है। इसका मतलब लैंडिंग की टेक्निक से है। आसान भाषा में समझाए, तो सॉफ्ट लैंडिंग का मतलब, एक ऐसे टेक्निक जिससे इंस्ट्रूमेंट्स को बिना किसी क्षति के लैंड कराया जा सके। हार्ड लैंडिंग वो होती हैं, जिसमें लैंडिंग होने पर क्राफ्ट या इंस्ट्रूमेंट्स को क्षति पहुंचती है। लूनर सरफेस पर 14 अर्थ डेज यानी की 1 लूनर दिन में लैंडर और रोवर द्वारा वैज्ञानिक प्रयोग किये जाएंगे। ऑर्बिटर 1 साल तक के लिए परिचालित किया जाएगा।
चंद्रयान 1 के बावजूद चांद पर क्यों जाएं?
कोई भी मिशन एक ही प्रयास में सभी उद्देश्यों को पूरा नहीं करता। इसी के साथ स्पेस में जितनी खोज की जाए, उतनी कम है। चंद्रयान-2 मिशन के उद्देश्य भी चंद्रयान-1 के मिशन से काफी अलग है। ISRO के अनुसार, लूनर सरफेस पर लैंड करने वाला भारत चौथा देश तो है ही, इसकी के साथ चंद्रयान-2 कई काम 'पहली बार' करेगा।
- चंद्रयान 2, पहला स्पेस मिशन है, जो चांद के साऊथ पोलर रीजन पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा।
- चंद्रयान 2, पहला भारतीय अभियान है, जो देश में बनाई गई टेक्नोलॉजी से लूनर सरफेस पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करने जा रहा है।
- चंद्रयान 2, पहला भारतीय मिशन है, जो देश में बनाई गई टेक्नोलॉजी से चंद्र भूभाग को एक्स्प्लोर करेगा।
इसी के साथ चंद्रयान-1 ने वाटर मोलेक्युल्स होने की खोज की थी। लूनर सरफेस पर इसका कितना वितरण है और इससे सम्बंधित स्टडी करना अभी बाकी है, जिसके लिए चंद्रयान-2 काम आएगा। चांद से जुड़े कई मॉडल ISRO के पास उपलब्ध है, लेकिन फिर भी अभी ऐसा बहुत कुछ है, जो चांद के बारे में जानना जरूरी है। लूनर सरफेस की मैपिंग और उसकी अधिक गहराई से स्टडी की जरूरत अभी भी है। तो यह साफ है की चांद पर अभी काफी खोज बाकी है।
चंद्रयान-2 की लागत कितनी है?
ISRO चीफ सेक्टर सिवन के अनुसार, चंद्रयान 2- ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के निर्माण और टेस्टिंग की कुल लागत Rs 603 करोड़ है। इसमें GSLV-Mk-III राकेट के निर्माण की लागत सम्मिलित नहीं है। इस मिशन को 500 अकादमी संसथान और 120 इंडस्ट्रीज द्वारा सपोर्ट किया गया है। इन्होंने Rs 603 करोड़ के बजट में लगभग 60 प्रतिशत और GSLV Mk-III की लागत Rs 375 करोड़ का 80 प्रतिशत योगदान दिया है। इससे चंद्रयान 2 मिशन की कुल लागत करीब Rs 978 करोड़ हो जाती है।
लागत के मामले में चंद्रयान 2, अन्य चांद के मिशन्स से किस तरह तुलनात्मक है?
ISRO स्पेस मिशन्स को किफायती लागत में पूरा करने के लिए जाना जाता है। मंगलयान, भारत का मार्स पर मिशन, इसकी लागत हॉलीवुड मूवी The Martian से भी कम थी। संजय जाए तो, आप यह समझ सकते हैं की किसी को मार्स पर भेजने पर बानी हॉलीवुड मूवी में जितना पैसा लगा, उससे कम लागत में ISRO ने असल में स्पेस मिशन किया, जो मार्स पर पंहुचा।
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